प्रस्तावित मेगा-इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट सरकार की संवेदनहीनता का प्रतीकः कांग्रेस

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी के एक अंग्रेजी अखबार में लिखे लेख में ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित मेगा-इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को चिंताजनक और आदिवासी समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन बताने पर कांग्रेस नेताओं ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस परियोजना को विनाशकारी करार दिया तो राहुल गांधी ने इसे सरकार की संवेदनहीनता का प्रतीक बताया।
खरगे ने एक्स पोस्ट में कहा कि यह परियोजना न केवल पारिस्थितिक संतुलन को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि शोम्पेन और निकोबारी जैसी जनजातियों के अस्तित्व को भी खतरे में डाल रही है। उन्होंने लिखा, “आज एक अखबार में ग्रेट निकोबार मेगा-इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना के पारिस्थितिक विनाश पर सोनिया गांधी द्वारा लिखे गए लेख का एक अंश साझा कर रहा हूं। यह परियोजना कानूनी और विचार-विमर्श की प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाती है।”
राहुल गांधी ने इस लेख के जरिए केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह दुस्साहसिक परियोजना आदिवासी अधिकारों की अवहेलना है और सरकार की संवेदनहीनता का प्रतीक है। उन्होंने लिखा, “ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना एक दुस्साहस है, जो आदिवासी अधिकारों का हनन करती है और कानूनी व विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाती है।”
कांग्रेस ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से सोनिया गांधी के लेख के अंश साझा करते हुए कहा कि जब शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों का अस्तित्व ही दांव पर लगा हो, तो देश की सामूहिक अंतरात्मा चुप नहीं रह सकती। पार्टी ने इस परियोजना को एक अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र के बड़े पैमाने पर विनाश का प्रयास बताते कहा कि भावी पीढ़ियों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता एक अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र के इतने बड़े पैमाने पर विनाश की अनुमति नहीं दे सकती। हमें न्याय के इस उपहास और हमारे राष्ट्रीय मूल्यों के साथ इस विश्वासघात के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
उल्लेखनीय है कि सोनिया गांधी ने सोमवार को एक अंग्रेजी अखबार में अपने लेख निकोबार में पारिस्थितिक आपदा का निर्माण’ में ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित मेगा-इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर चिंता जाहिर की। उन्होंने ग्रेट निकोबार मेगा-इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना को एक गंभीर गलती बताया है, जो 72,000 करोड़ रुपये की लागत से स्वदेशी जनजातियों और अनूठे पारिस्थितिक तंत्र को खतरे में डाल रही है। यह परियोजना निकोबारी और शोम्पेन जनजातियों को उनके पैतृक गांवों से स्थायी रूप से विस्थापित करेगी, जिन्हें 2004 की सुनामी के बाद पहले ही उजाड़ा जा चुका है। शोम्पेन नीति, जो जनजातियों के कल्याण को प्राथमिकता देती है, का उल्लंघन करते हुए परियोजना उनके संरक्षित क्षेत्र को नष्ट कर रही है। सरकार ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और जनजातीय परिषद से परामर्श नहीं किया और सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन में जनजातियों को हितधारक मानने से भी परहेज किया। उन्होंने बताया कि जनजातीय समुदायों की राय की अनदेखी की गई, जनजातीय परिषद का फर्जी सहमति पत्र लिया गया और वन अधिकार अधिनियम तथा भूमि अधिग्रहण कानून का पालन नहीं किया गया।
उन्होंने लेख में कहा कि पारिस्थितिक रूप से यह परियोजना द्वीप के 15 फीसदी वर्षावन को नष्ट करेगी, जिसमें 8.5 लाख से 58 लाख पेड़ काटे जा सकते हैं। क्षतिपूर्ति वनीकरण का प्रस्ताव हरियाणा में है, जो पारिस्थितिक रूप से असंगत और अप्रभावी है। बंदरगाह का निर्माण तटीय विनियमन क्षेत्र 1ए में प्रस्तावित है, जहां कछुए के घोंसले और प्रवाल भित्तियां हैं, जिसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने भी पुष्ट किया। फिर भी, सरकार ने इसे पुनर्वर्गीकृत करने के लिए अपारदर्शी तरीके अपनाए। यह परियोजना भूकंप-संवेदनशील क्षेत्र में है, जहां 2004 की सुनामी और 2025 का भूकंप खतरे की याद दिलाते हैं। गांधी ने इस परियोजना को जनजातीय अधिकारों, कानूनी प्रक्रियाओं और राष्ट्रीय मूल्यों के साथ विश्वासघात करार देते हुए इसके खिलाफ आवाज उठाने की अपील की।

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