सिंधु जल संधि पंडित नेहरू की सबसे बड़ी भूलः नड्डा

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नई दिल्ली{ गहरी खोज }: केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सिंधु जल संधि-1960 को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सबसे बड़ी भूल करार दिया है। नड्डा ने सोमवार को एक्स पोस्ट में कहा कि 1960 की सिंधु जल संधि, पंडित नेहरू की सबसे बड़ी भूलों में से एक थी, जिसमें राष्ट्रीय हितों को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की बलि चढ़ा दिया गया था।
देश को यह जानना चाहिए कि जब पंडित नेहरू ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, सिंधु बेसिन का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को सौंप दिया था। यह एक ऐसा फैसला था जिसने भारत की जल सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को हमेशा के लिए खतरे में डाल दिया था। सबसे भयावह पहलू यह था कि उन्होंने यह काम भारतीय संसद से परामर्श किए बिना किया था। इस संधि पर सितंबर 1960 में हस्ताक्षर किए गए थे। हालांकि इसे संसद में दो महीने बाद नवंबर में केवल दो घंटे की औपचारिक चर्चा के लिए रखा गया था।
भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने कहा कि पंडित नेहरू ने संसद की अवहेलना की, भारत की जीवनरेखाओं को दांव पर लगा दिया और पीढ़ियों तक भारत के हाथ बांध दिए।
अगर प्रधानमंत्री मोदी का साहसिक नेतृत्व और ‘राष्ट्र प्रथम’ के प्रति उनकी प्रतिबद्धता न होती, तो आज भी भारत एक व्यक्ति के गलत आदर्शवाद की कीमत चुकाता रहता। सिंधु जल संधि को स्थगित करके, प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस द्वारा की गई एक और गंभीर ऐतिहासिक भूल को सुधारा है।
उन्होंने कहा कि जब पंडित नेहरू अंततः उठे तो उनके तर्क न केवल अप्रभावी थे, बल्कि राष्ट्रीय भावना से भी काफी दूर थे। अपनी ही पार्टी के साथियों के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने सिंधु जल संधि का बचाव किया और इसे भारत के लिए लाभकारी बताया। मानो यह पर्याप्त न हो, उन्होंने राष्ट्र की पीड़ा को यह कहकर छोटा कर दिया– “विभाजन किसका? एक बाल्टी पानी का?”
उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संधियों से जुड़े इस फैसले को संसद की मंजूरी की परवाह किए बिना लिया, जिसमें भारत के महत्वपूर्ण संसाधन सौंप दिए गए। चोट पर नमक छिड़कते हुए उन्होंने उन सांसदों की राय का उपहास किया जो राष्ट्रीय हित की बात कर रहे थे, और कहा कि उनका दृष्टिकोण बहुत संकुचित है।
नड्डा ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने नेहरू की सिंधु जल संधि की कड़ी आलोचना की थी। उन्होंने चेताया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री का यह तर्क कि पाकिस्तान की अनुचित मांगों के आगे झुकने से मित्रता और सद्भावना बनेगी, बिल्कुल त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सच्ची मित्रता अन्याय पर आधारित नहीं हो सकती। यदि पाकिस्तान की अनुचित मांगों का विरोध करने से संबंध बिगड़ते हैं तो बिगड़ने दीजिए। यही वह स्पष्टता थी, जिसके साथ अटल जी ने भारत के राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखा।

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