₹73,000 कमाने वाली पत्नी की गुजारा भत्ता मांग खारिज

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इलाहाबाद{ गहरी खोज } : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए एक पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया, जो प्रति माह ₹73,000 की तनख्वाह कमाती है। यह मामला तब चर्चा में आया जब पत्नी ने अपने पति से ₹15,000 मासिक गुजारा भत्ता मांगा था, लेकिन हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के इस आदेश को पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) में कार्यरत है, अपनी आर्थिक स्थिति के आधार पर स्वयं को संभालने में सक्षम है। हालांकि, कोर्ट ने नाबालिग बच्चे के लिए ₹25,000 मासिक गुजारा भत्ता बरकरार रखा।
यह मामला पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद से शुरू हुआ, जिसके चलते पत्नी अपने नाबालिग बच्चे के साथ फरवरी 2023 से अलग रह रही है। परिवार न्यायालय ने पति को पत्नी के लिए ₹15,000 और बच्चे के लिए ₹25,000 मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। पति ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट में जस्टिस राजन राय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने पाया कि पत्नी TCS में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में ₹73,000 मासिक वेतन कमा रही है। इसके अलावा, उसने जनवरी 2023 में लखनऊ के बख्शी का तालाब में ₹80,43,409 की कीमत का एक फ्लैट खरीदा, जिसके लिए उसने ₹47,670 का चेक बिल्डर को दिया था।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पत्नी की आय और संपत्ति को देखते हुए वह अपने जीवन-यापन के लिए स्वतंत्र है। उसने मई 2023 के हलफनामे में अपनी आय ₹50,000 मासिक बताई थी, लेकिन बाद में यह साबित हुआ कि उसकी वास्तविक आय ₹73,000 है। कोर्ट ने माना कि यह राशि उसे आत्मनिर्भर बनाती है, इसलिए गुजारा भत्ता देना उचित नहीं है। हालांकि, बच्चे के भरण-पोषण के लिए ₹25,000 मासिक राशि को उचित ठहराया गया, क्योंकि बच्चे की जरूरतें अलग हैं। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पति की आय और स्थिति को देखते हुए बच्चे के लिए यह राशि न्यायसंगत है।
पति और पत्नी के बीच विवाद 2020 में शुरू हुआ, जब पत्नी ने पति पर घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया। पति ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी की आय और संपत्ति उसे स्वतंत्र बनाती है। हाईकोर्ट ने पति के तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि गुजारा भत्ता केवल उन मामलों में दिया जाता है, जहां पत्नी आर्थिक रूप से असमर्थ हो। यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में एक नई मिसाल कायम करता है, जहां आर्थिक रूप से सक्षम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने से इनकार किया जा रहा है। यह निर्णय उन मामलों में बहस को बढ़ावा दे सकता है, जहां गुजारा भत्ता को विलासिता के लिए दुरुपयोग करने की आशंका हो। लखनऊ हाईकोर्ट का यह फैसला आत्मनिर्भरता और निष्पक्षता पर जोर देता है।

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