याचिकाकर्ता के आरोप – पैरामेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार ने दिया झूठा हलफनामा, रजिस्ट्रार के विरुद्ध कार्यवाही की माँग

जबलपुर{ गहरी खोज }: मध्य प्रदेश में पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश में अनियमितताओं के मामले में लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की युगलपीठ ने एमपी पैरामेडिकल कौंसिल के हाईकोर्ट में पेश किए गए जवाब और सुप्रीम कोर्ट में पेश गये शपथ पत्र में विरोधाभासी कथन के मामले में कड़ी नाराज़गी व्यक्त करते हुए याचिकाकर्ता के आवेदन पर फ़ैसला सुरक्षित रखा है। हालाँकि कोर्ट ने कार्यवाही के दौरान टिप्पणी की है कि यह मामला प्रथम दृष्टया दो विरोधाभासी शपथ पत्र देने का है जिसमें में कोई एक ही सही हो सकता है ।
दरअसल याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन की ओर से हाईकोर्ट में एक आवेदन पेश कर पैरामेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार शैलोज़ जोशी के द्वारा हाईकोर्ट में झूँठा शपथ पत्र दाखिल करने के मामले में झूठी गवाही और अदालत की आपराधिक अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की माँग की है । आवेदन में आरोप है कि हाईकोर्ट में 21 जुलाई 2025 को दायर जवाब में पैरामेडिकल काउंसिल ने दावा किया था कि सत्र 2023-24 अभी शुरू नहीं हुआ और बिना मान्यता एवं संबद्धता किसी संस्थान को प्रवेश की अनुमति नहीं है । जबकि, सुप्रीम कोर्ट में 28 जुलाई 2025 को दाखिल विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में स्वयं काउंसिल ने कहा कि 21,894 छात्र जनवरी से जुलाई के बीच एडमिशन लेकर सत्र 2023-24 में पढ़ाई कर रहे हैं और सत्र भी प्रारंभ हो चुका है।
याचिकाकर्ता के वकील आलोक वागरेचा ने हाईकोर्ट को बताया कि काउंसिल के रजिस्ट्रार शैलोज़ जोशी के द्वारा न्यायालय द्वय में दाखिल शपथ पत्र पूरी तरह विरोधाभासी और भ्रामक हैं, जो अदालत को गुमराह करने, न्याय प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की साजिश का हिस्सा हैं ।
कैसे पकड़ा गया झूँठ –
• पैरामेडिकल काउंसिल ने हाईकोर्ट में 21 जुलाई 2025 को दायर जवाब में दावा किया था कि सत्र 2023-24 अभी शुरू नहीं हुआ और बिना मान्यता एवं संबद्धता किसी संस्थान को प्रवेश की अनुमति नहीं है ।
• सुप्रीम कोर्ट में 28 जुलाई 2025 को दाखिल विशेष अनुमति याचिका में स्वयं काउंसिल ने कहा कि 21,894 छात्र जनवरी से जुलाई के बीच एडमिशन लेकर सत्र 2023-24 में पढ़ाई कर रहे हैं और सत्र भी प्रारंभ हो चुका है ।
क्या कहते हैं नियम : –
एमपी पैरामेडिकल काउंसिल के नियमों के हिसाब से डिप्लोमा डिग्री एवं पीजी पाठ्यक्रमों में किसी भी संस्थान के द्वारा छात्रों के प्रवेश बग़ैर विश्वविद्यालय से संबद्धता प्राप्त किए नहीं दिये जा सकते है दूसरी ओर मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के परिनियम में भी यही प्रावधान किया गया है ।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि मध्यप्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी जबलपुर के द्वारा आज दिन तक प्रदेश के किसी भी पैरा मेडिकल कॉलेज को सत्र 2023-24 की संबद्धता प्रदान नहीं की गई है जिस कारण से नियमानुसार किसी भी संस्थान में छात्रों का प्रवेश कानूनी रूप से संभव ही नहीं था उसके बावजूद पैरामेडिकल काउंसिल में एक ओर हाईकोर्ट को यह बताया है कि नियमानुसार प्रवेश बगैर सम्बद्धता के संभव ही नहीं है लेकिन दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट से कहा की प्रवेश प्रक्रिया सम्पन्न हो चुकी है और छात्रों का सत्र जारी है उसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 16 जुलाई के आदेश पर अंतरिम रोक लगाई थी। हाईकोर्ट ने इस बात पर भी कड़ी नाराजगी व्यक्त की है थी 16 जुलाई की सुनवाई में भी पैरामेडिकल काउंसिल के द्वारा छात्रों की प्रवेश के संबंध में सही तथ्य हाइ कोर्ट को नहीं बताए गए थे और बार बार ये दावा किया जा रहा था की अभी प्रवेश प्रक्रिया एवं शैक्षणिक सत्र शुरू होना बाकी है
बिना संबद्धता के एडमिशन पर पहले भी हाईकोर्ट लगा चुका है जुर्माना :-
पैरामेडिकल काउंसिल के ख़िलाफ़ अवैध एडमिशन का यह कोई पहला मामला नहीं है । अक्टूबर 2022 में नर्मदा पैरामेडिकल कॉलेज के मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पाया था कि संस्थान ने विश्वविद्यालय से संबद्धता लिए बिना ही छात्रों का प्रवेश किया और पैरामेडिकल काउंसिल को इसकी जानकारी होने के बावजूद उसने कोई कार्रवाई नहीं की और अपनी जिम्मेदरियों से आँखें फेर ली गई । परिणामस्वरूप, कोर्ट ने कॉलेज को छात्रों को ₹25,000 प्रति छात्र का हर्जाना देने का आदेश दिया। और पैरामेडिकल कौसिल पर पचास हज़ार रुपये का जुर्माना लगाते हुए कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि बिना संबद्धता प्रवेश अवैध है और परिषद की चुप्पी ने छात्रों का भविष्य खतरे में डाला गया ।
काउंसिल का तर्क –
सुनवाई के दौरान पैरा मेडिकल काउंसिल की ओर से तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी में दिए गए कोई भी तथ्यों का जिक्र सुप्रीम कोर्ट के सामने ही किया जाना उचित होगा इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि हाइकोर्ट के सामने पेश किए गए शपथपत्र में झूठे तथ्य पेश किए गए हो तो इसका संज्ञान हाई कोर्ट के द्वारा भी लिया जा सकता है हाई कोर्ट ने पैरा मेडिकल काउन्सल को स्पष्ट किया है कि यदि हाइकोर्ट इसमें संज्ञान लेती है तो संबंधित अधिकारी को इस संबंध में जवाब देने हेतु अवसर जरूर दिया जाएगा । मंगलवार के बाद याचिकाकर्ता के आवेदन पर युगलपीठ ने निर्णय सुरक्षित रखते हुए मामले की अगली सुनवाई 20 अगस्त को निर्धारित की है ।