विधायी संस्थाओं की गरिमा कम होना चिंता का विषय : ओम बिरला

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि विधायी संस्थाओं की गरिमा कम होना सभी जनप्रतिनिधियों के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सदस्यों के विशेषाधिकार को सदन की गरिमा को कम करने की स्वतंत्रता नहीं समझा जाना चाहिए। उन्होंने विट्ठलभाई पटेल के केंद्रीय विधानसभा के प्रथम भारतीय अध्यक्ष के पद पर निर्वाचन के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर सोमवार को दिल्ली विधानसभा में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में समापन भाषण देते हुए ये टिप्पणियां कीं।
बिरला ने कहा कि हाल के दिनों में विधायी निकायों की गरिमा कम हुई है, जो चिंता का विषय है। इस शताब्दी वर्ष पर जनप्रतिनिधियों को विधायी निकायों में स्वतंत्र, निष्पक्ष और गरिमापूर्ण चर्चा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को समझना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ आना चाहि कि विधायी निकायों में विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति जारी रहे, तथा सहमति और असहमति दोनों के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत किया जाए।
बिरला ने विधिनिर्माताओं से उचित आचार संहिता का पालन करने का आह्वान किया और कहा कि जनता सदन के अंदर और बाहर उनके कार्यों और आचरण को देखती है। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को यह याद रखना चाहिए कि उनकी भाषा, विचार और अभिव्यक्ति लोकतंत्र की ताकत हैं और उन्हें सम्मानजनक और गरिमापूर्ण बनाए रखना आवश्यक है। जनप्रतिनिधियों के आचरण के बारे में आगे अपने विचार व्यक्त करते हुए बिरला ने कहा कि विधायी निकायों के सदस्यों को अपने निकायों के नियमों, परंपराओं और परम्पराओं को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि सदन को सदैव जनता की आवाज बनना चाहिए तथा सदन में बनाए गए कानून जनहित में होने चाहिए। बिरला ने आगे कहा कि इस संबंध में पीठासीन अधिकारी की जिम्मेदारी बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वर्तमान और भावी पीठासीन अधिकारी सदन की कार्यवाही को स्वतंत्र, निष्पक्ष और गरिमापूर्ण बनाए रखेंगे।
दिल्ली विधानसभा भवन के ऐतिहासिक स्वरुप के बारे में बात करते हुए बिरला ने कहा कि यह सदन उन नेताओं के विचारों और अभिव्यक्ति का साक्षी रहा है जिन्होंने विधायी माध्यमों से स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहा कि इस शताब्दी वर्ष पर विट्ठलभाई पटेल का व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन; अध्यक्ष के रूप में और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका हर भारतीय के लिए प्रेरणादायी है।
विट्ठलभाई पटेल की विरासत का उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा कि उनके द्वारा स्थापित परंपराओं को बाद में भारत के संविधान में शामिल किया गया तथा राज्य सभा और लोक सभा दोनों के अपने स्वतंत्र सचिवालय हैं। संविधान निर्माताओं ने संसद सदस्यों और विधान सभाओं के विशेषाधिकार के रूप में सदन के भीतर सरकार की आलोचना करने की पूरी स्वतंत्रता दी। तथापि उन्होंने यह भी कहा कि इस विशेषाधिकार के साथ ही उचित आचरण भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
बिरला ने सभी राजनीतिक दलों से विधायी संस्थाओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व पर विचार करने का आह्वान किया और कहा कि संवाद, चर्चा, सहमति और असहमति भारतीय लोकतंत्र की ताकत बनी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि सहमति और असहमति जितनी अधिक विविधतापूर्ण होगी, लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा। उन्होंने कहा कि शताब्दी वर्ष के अवसर पर विट्ठलभाई पटेल की विरासत न केवल राष्ट्र को प्रेरित करेगी बल्कि उसे एक नई दिशा की ओर भी ले जाएगी।
आवासन एवं शहरी मामले तथा विद्युत मंत्री मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय संचार और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ज्योतिरादित्य एम सिंधिया, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता, विभिन्न राज्य विधान सभाओं और परिषदों के पीठासीन अधिकारी, सांसद और विधायक उपस्थित रहे।
केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सत्र को संबोधित करत हुए कहा कि विट्ठलभाई पटेल का नेतृत्व निष्पक्षता और जवाबदेही के मूल्यों की स्थापना करता है, जो आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि सरकारें बदल सकती हैं, परंतु अध्यक्षों का दायित्व सदन की गरिमा, मर्यादा और निष्पक्षता बनाए रखना सदा अपरिवर्तनीय है। उन्होंने ने तकनीक, आईटी प्रणाली और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की रूपांतरणकारी भूमिका पर भी बल दिया। केंद्रीय मंत्री खट्टर ने कहा कि लोकतंत्र का सार पारदर्शिता, जवाबदेही और जनसेवा में निहित है, और विधायकों को आधुनिक उपकरणों को विवेकपूर्ण ढंग से अपनाना चाहिए।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य एम सिंधिया ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की लोकतांत्रिक यात्रा पर विचार रखते हुए कहा कि भारत ‘लोकतंत्र की जननी’ है। उन्होंने कहा कि इसी विधानसभा में स्वतंत्रता सेनानियों और महान नेताओं की आवाजें गूंजी थीं, जिन्होंने देश के संसदीय पथ को आकार दिया। सिंधिया ने जी20 द्वारा भारत के समावेशी लोकतांत्रिक मॉडल की सराहना का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत यह दिखाता है कि 1.4 अरब नागरिकों के स्तर पर भी शासन प्रभावी ढंग से चल सकता है।
सिंधिया ने दिल्ली विधानसभा द्वारा नेशनल ई-विधान एप्लिकेशन (नेवा) और 500 किलोवाट सौर ऊर्जा संयंत्र जैसी पहलों की सराहना की और युवाओं से इस विरासत को 2047 के भारत के लक्ष्य तक जिम्मेदारी से आगे ले जाने का आह्वान किया।
सम्मेलन का समापन करते हुए दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के सतत मार्गदर्शन और सभी गणमान्य अतिथियों एवं प्रतिनिधियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने ने याद दिलाया कि विट्ठलभाई पटेल की ऐतिहासिक घोषणा -‘मैं सभी दलों का हूं’- सदन में निष्पक्षता और प्रत्येक आवाज के प्रति समान सम्मान का सिद्धांत स्थापित करता है।
गुप्ता ने कहा कि सायमन कमीशन के विरुद्ध हुई बहसें, मदन मोहन मालवीय और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नेताओं के ओजस्वी वक्तव्य और महात्मा गांधी की उपस्थिति ने इस विधानसभा को भारत के लोकतांत्रिक संकल्प का जीवंत साक्ष्य बनाया है।