अपराध के पीड़ित, उनके उत्तराधिकारी आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ अपील कर सकते हैं: न्यायालय

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अपराध के पीड़ित, उनके कानूनी उत्तराधिकारी अभियुक्तों को बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर कर सकते हैं। न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि अपराध के शिकार व्यक्ति का अधिकार जितना महत्वपूर्ण है उतना ही सजा पाए आरोपी के अधिकार को भी महत्व दिया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि पीड़ित को कम गंभीर अपराध के लिए दोषसिद्धि के खिलाफ, अपर्याप्त मुआवजा दिए जाने के खिलाफ या यहां तक कि बरी किए जाने के मामले में भी अपील करने का पूरा अधिकार है… जैसा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 372 के प्रावधान में कहा गया है।’’ शीर्ष न्यायालय ने 22 अगस्त के अपने फैसले में कहा कि अभियुक्तों को बरी किए जाने या कम सजा दिए जाने के खिलाफ अपराध के पीड़ितों के उच्चतम न्यायालय में अपील दायर करने के अधिकार को ‘‘सीमित नहीं किया जा सकता’’।
अपील दायर करने के उद्देश्य से ‘‘अपराध के पीड़ितों’’ के दायरे का विस्तार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर अपील के लंबित रहने के दौरान अपीलकर्ता-पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तो उनके कानूनी उत्तराधिकारी ऐसी अपीलों का अभियोजन जारी रख सकते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को अधिकार के तौर पर सीआरपीसी की धारा 374 के तहत अपील करने का अधिकार है और इस पर कोई शर्त नहीं है। इसी तरह, अपराध की प्रकृति चाहे जो भी हो, अपराध के पीड़ित को सीआरपीसी के अनुसार अपील करने का अधिकार होना चाहिए।’’ किसी आपराधिक मामले में दोषी व्यक्ति और राज्य (सरकारी अभियोजक के माध्यम से) दोनों अपील दायर कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ितों को शामिल करने के लिए 2009 में सीआरपीसी की धारा 372 (जब तक अन्यथा प्रावधान न हो, अपील नहीं की जा सकती) में एक प्रावधान जोड़ा गया था। इसमें कहा गया है कि किसी अपराध के पीड़ित को सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान के तहत अपील करने का अधिकार है, चाहे वह शिकायतकर्ता हो या नहीं।