मोदी पर्यावरण संरक्षण को बना रहे है जन आंदोलन:पूनावाला

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: ऐसी दुनिया में जहां एक तरफ जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव स्पष्ट हैं और दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन से इनकार करने वाली गैर-जिम्मेदाराना और अपरिपक्व सोच मौजूद है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को ऐसी आशा की किरण बनाया है, जो पर्यावरण संरक्षण को विकसित भारत 2047 के रोडमैप में शामिल कर रहा है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने अपने एक लेख में कहा कि श्री मोदी का पर्यावरण के प्रति जुनून गुजरात में उनके मुख्यमंत्री काल से शुरू हुआ जहां उन्होंने 2009 में भारत का पहला जलवायु परिवर्तन विभाग स्थापित किया। यह उस समय एक अग्रणी कदम था जब वैश्विक जलवायु चर्चा प्रारंभिक थी और इनकार आम था। उनकी ज्योतिग्राम योजना ने गांवों में 24 घंटे एवं सात दिनों बिजली पहुंचाई, जिससे डीजल का उपयोग कम हुआ और नवीकरणीय ऊर्जा की नींव रखी गई। चारणका सोलर पार्क ने गुजरात को सौर ऊर्जा का पावरहाउस बनाया।
उन्होंने लिखा है कि पीएम मोदी की पुस्तक, सुविधाजनक कार्रवाई: जलवायु परिवर्तन पर गुजरात की प्रतिक्रिया (2011) में नहर के ऊपर सौर पैनल और टिकाऊ शहरी नियोजन जैसे नवाचारों का वर्णन है। यह प्रतिबद्धता, जो मुख्यमंत्री मोदी से प्रधानमंत्री मोदी बनने के बाद और मजबूत हुई, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पंच परिवर्तन कार्यक्रम के साथ पूरी तरह से संरेखित है, जिसमें पर्यावरण को सामाजिक परिवर्तन के पांच स्तंभों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जो टिकाऊ जीवन और समुदाय-आधारित संरक्षण पर जोर देता है। पीएम मोदी को प्रकृति को संस्कृति से जोड़ने और टिकाऊ भविष्य के लिए रोडमैप बनाने का श्रेय दिया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि श्री मोदी के नेतृत्व में भारत की जलवायु उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। सीओपी26 (2021) में उन्होंने पंचामृत प्रतिज्ञा की घोषणा की: 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा, 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा, एक अरब टन कार्बन उत्सर्जन में कटौती, 2005 के स्तर से 45 प्रतिशत कार्बन तीव्रता में कमी, और 2070 तक नेट-जीरो। जून 2025 तक भारत ने 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्य हासिल कर लिया। 2023 तक उत्सर्जन तीव्रता 2005 के स्तर से 33 प्रतिशत कम हो गई, जो 2030 का एक और लक्ष्य पार करता है। ये मील के पत्थर विकास और हरित जिम्मेदारी के बीच दुर्लभ संतुलन को दर्शाते हैं जबकि कुछ विकसित राष्ट्र ‘ग्रीड’ को ‘ग्रीन’ पर प्राथमिकता देते हैं।
श्री पूनावाला ने लिखा कि 2014 में 78 गीगावाट से भारत की नवीकरणीय क्षमता 2023 तक 174 गीगावाट तक पहुंच गई, जिसमें सौर और पवन ऊर्जा अग्रणी हैं।पीएम-कुसुम योजना ने किसानों को सौर सिंचाई के साथ सशक्त बनाया, जिससे उत्सर्जन कम हुआ और आजीविका में सुधार हुआ। पीएम सूर्य घरमुफ्त बिजली योजना (2024) एक करोड़ घरों में रूफटॉप सौर पैनल लगाने का लक्ष्य रखती है, जिससे नागरिक स्वच्छ ऊर्जा उत्पादक बन रहे हैंऔर पर्यावरण या सरकारी खजाने पर बोझ डाले बिना मुफ्त बिजली प्राप्त कर रहे हैं। नागरिक अतिरिक्त बिजली बेचकर पैसे भी कमा सकते हैं!
