अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने छात्र-छात्राओं से साझा किये अंतरिक्ष से मिले सबक

लखनऊ{ गहरी खोज }: एक्जिओम—4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर पहुंचे पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला ने मंगलवार को छात्र—छात्राओं से अपने मिशन से मिले सबक साझा करते हुए उन्हें अपने जीवन में उतारने की हिदायत दी और उनसे ‘निडर, महत्वाकांक्षी और अजेय भारत’ के निर्माण में सक्रिय योगदान देने का आह्वान किया। शुक्ला को डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) के दीक्षांत समारोह में डॉक्टर ऑफ साइंस की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किये गये शुक्ला ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान सामने आयी चुनौतियों का जिक्र करते हुए छात्र—छात्राओं को अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिये कई हिदायतें, गुरुमंत्र और सात सिद्धांत दिये।
उन्होंने छात्र—छात्राओं से कहा, ”आप भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण यात्रा के सबसे रोमांचक दौर में स्नातक बने हैं। इसरो के चंद्रयान-3 मिशन के जरिए भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन गया है। वर्ष 2035 तक हमारा लक्ष्य एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाना और 2040 तक किसी भारतीय को चंद्रमा पर पहुंचाना है। यही वह भारत है जो नवाचार का नेतृत्व कर रहा है और भविष्य को आकार दे रहा है। यही वह भारत है जो आपका इंतजार कर रहा है। आप उम्मीद लगाने वाले नहीं हैं… आप इस यात्रा में भागीदार हैं।”
उन्होंने अपनी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान पेश आयी दिक्कतों को डिग्री धारण करने वाले छात्र—छात्राओं की भविष्य की चुनौतियों से जोड़ते हुए कहा, ”अंतरिक्ष ओरबिट (कक्षा) में जीवन मुश्किल था। जैसे ही आप सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में प्रवेश करते हैं, आपका शरीर प्रतिकर्षित होने लगता है, क्योंकि आप उस वातावरण में कभी रहे ही नहीं। सिर सूज जाता है क्योंकि रक्त आपके सिर की ओर दौड़ता है। आपके हृदय की गति धीमी हो जाती है क्योंकि उसे गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध काम नहीं करना पड़ता। आपकी रीढ़ लंबी होने लगती है। इन सब से दर्द, भ्रम, मतली और सिरदर्द होता है, लेकिन विज्ञान आपका इंतज़ार नहीं करता। कुछ भी काम चलता रहना चाहिए। स्नातक होने के बाद आपका भी जीवन बिल्कुल ऐसा ही होगा।”
शुक्ला ने कहा कि कई बार ऐसा समय भी आएगा, जब आप खुद को तैयार महसूस नहीं करेंगे। आपकी ऊर्जा कम हो जाएगी, प्रेरणा कम हो जाएगी, समय सीमाएं बढ़ जाएंगी, नौकरी के आवेदनों का सकारात्मक नतीजा नहीं निकलेगा। उन्होंने कहा ‘‘ऐसे क्षणों में अंतरिक्ष से मिले इस सबक को याद रखें। सफलता एक बड़ी उपलब्धि नहीं है। यह हर दिन अपने काम पर डटे रहने की प्रवृत्ति को जिंदा रखने की बात है।”
उन्होंने कहा, ”चारों ओर परिवर्तन हो रहा है और मुझे लगता है कि यही वह सबक है जो मैंने अपनी अंतरिक्ष यात्रा से सीखा है कि परिवर्तन ही जीवन में एकमात्र स्थिरता है। आप चाहें कितनी भी सावधानी से योजना बना लें, जीवन आपको हमेशा आश्चर्यचकित करेगा… और जब ऐसा हो, तो विरोध न करें, उसके अनुकूल ढल जाएं।’’
शुक्ला ने कहा कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह बात है कि जब एक बार आप समझ जाते हैं कि परिवर्तन अपरिहार्य है, तो सिर्फ उसके मुसाफिर न बनें, बल्कि उसके चालक बनें। ‘‘क्योंकि परिवर्तन अपने आप नहीं आता। कोई न कोई इसे हमेशा लाता है। मेरा आपके लिए संदेश है कि आप खुद वह परिवर्तनकारी व्यक्ति बनें।”
जून 2025 में 20 दिवसीय एक्जिओम—4 मिशन पर पहुंचे शुक्ला ने कहा कि अपने इस अभियान पर वह न सिर्फ तिरंगा, बल्कि 1.4 अरब भारतवासियों की आकांक्षाओं को भी लेकर गए थे। वह अपने साथ भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा तैयार किए गए वैज्ञानिक प्रयोग भी ले गए थे, जिससे भारत ने पहली बार अंतरिक्ष में सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण अनुसंधान किया।
