एक्टर से हिट डायरेक्टर बने, बेटे ऋतिक रोशन को दी बुलंदियां

मुंबई{ गहरी खोज }: बॉलीवुड की दुनिया में कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने पर्दे पर अलग-अलग भूमिकाएं निभाकर अपनी पहचान बनाई, लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं जो कैमरे के पीछे खड़े होकर भी उतने ही चमके जितना कैमरे के सामने। राकेश रोशन उन्हीं में से एक हैं। 6 सितंबर 1949 को जन्मे इस अभिनेता-निर्देशक ने न सिर्फ अपनी मेहनत से इंडस्ट्री में जगह बनाई बल्कि अपने निर्देशन और फिल्मों की कहानियों से हिंदी सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। आज जब वह 74 साल के हो चुके हैं, तो उनका सफर अपने आप में प्रेरणा है।
राकेश रोशन का फिल्मी सफर उनके पिता से ही जुड़ता है। उनके पिता मशहूर संगीतकार रोशन थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा को कई यादगार धुनें दीं। संगीत से जुड़े माहौल में पले-बढ़े राकेश रोशन का झुकाव फिल्मों की तरफ होना स्वाभाविक था। करियर की शुरुआत उन्होंने मशहूर फिल्ममेकर मोहन कुमार के असिस्टेंट के तौर पर की। इसके बाद अभिनेता के रूप में उनका सफर 1970 में फिल्म ‘घर-घर की कहानी’ से शुरू हुआ।
70 और 80 के दशक में वह कई फिल्मों का हिस्सा बने। हालांकि उन्हें बड़े हीरो के तौर पर सफलता नहीं मिल पाई, लेकिन ‘खट्टा-मीठा’, ‘तीसरी आंख’, ‘खेल-खेल में’, ‘कुबूलियत’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को सराहा गया। राकेश रोशन ने 80 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, जिसमें उन्होंने कभी दोस्त, कभी भाई और कभी सपोर्टिंग रोल निभाए।
अभिनेता के तौर पर उन्हें बहुत बड़ी सफलता भले ही न मिली हो, लेकिन 1987 में जब उन्होंने निर्देशन की ओर कदम बढ़ाया, तो उनकी किस्मत बदल गई। बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म ‘खुदगर्ज’ थी। जितेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा और गोविंदा जैसे सितारों से सजी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार सफलता पाई। यहीं से राकेश रोशन ने यह साबित कर दिया कि वह निर्देशन की दुनिया में लंबी पारी खेलने आए हैं।
इसके बाद उन्होंने लगातार ऐसी फिल्में दीं जिनके नाम ‘के’ अक्षर से शुरू होते रहे। यह उनकी खास पहचान बन गई। ‘खून भरी मांग’ (1988) में रेखा को केंद्र में रखकर बनाई गई कहानी ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल कर दिया। फिर किशन ‘कन्हैया’, ‘खेल’, ‘किंग अंकल’ जैसी पारिवारिक और कॉमेडी फिल्मों ने उन्हें दर्शकों के बीच अलग पहचान दी।
साल 1995 में आई ‘करण अर्जुन’ उनकी सबसे बड़ी फिल्मों में से एक रही। सलमान खान और शाहरुख खान जैसे सुपरस्टार्स को साथ लेकर बनाई गई इस फिल्म ने पुनर्जन्म जैसे विषय को बड़े पर्दे पर फिर से जिंदा कर दिया। फिल्म का संगीत, संवाद और एक्शन दर्शकों की जुबान पर चढ़ गया। फिर आई 1997 की ‘कोयला’, जिसमें शाहरुख खान और माधुरी दीक्षित की जोड़ी थी। फिल्म ने मिक्स रिस्पॉन्स पाया, लेकिन शाहरुख के मूक किरदार और फिल्म के भव्य सेट्स को दर्शकों ने नोटिस किया।
साल 2000 राकेश रोशन के करियर का टर्निंग प्वाइंट बना, जब उन्होंने अपने बेटे ऋतिक रोशन को ‘कहो ना प्यार है’ से लॉन्च किया। यह फिल्म जबरदस्त हिट साबित हुई और ऋतिक रातों-रात स्टार बन गए। यह फिल्म आज भी बॉलीवुड की सबसे सफल डेब्यू फिल्मों में गिनी जाती है, जिसने 92 अवॉर्ड्स जीतकर रिकॉर्ड बनाया।
बेटे ऋतिक को लॉन्च करना राकेश रोशन के करियर का सबसे महत्वपूर्ण फैसला था। उन्होंने केवल एक फिल्म से ही बेटे को स्टारडम दिला दिया। इसके बाद ‘कोई मिल गया’ (2003) के जरिए उन्होंने इंडस्ट्री को विज्ञान-कथा और एलियन बेस्ड फिल्म दी, जो हिंदी सिनेमा में अनोखा प्रयोग थी।
इसके बाद उन्होंने ‘कृष’ (2006) और ‘कृष 3’ (2013) बनाई, जिसने भारतीय सिनेमा को अपना पहला सुपरहीरो दिया। ऋतिक की एक्टिंग, विजुअल इफेक्ट्स और कहानी कहने का अंदाज दर्शकों को खूब भाया। यही वजह है कि आज भी दर्शक ‘कृष 4’ का इंतजार कर रहे हैं।
राकेश रोशन ने 1980 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी फिल्मक्राफ्ट शुरू की थी। इसके बैनर तले उन्होंने आपके दीवाने, कामचोर और शुभकामना जैसी फिल्में बनाई। हालांकि शुरुआती फिल्मों को ज्यादा सफलता नहीं मिली, लेकिन जैसे ही उन्होंने निर्देशन संभाला, फिल्मक्राफ्ट का नाम इंडस्ट्री में चमक उठा। उनकी फिल्मों की एक खासियत रही है- परिवार और भावनाओं को जोड़ने वाली कहानियां। चाहे वो ‘खून भरी मांग’ जैसी महिला-प्रधान कहानी हो या ‘करण अर्जुन’ जैसी मेलोड्रामा फिल्म, उन्होंने हमेशा दर्शकों को कुछ नया दिया।