‘मोहब्बत की दुकान’ नहीं, ‘झूठ की दुकान और शोरूम’ चला रहे राहुल गांधीः गौरव भाटिया

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कथित वोट चोरी के आरोपों पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर हमला बोला है। भाटिया ने कहा कि राहुल ‘मोहब्बत की दुकान’ नहीं बल्कि ‘झूठ की दुकान और शोरूम’ चला रहे हैं।भाजपा प्रवक्ता भाटिया ने मंगलवार को पार्टी मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कल सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कथित फ़र्ज़ी मतदान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमारे सामने ऐसी कोई ठोस सामग्री नहीं है जो बताती हो कि फ़र्ज़ी मतदान हुआ था। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह क़ानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों से हम सभी ने देखा है कि एक तरफ संविधान की, सत्य की और भारत की जनता की सच्चाई की ताकत है और दूसरी तरफ अराजकता और विध्वंस करने वाला राहुल गांधी का मॉडल, जिसमें संवैधानिक संस्थाओं पर बेबुनियाद आरोप लगाना और जब आरोप का प्रमाण मांगा जाए तो भाग जाना। वोट चोरी का आरोप तमाम विपक्षी दल लगा रहे हैं, ईवीएम खराब है, वीवी पैट से मिलान ठीक नहीं होता है। तो ये राहुल और विपक्ष सिर्फ बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राहुल 3 फरवरी को कहते हैं कि महाराष्ट्र में 70 लाख वोट बढ़े हैं और 9 जुलाई 2025 को बिहार में कहते हैं कि एक करोड़ वोट बढ़े हैं। राहुल गांधी ये बताएं कि वो कहना क्या चाहते हैं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने एक संस्था ‘सीएसडीएस’ के आधार पर भारत की संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग पर सवाल उठाए। सीएसडीएस के संजय कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव और 2024 के विधानसभा चुनाव की तुलना करते हुए आंकड़े पोस्ट किए थे, जिन्हें बाद में उन्होंने हटा दिया और सार्वजनिक रूप से माफ़ी भी मांगी, लेकिन इस बीच चुनाव आयोग और भारतीय लोकतंत्र की छवि धूमिल हुई। सवाल यह है कि क्या राहुल इसके लिए माफ़ी मांगेंगे? राहुल ने अपने बहुत करीबी जॉर्ज सोरोस से गुरु मंत्र लिया है कि हिंदुस्तान में समाज को बांटो तभी सत्ता मिलेगी। राहुल ने इसी मंत्र को अपनाया है और वो देश में झूठ पर झूठ परोस रहे हैं। उन्होंने कहा कि चुनावों में दखलंदाज़ी के लिए भारत में विदेशी धन लाया जाता है। इसका उद्देश्य कांग्रेस जैसी पार्टियों को मज़बूत करना है जो हमारी सशस्त्र सेनाओं पर सवाल उठाती हैं और हमारी जैसी पार्टियों को कमज़ोर करना है जो ‘राष्ट्र प्रथम’ की विचारधारा को बढ़ावा देती हैं।

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