यमुना का जलस्तर खतरे के निशान से नीचे, हथिनीकुंड से पानी आना जारी

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: दिल्ली में यमुना का जलस्तर तेजी से घट रहा है। जलस्तर शनिवार को रात 10 बजे कम होकर 205.91 मीटर पर आ गया, जो कई दिनों से 207 मीटर के ऊपर था। हालांकि जलस्तर अब भी खतरे के निशान 205.33 मीटर से ऊपर है। दिल्ली में चेतावनी का निशान 204.50 मीटर जबकि खतरे का निशान 205.33 मीटर है। जलस्तर 206 मीटर पर पहुंचने के बाद नदी के आसपास रहने वालों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाता है। यमुना के जलस्तर को आज रात तक खतरे के निशान के नीचे आने की उम्मीद है।
अधिकारियों के अनुसार स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है और सभी संबंधित एजेंसियां अलर्ट पर हैं। नदी के पास निचले इलाकों में रहने वाले लोगों के अस्थायी आवास के लिए दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे, मयूर विहार, कश्मीरी गेट और आसपास के इलाकों में टेंट लगाए गए हैं। पूर्वी दिल्ली में 7,200 लोग प्रभावित हुए हैं, जहां 7 राहत शिविर लगाए गए हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 5,200 लोग प्रभावित हुए हैं और 13 राहत शिविर स्थापित किए गए हैं।
दक्षिण-पूर्वी दिल्ली में 4,200 लोग प्रभावित हुए हैं और 8 राहत शिविर लगाए गए हैं। उत्तरी दिल्ली में 1,350 लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं और उन्हें 6 राहत शिविरों में रखा गया है। शाहदरा जिले में 30 लोग प्रभावित हुए हैं और 1 राहत शिविर लगाया गया है। राहत शिविरों में स्थानांतरित किए गए लोगों का कहना है कि अस्थायी शिविररों में अपने वर्तमान प्रवास को लेकर चिंतित नहीं हैं। उनका कहना है कि यहां ज्यादा परेशानी नहीं हो रही है और खाना व छत तो है।
माता-पिता सबसे ज्यादा अपने बच्चों के बारे में चिंतित हैं, जिन्होंने अपनी स्कूल यूनिफॉर्म व किताबें खो दी है। ऑटो-रिक्शा चालक रमेश ने कहा कि कपड़ों और बर्तनों से लेकर बिजली के उपकरणों व फर्नीचर तक सबकुछ बर्बाद हो गया है। हमें किराने का सामान, स्कूल की कॉपियां और यूनिफॉर्म समेत सबकुछ फिर से खरीदना होगा। एक प्रभावित परिवार ने कहा कि घर तक जाने वाली गलियों में कीचड़ भरा होने के कारण सबकुछ खुद ही साफ करना पड़ता है।
तीन बच्चों की मां सुनीता देवी ने कहा कि घुटनों तक कीचड़ साफ करने में कई दिन और कभी-कभी हफ्तों लग जाते हैं। उसके बाद ही घर की ठीक से सफाई हो पाती है। उन्होंने कहा कि शिविर अस्थायी आश्रय और राहत प्रदान करते हैं, लेकिन बाढ़ की असली कीमत कीचड़ से सने बिना बिजली, क्षतिग्रस्त मीटर और टूटी तारों वाले घरों में लौटने पर महसूस होगी। उन्होंने कहा कि बाढ़ एक हफ्ते तक रहती है, लेकिन इसका असर महीनों तक रहता है।
दिल्ली में बाढ़ का पानी बढ़ने के कारण जंगली जानवर अपने बिलों से बाहर निकल रहे हैं और रेंगने वाले जीव असामान्य जगहों पर नजर आने लगे हैं। मेट्रो स्टेशन से लेकर दफ्तरों और रिहायशी इलाकों तक के लोग इस मानसून में वन्यजीव बचावकर्मियों को मदद के लिए लगातार फोन कॉल कर रहे हैं।
वन्यजीव संरक्षण संगठन वाइल्डलाइफ एसओएस ने कहा कि मयूर विहार-1 मेट्रो स्टेशन के कर्मचारियों ने पैंट्री क्षेत्र में एक गोह (मॉनिटर छिपकली) को देखा और सहायता के लिए संपर्क किया। वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी कार्तिक सत्यनारायण ने कहा कि भारी बारिश और बाढ़ के कारण रेंगने वाले जीव अपने प्राकृतिक वास से बाहर आ जाते हैं और सूखी जगहों की तलाश में इंसानों के बीच पहुंच जाते हैं।
बाढ़ से बेघर हुए 70 से अधिक परिवार अब दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर अक्षरधाम के पास अस्थायी तंबुओं में रह रहे हैं। गीली जमीन पर सोना, मच्छरों से बचना और तंबुओं में जैसे-तैसे रहना उनकी मजबूरी बन गई है। तंबू के बाहर बैठी गंगा देवी ने सवाल किया कि गरीब आखिर जाएं तो कहां जाएं। कभी तोड़फोड़, कभी बारिश और अब बाढ़। हम रोजाना दिल्ली का कचरा उठाकर 300 से 400 रुपए कमाते हैं। कोई कचरा बीनता है, कोई नाली साफ करता है, कोई फूल बेचता है, अब हम कहां जाएं?
फूल बेचने वाले राम कुमार ने कहा कि दिल्ली की उमस भरी रातों में सोना मुश्किल है। ऊपर से एक्सप्रेसवे का लगातार शोर बेचैनी बढ़ा देता है। कभी पानी टपकने लगता है, मच्छर काटते हैं, बाहर की हर आवाज हमें सतर्क कर देती है। तंबू में ताला भी नहीं लगा सकते। एक आंख खोलकर जी रहे हैं। फिर भी शिविर में साझा जज्बा दिखता है। राशन खत्म होने पर परिवार एक-दूसरे से खाना बांटते हैं। एक फूल बेचने वाला तंबुओं के पास छोटे-छोटे हार बनाने लगा है ताकि राहगीरों को बेच सके।