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसएस), जिसे फ्रांस के साथ सह-स्थापित किया गया और ब्रिटेन के साथ वन सन , वन वर्ल्ड , वन ग्रिड ने भारत के सौर नेतृत्व को वैश्विक वास्तविकता बना दिया । 2025 तक भारत की सौरक्षमता 100 गीगावाट तक पहुंच गई जो गुजरात मॉडल मुख्यमंत्री मोदी ने शुरू किया था, वह अब पूरे देश में अपनाया जा रहा है।
उन्होंने लिखा कि भारत का वैश्विक रुख उसकी जिम्मेदारी को दर्शाता है। जलवायु योद्धा मोदी की मिशन लाइफ (2022) वैश्विक स्तर पर टिकाऊ जीवन शैली को बढ़ावा देती है, जो सचेत उपभोग को प्रोत्साहित करती है और महात्मा गांधी की शिक्षाओं के अनुरूप है। श्री महात्मा गांधी ने कहा था ‘दुनिया में सभी की जरूरत के लिए पर्याप्त है लेकिन सभी के लालच के लिए नहीं।’
सीओपी26 और सीओपी28 में, भारत ने विकसित देशों से 100 अरब डॉलर की जलवायु वित्त प्रतिबद्धता को पूरा करने की मांग की और ग्लोबल साउथ की ओर से जलवायु न्याय की वकालत की। विश्व की 17 प्रतिशत आबादी के साथ केवल चार प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन में योगदान देने के बावजूद, भारत बहाने नहीं, बल्कि कार्रवाई के साथ नेतृत्व करता है। इसके विपरीत, कुछ विकसित देशों की लापरवाही उजागर होती है। अमेरिका और कुछ अन्य मुल्क जो 1850 से संचयी उत्सर्जन का 50 प्रतिशत से अधिक जिम्मेदार हैं, अक्सर जलवायु वित्त पर वादे पूरे करने में विफल रहे हैं। अमेरिका का पेरिस समझौते से हटना (2017–2020) वैश्विक प्रयासों में बाधा बना। अमेरिका में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन (15.2 टन सीओ2) भारत के (1.9 टन) की तुलना में कहीं अधिक है। पर भारत, स्वतंत्र रूप से नवाचार कर रहा है और अपने आत्मनिर्भर मॉडल के माध्यम से लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए लाखों लोगों का उत्थान कर क्लाइमेट चेंज पे नैतिक और व्यावहारिक श्रेष्ठता साबित कर रहा है।
उन्होंने लिखा कि घरेलू स्तर पर पीएम मोदी की नीतियां पर्यावरण की रक्षा करते हुए जीवन को बदल रही हैं। स्वच्छ भारत मिशन ने 10 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए, जिससे 2019 तक गांव “खुले में शौच मुक्त” हो गए। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम 130 से अधिक शहरों में 2026 तक 20–30 प्रतिशत कणीय प्रदूषणमें कमी का लक्ष्य रखता है। 2022 का सिंगल यूज प्लास्टिक प्रतिबंध और व्यावहारिक पर्यावरण कानून प्रवर्तन के साथ प्रगति को संतुलित करते हैं। ग्रीन हाईवे नीति और शहरी वनीकरण विकास में स्थिरता को एकीकृत करते हैं। राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनएपीसीसी), जिसमें सौर, कृषि मिशन शामिल हैं, पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के साथ संरेखित है।
उन्होंने लिखा कि पीएम मोदी की प्रतिभा पर्यावरण को जनता का मुद्दा बनाने में निहित है और उन्होंने जंगल और जमीन को जन-जन से जोड़ा । ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान नागरिकों को अपनी माताओं के लिए पेड़ लगाने के लिए आमंत्रित करता है, जो इमोशन को इकोलॉजी के साथ , परिवार को पर्यावरण के साथ और मां को माटी से जोड़ता है। जनवरी 2025 तक, 140 करोड़ के लक्ष्य की ओर 109 करोड़ पौधे लगाए गए। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जो 2016 में शुरू हुई, पर्यावरणीय स्थिरता और महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए गेम-चेंजर रही है। अगस्त 2025 तक 10 करोड़ से अधिक ग्रामीण और वंचित परिवारों को एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए गए, जिससे लकड़ी और गोबर जैसे पारंपरिक बायोमास ईंधन का उपयोग कम हुआ। इससे प्रति वर्ष अनुमानित 38 मिलियन टन सीओ2 समकक्ष उत्सर्जन कम हुआ, क्योंकि एलपीजी बायोमास की तुलना में स्वच्छ जलता है। महत्वपूर्ण रूप से, उज्ज्वला ने लाखों महिलाओं को इनडोर वायु प्रदूषण से बचाया। चूल्हों से धुआं खत्म करके, उज्ज्वला ने श्वसनरोगों को कम किया, महिलाओं को स्वच्छ रसोईघरों के साथ सशक्त बनाया और महिलाओं को उत्पादक गतिविधियों के लिए समय बचाया।
उन्होंने लिखा कि पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही हैं। सीओपी 26 में उन्होंने कोयले के समझौते को सुरक्षित किया, जिससे विकासशील देशों की रक्षा हुई। उनके नेतृत्व में एक पेड़ मां के नाम और वनीकरण ने वन क्षेत्र को 25.02 तक बढ़ाया।
श्री यादव ने संरक्षित क्षेत्रों को 745 से बढ़ाकर 1,022 तक किया, जो 2025 तक भारत के 5.43 प्रतिशत भूमि को कवर करता है। उनके कार्यों से भारत का वन्यजीव संरक्षण भी सफल हो रहा है। 2022 टाइगर अनुमान में 3,682 बाघों की सूचना दी गई, जो 57 रिजर्व में है और वैश्विक आबादी का 70 प्रतिशत है। प्रोजेक्ट चीता हो या 33 हाथी रिजर्व और 220 सामुदायिक रिजर्व – भारत जैव विविधता और मानव जरूरतों को बखूबी संतुलित कर रहा है।
नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पार करने से लेकर एक पेड़ मां के नाम जैसे अभियानों को शुरू करने तक श्री मोदी और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने दिखाया है कि एक विकासशील राष्ट्र वैश्विक नेतृत्व कैसे कर सकता है, जबकि कुछ विकसित देश असफल हो रहे हैं और अपनी ज़िम्मेदारी से हट रहे हैं। भारत का जिम्मेदार जलवायु कार्य, नीति और जन भागीदारी का मिश्रण है और दुनिया के लिए एक मॉडल प्रदान करता है। यह वास्तव में एक ऐसा ‘ग्रीन फ्लैग’ है जिसका पूरी दुनिया समर्थन कर रही है।

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