भारत विश्व का कल्याण चाहने वाला देश : मोहन भागवत

0
454eaf710b9c910f9e93d77c79b85eec

सीकर{ गहरी खोज }: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत विश्व का कल्याण चाहने वाला देश है। यहां के वेदों में सभी शास्त्र निहित हैं, ऋषियों की तपस्या से राष्ट्र में बल और ओज का संचार हुआ है।
डॉ. भागवत मंगलवार को राजस्थान के सीकर जिले में स्थित श्री जानकीनाथ बड़ा मंदिर, रैवासा धाम में ब्रम्हलीन पूज्य रेवासा पीठाधीश्वर स्वामी राघवाचार्य वेदांती महाराज की प्रथम पुण्य तिथि पर आयोजित ‘श्री सियपिय मिलन समारोह’ में बोल रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने स्वामी राघवाचार्य की तीन फुट ऊंची संगमरमर की प्रतिमा का अनावरण और नवनिर्मित गुरुकुल भवन का लोकार्पण भी किया। सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि इतिहास ने भी जब आंखें नहीं खोली थी तब से विश्व को सत्य, धर्म और आध्यात्म का मार्ग दिखाने और मानवता के कल्याण का कार्य भारतवर्ष और भारत का हिंदू समाज कर रहा है। सनातन काल से रीति ऐसे ही चल रही है। कई उतार-चढ़ाव आए। कभी हम स्वतंत्र रहे। कभी वैभव संपन्न रहे। कभी हम दरिद्र हो गए। कभी हम परतंत्र हो गए। अत्याचारी-पीड़ित हो गए। फिर भी यह काम लगातार चलता रहा। जब-जब दुनिया को विशेष रूप से इसकी आवश्यकता पड़ती है। तब भारत का उत्थान होता है। आज हम देख रहे हैं अप्रत्याशित रूप से अगर स्वतंत्रता के बाद का हमारा इतिहास देखें तो इतिहास के आधार पर कोई यह तर्क नहीं कर सकता कि भारतवर्ष उठेगा, लेकिन भारत वर्ष उठ रहा है। विश्व में अपना स्थान बना रहा है।
डॉ. भागवत ने कहा कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद लोगों ने भविष्यवाणी की थी कि यहां प्रजातंत्र चल ही नहीं सकता। प्रजातंत्र चला भी और जब इस पर संकट आया तो लोगों ने उसका प्रतिकार करके प्रजातंत्र को कायम रखा है। उन्होंने कहा कि सत्य एक ही है, वही विश्वरूप है और वही विविध रूप में दिखाई देता है। मिथ्या कुछ समय तक ही चलती है, बाद में सब एक ही में विलीन हो जाता है। इसलिए हमारे यहां संतों की ऐसी कथाएं भी मिलती हैं।
उन्होंने राघवाचार्य जी का स्मरण करते हुए कहा कि मेरा उनसे संबंध सरसंघचालक बनने के बाद ही हुआ। पहली भेंट में मेरे मन में दो बातें आईं पहली, उनके हृदय में सभी के लिए स्नेह था और दूसरी, वे सभी को आत्मीय भाव से देखते थे। उन्होंने बताया कि उनके जीवनकाल में मैं एक बार रैवासा धाम आ चुका हूं। उस समय उन्होंने मुझे गुरुकुल के छात्रों से भी मिलवाया था। उस वक्त भी वही स्नेह और समाज के प्रति वही तड़पन दिखाई दी। बहुत से ऐसे संत हैं जो संघ के कार्यक्रमों में नहीं आते, लेकिन वे स्वयंसेवक ही होते हैं। मैंने उनसे कहा था कि जब-जब आऊंगा, आपसे मिलूंगा। मैं दो-तीन बार आया, लेकिन उस समय महाराज प्रवास पर थे, इसलिए धाम नहीं आ सका। फिर से यहां आना, उनके जाने के बाद होगा। इसका मुझे बिल्कुल भी अनुमान नहीं था। ऐसा अनुमान किसी को होता भी नहीं है। सरसंघचालक ने कहा कि मैं देख रहा हूं कि समाज के हित के लिए वही तड़पन यहां के वातावरण में विद्यमान है। महाराज के जाने के बाद उनकी तपस्या आज दिखाई दे रही है। इस जगह भक्तमाल की रचना हुई। स्थान की परंपरा ऐसी ही चलती रहेगी। यह आज मुझे विश्वास हो गया है।
संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने कहा कि यहां से प्रेरणा लेकर संपूर्ण देश में विचरण करने वाले हमारे संत हैं। बाकी दुनिया में भी अनेक पूजा-पद्धतियां हैं, लेकिन यदि उन पद्धतियों का पालन करने वालों से पूछा जाए कि जो आप बता रहे हैं उसे प्रत्यक्ष दिखाएं, तो उनके पास कोई उत्तर नहीं होगा। भारतवर्ष में आज भी आध्यात्म के रूप में जो कुछ कहा जाता है, वह हमारे यहां ऐसे व्यक्तियों के जीवन में प्रत्यक्ष दिखाई देता है, जिन्होंने उसे आचरण में उतारकर यश, कीर्ति, श्रेय और प्रेय सब कुछ प्राप्त किया है। ऐसे जीवन हमारे बीच ही हैं, जो हमारे साथ चलते-फिरते हैं, हमारे जैसे खाते-पीते हैं और सामान्य ही दिखाई देते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *