यूपीआई, रुपे लेनदेन के लिए 437 करोड़ रुपये की सब्सिडी को बढ़ाना संभव: एसबीआई अर्थशास्त्री

मुंबई{ गहरी खोज }: यूपीआई और रुपे कार्ड लेनदेन के जरिये डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में आवंटित 437 करोड़ रुपये की वार्षिक सब्सिडी को बढ़ाया जा सकता है। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने सोमवार को यह उम्मीद जताई। कुछ अनुमानों का हवाला देते हुए अर्थशास्त्रियों ने कहा कि यूपीआई (एकीकृत भुगतान इंटरफेस) के प्रतिभागियों को ऑनलाइन भुगतान प्रणाली को बनाए रखने के लिए 5,000 करोड़ रुपये तक की लागत वहन करनी पड़ रही है।
उन्होंने एक टिप्पणी में कहा, ”वित्त वर्ष 2025-26 में लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए बजट में 437 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं, जिसे बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, अनुमान के अनुसार प्रतिभागियों को 4,000 से 5,000 करोड़ रुपये तक की लागत वहन करनी पड़ सकती है।” वित्त वर्ष 2024-25 में 2,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी को घटाकर चालू वित्त वर्ष में 437 करोड़ रुपये कर दिया गया था। ऐसे में कुछ यूपीआई लेनदेन पर शुल्क लगाने की मांग उठी थी। हालांकि, यूपीआई लेनदेन पर शुल्क लगाने के मुद्दे पर विवाद हो गया, क्योंकि इस मंच को बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है, जिससे जून में लगभग 25 करोड़ लेनदेन हुए।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अर्थशास्त्रियों ने टिप्पणी में बताया कि भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) व्यक्ति से व्यापारी लेनदेन पर 0.30 प्रतिशत का ‘मर्चेंट डिस्काउंट रेट’ (एमडीआर) लेने की अनुमति देता है, लेकिन डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए 2020 से रुपे डेबिट कार्ड और भीम-यूपीआई से लेनदेन करने पर इसे शून्य कर दिया गया है।
अर्थशास्त्रियों ने अमेरिकी खुदरा दिग्गज वॉलमार्ट के स्वामित्व वाले फोनपे और यूपीआई लेनदेन में एक बड़ा हिस्सा नियंत्रित करने वाली गूगल पे को लेकर भी अपनी चिंताएं जताईं, और चेतावनी दी कि यह घरेलू वित्तीय प्रौद्योगिकी (फिनटेक) कंपनियों को बाधित कर सकता है।