शुक्ला ने कहा, ”मैं आपको बता नहीं सकता कि कितनी बार मुझे महत्वाकांक्षी कार्यों को करने से हतोत्साहित किया गया है। कितनी बार मैंने खुद को लुटा—पिटा, भ्रमित और डरा हुआ महसूस किया है… लेकिन एक चीज़ जिसने मुझे हमेशा आगे बढ़ने में मदद की वह था मेरा विश्वास। इसलिए जीवन में आप जहां भी हों, किसी भी परिस्थिति में हों, इस भरोसे को अपने साथ रखें। खुद पर विश्वास करना कभी न छोड़ें।”
शुक्ला ने उपस्थित छात्र—छात्राओं को जीवन में आगे बढ़ने के लिये ‘सात सिद्धांत’ बताए। उन्होंने कहा, ”जब जीवन आपकी समय-सीमा के अनुसार न चले तो धैर्य बनाये रखें। जब शोर बहुत ज्यादा हो तो ध्यान केंद्रित रखें। अपने लक्ष्य को पूरा करने की रोजाना कोशिश करें, क्योंकि आपके सपने आपके मूड की परवाह नहीं करते। जब योजनाएं विफल हो जाएं तो अनुकूलनशील बनें और वह बदलाव बनें जो आप देखना चाहते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस यात्रा का आनंद लें।”
शुक्ला ने अपने मिशन का एक अनुभव साझा करते हुए अंतरिक्ष में प्रक्षेपण से पहले के अभूतपूर्व 32-दिवसीय पृथकवास के बारे में बताया। उन्होंने कहा ”इंतज़ार करना समय की बर्बादी नहीं बल्कि तैयारी है। उस पृथकवास ने मुझे अपनी प्रक्रियाओं को निखारने और अप्रत्याशित परिस्थितियों में प्रतिक्रियाओं का अभ्यास करने का मौका दिया। इसने हमारे मिशन की सफलता को सुनिश्चित किया। यही बात जीवन में भी लागू होती है। नौकरी के प्रस्ताव देर से मिल सकते हैं, परियोजनाएं शुरू होने में देर हो सकती है। मगर धैर्य सक्रिय सहनशीलता है, निष्क्रिय हार नहीं।”
मिशन से लौटते वक्त पृथ्वी के वायुमंडल में अपने दोबारा दाखिल होने के मौके को याद करते हुए शुक्ला ने कहा, ”पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश शायद इस पूरी यात्रा का सबसे नाटकीय अध्याय था। क्रू ड्रैगन कैप्सूल 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की चौंका देने वाली गति से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा था। कैप्सूल पृथ्वी के वायुमंडल में टकराने पर भारी घर्षण पैदा करता है, जिससे लगभग 4000 डिग्री फ़ारेनहाइट तापमान उत्पन्न होता है, जो लगभग सूर्य जितना गर्म होता है। खिड़कियों से आप वास्तव में बाहर नाचती हुई आगे की लपटें देख सकते हैं। ऐसे हालात में खुद को साधने के लिए आपको साहस की और कार्य करने के निर्णय की जरूरत होती है। यही वह सबक है जो मैं आपको देना चाहता हूं।”
शुक्ला ने छात्रों को याद दिलाया कि महत्वाकांक्षा और अनुशासन के साथ-साथ मनोविनोद भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी हम बहुत थक जाते थे लेकिन फिर भी कुछ पल निकाल ही लेते थे। जैसे बैग में छिप जाना, लैपटॉप को खिलौने की तरह छोड़कर उससे खेलना, या फिर अपने साथियों के साथ गाजर का हलवा खाना।
उन्होंने कहा ‘‘ये पल भले ही छोटे और बेतुके लगें लेकिन ये बहुत प्रभावशाली थे। ये हमें याद दिलाते थे कि खुशी मेहनत में बाधा नहीं बनती, बल्कि उसे ऊर्जा देती है। यही बात आपके लिए भी लागू होती है। इस विश्वविद्यालय से बाहर निकलने के बाद मंजिल पर पहुंचने की इतनी भी जल्दी मत करो कि जीना ही भूल जाओ। खुशी के बिना सफलता एक उपलब्धि है, लेकिन खुशी के साथ सफलता एक उत्सव है।”
शुक्ला ने भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा का जिक्र करते हुए कहा, ”विंग कमांडर राकेश शर्मा ने ने 1984 में अंतरिक्ष कक्षा से भारत को सारे जहां से अच्छा बताया था। मगर मैंने कुछ और देखा। मैंने देखा एक ऐसा राष्ट्र जो निडर, महत्वाकांक्षी और अजेय है। आकाश कभी कोई हद नहीं था। न मेरे लिए, न आपके लिए, न भारत के लिए।” इससे पहले, कुलाधिपति राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने शुक्ला को डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। दीक्षांत समारोह में छात्र—छात्राओं को 37 स्वर्ण और 26 रजत सहित कुल 88 पदक प्रदान किये गये। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में पहुंचने वाले पहले भारतीय बने शुभांशु शुक्ला अपना एक्सिओम—4 मिशन पूरा करने के बाद पिछली 15 जुलाई को धरती पर लौटे थे। भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुक्ला गत 25 अगस्त को अपने गृहनगर लखनऊ आए थे, जहां उनका भव्य स्वागत किया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्ला के नाम से एक छात्रवृत्ति योजना शुरू करने का ऐलान किया है।