चेतावनी देती प्रकृति

संपादकीय { गहरी खोज }:पंजाब के 10 जिलों में 1000 से अधिक गांव बाढ़ की चपेट में हैं। फसल और पशुधन की हानि से वित्तीय नुकसान और घरों से बेघर हुए लोगों की कठिनाई लगातार हो रही बारिश के कारण बढ़ती चली जा रही है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में बादल फटने और लगातार बारिश के कारण हो रहे भूस्खलन ने जो तबाही की है उसको देखकर दिल कांप उठता है। प्रकृति के व्यवहार को देखते हुए लगता है कि प्रकृति अब इंसान को उसके किए की सजा दे रही है। विकास के नाम पर जो छेड़छाड़ इंसान ने जंगलों, पहाड़ों से की और जिस तरह नदियों को प्रदूषित किया अब इंसान अपने अतीत में किए कृत्यों का दंड ही झेलता दिख रहा है। वैष्णों देवी माता तीर्थ स्थल के विकास के नाम पर जो कुछ किया गया वह तीर्थ स्थल धीरे धीरे अब पर्यटन स्थल में बदल रहा है और उसका परिणाम हाल में हुआ भूस्खलन है जिस में 40 से अधिक भक्तों की जान गई है।
केदारनाथ धाम में चालू यात्रा में शुरुआती तीन महीनों में कितना कचरा पैदा हुआ उसको लेकर सूचना अधिकार के तहत दायर किए गए आवेदन के उत्तर में नगर पंचायत केदारनाथ ने बताया कि मई से जुलाई 2025 के बीच इस हिमालयी धाम में कुछ 17.6 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न हुआ। इसमें से केवल 7.1 मीट्रिक टन का पुनर्चक्रण हो सका जबकि 10.5 मीट्रिक टन कचरा बिना शोधन के फेंक दिया गया। आंकड़ों के अनुसार मई में 8.4 मीट्रिक टन, जून में 5.6 मीट्रिक टन और जुलाई में 3.6 मीट्रिक टन कचरा पैदा हुआ। इन महीनों में क्रमशः 3.2, 2.4 और 1.5 मीट्रिक टन कचरे का ही प्रसंस्करण हुआ। शेष कचरे को आधार शिविर के पास बनाए गए नई ‘लैंडफिल’ में डाला गया जिसकी क्षमता 1500 फुट है। 2022 में केदारनाथ में 13.85 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न हुआ है।
अमित गुप्ता को पहले मिले आरटीआई जवाबों से पता चला था कि 2022 से 2024 के बीच धाम में कुल 72.53 मीट्रिक टन कचरा पैदा हुआ, जिसमें से केवल 32 फीसद का शोधन हो सका और शेष 68 फीसद बिना शोधन के फेंक दिया गया। इन तीन वर्षों में केदारनाथ में 49.18 मीट्रिक टन जैविक और 23.35 मीट्रिक टन अजैविक कचरा जमा हुआ। इसके बावजूद न तो कोई आधिकारिक शिकायत दर्ज हुई और न ही किसी पर जुर्माना लगाया गया है। गुप्ता ने कहा, केदारनाथ में समुचित कचरा शोधन सुविधा नहीं है, जिसके कारण भारी मात्रा में कचरा सीधे लैंडफिल में डाला जा रहा है। एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध का सख्ती से पालन कराने की आवश्यकता है। समुद्रतल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ मंदिर चार धाम यात्रा के सबसे प्रमुख स्थलों में एक है। यह हर साल अप्रैल या मई में खुलता है और बर्फबारी के कारण अक्टूबर या नवंबर में बंद कर दिया जाता है। इस वर्ष जुलाई के अंत तक 14 लाख से अधिक श्रद्धालु धाम पहुंच चुके हैं, जो चार धाम स्थलों में सर्वाधिक है। यह तीर्थयात्रा स्थानीय अर्थव्यवस्था का भी बड़ा सहारा है। वर्ष 2025 की यात्रा के शुरुआती 48 दिनों में परिवहन, आतिथ्य, घोड़े-खच्चर और हेलिकाप्टर सेवाओं से करीब 300 करोड़ रुपए का कारोबार हुआ। केदारनाथ में जमा हो रहा कचरा करीब-करीब सभी तीर्थस्थलों और पर्यटन स्थलों की कहानी दर्शाता है। पहाड़ों व वनों के साथ छेड़छाड़ और वहां बढ़ते कचरे के ढेर ही प्रकृति के कहर के मुख्य कारण हैं। नदियों के किनारों पर और वनों में हो रहे अवैध निर्माण प्रकृति के कहर को एक बड़ी आपदा में तबदील कर देते हैं। प्रकृति हमें चेतावनी दे रही है अगर अभी भी हम नहीं सुधरे तो निकट भविष्य में विनाश लीला सब चौपट कर देगी।