देश में स्मार्ट शहरों से ज्यादा जरूरी स्मार्ट गांवः गडकरी

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नई दिल्ली { गहरी खोज }: केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने देश में स्मार्ट शहर से ज्यादा स्मार्ट गांवों को बनाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि देश में गांवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी की वजह से 30 फीसदी आबादी शहरों में पलायन कर गई है।
केंद्रीय मंत्री गडकरी ने यहां टाटा समूह के ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टीईआरआई) द्वारा आयोजित ’24वें दरबारी सेठ स्मृति व्याख्यान’ में कहा कि देश के विकास में इंफ्रास्ट्रक्चर की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीते वर्षों में तेज गति से काम हुआ है। उन्होंने कहा कि आज भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी महज 12 से 14 प्रतिशत रह गई है, जबकि विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 22 से 24 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 52 से 54 प्रतिशत है।
गडकरी ने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत गांवों में बसता है। इसलिए आज आवश्यकता है कि केवल स्मार्ट शहर ही नहीं, बल्कि स्मार्ट गांव भी बनाए जाएं। उन्होंने कहा कि गांवों से शहरों की ओर हो रहे बड़े पैमाने पर पलायन का मुख्य कारण गांवों में मूलभूत सुविधाओं और रोजगार की कमी है। आजादी के बाद इस दिशा में जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था, उतना नहीं दिया गया। यदि जल, जंगल और जमीन आधारित तकनीकों का उपयोग कर कृषि को सशक्त बनाया जाए, तो देश में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और समग्र विकास संभव होगा।
गडकरी ने टाटा समूह और दरबारी सेठ द्वारा देश के विकास में निभाई गई भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि राजनीति में आने के बाद उनके धीरूभाई अंबानी और रतन टाटा जैसे उद्योगपतियों से घनिष्ठ संबंध रहे हैं। टाटा समूह और दरबारी सेठ ने देश के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि पानी, बिजली, परिवहन और संचार ये चार आधारभूत सुविधाएं जहां उपलब्ध होंगी, वहां निश्चित रूप से औद्योगिक और कृषि का विकास होगा। इससे न केवल ग्रोथ रेट बढ़ेगी, बल्कि निवेश भी आएगा।
केंद्रीय मंत्री गडकरी ने कहा, मैं विदर्भ से आता हूं, जहां बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की है। मैंने उस इलाके में 10 हजार से अधिक किसानों की आत्महत्याएं देखी हैं, जिससे मैं किसानों के लिए काम करने के लिए प्रेरित हुआ। मैं कृषि क्षेत्र में जो भी कार्य कर रहा हूं, वह किसी व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिबद्धता से प्रेरित हैं। मैंने बिजनेस के लिए ऐसे मॉडल विकसित करने की कोशिश की है जो आत्मनिर्भर हों, क्योंकि सरकारी सहायता पर आधारित बिजनेस मॉडल में कई समस्याएं आती हैं।
उल्लेखनीय है कि टीईआरआई (टेरी) का पूरा नाम द एनर्जी रिसोर्स इंस्टीट्यूट (ऊर्जा और संसाधन संस्थान) है। यह एक गैर-लाभकारी शोध संस्थान है, जो ऊर्जा, पर्यावरण, और सतत विकास के क्षेत्रों में शोध और नवाचार पर केंद्रित है। इसे 1974 में टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट के रूप में स्थापित किया गया था और 2003 में इसका नाम बदल दिया गया।

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