बीमारी एवं चोट के चलते देश में हर साल 35 हजार लोग अपने आंखों की रोशनी गंवा देते हैंः एम्स

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: देश में गंभीर बीमारी के चलते अथवा चोट लगने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 35 हजार लोग अपने आंखों की रोशनी गंवा देते हैं। इनमें बच्चों और वयस्कों की संख्या सर्वाधिक होने से जहां बच्चों की शिक्षा बाधित होती है। वहीं, कामकाजी लोगों के रोजगार पर दुष्प्रभाव पड़ता है और देखभाल करने वालों पर वित्तीय एवं भावनात्मक दबाव बढ़ जाता है।
यह जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के डॉ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के प्रोफेसर और राष्ट्रीय नेत्र बैंक के प्रभारी डॉ. राजेश सिन्हा ने 40 वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के दौरान प्रेसवार्ता में दी। उन्होंने बताया कि वर्तमान में भारत में कॉर्नियल अंधता के शिकार लोगों की संख्या करीब 12 लाख है। जिसमें प्रतिवर्ष 35 हजार नए मामले जुड़ जाते हैं। ऐसे में देश को बड़ी संख्या में कॉर्निया की जरुरत है जिसे नेत्रदान के जरिये पूरा किया जा सकता है। इसके लिए एम्स दिल्ली समाज में जागरूकता लाने का प्रयास कर रहा है और व्यापक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है।
डॉ. सिन्हा ने कहा कि 12 लाख से अधिक नेत्रहीनों को कॉर्नियल अंधता से निजात दिलाने के लिए प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख कॉर्नियल प्रत्यारोपण जरुरी है, लेकिन नेत्रदान को लेकर जागरूकता के अभाव में प्रतिवर्ष 60 से 70 हजार कॉर्निया ही देशभर से दान में मिल पाते हैं और इनमें से करीब 60 प्रतिशत ही उपयोग करने के लायक होते हैं। हालांकि, राष्ट्रीय नेत्र बैंक की कॉर्निया प्रत्यारोपण सफलता दर 85 प्रतिशत वार्षिक है जो नेत्रहीनता से जूझ रहे लोगों की जिंदगी में उजाला भरता है। यहां प्रतिवर्ष 2200-2300 कॉर्निया दान में आते हैं।
डॉ. सिन्हा ने बताया कि आधुनिक विज्ञान सिंथेटिक कॉर्निया या आर्टिफिशियल कॉर्निया पर भी काम कर रहा है। इसके तहत एम्स के नेत्र विशेषज्ञों ने 70 से ज्यादा मरीजों की आंखों में सिंथेटिक कॉर्निया सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया है। इसके परिणाम काफी अच्छे आए हैं। हालांकि, इसे सिर्फ केराटोकोनस रोग से पीड़ित मरीज की आंख की रोशनी में सुधार के लिए उपयोग किया जा सकता है। इस संबंध में एम्स के विशेषज्ञ रिसर्च कर रहे हैं ताकि इसे कॉर्निया के सभी प्रकारों के लिए इस्तेमाल किया जा सके।

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