कजरी तीज का व्रत कब से कब तक रखा जाता है? जान लें इस व्रत के नियम और परंपरा

धर्म { गहरी खोज } : कजरी तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं तो वहीं कुंवारी कन्याएं ये व्रत मनचाहा जीवनसाथी पाने की कामना से करती हैं। ये व्रत मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। बाकी तीज की तरह ही इस तीज पर भी भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है। इसके अलावा इस तीज पर नीमड़ी माता की पूजा का भी विधान बताया गया है। बता दें इस साल कजरी तीज 12 अगस्त को मनाई जाएगी। यहां हम आपको बताएंगे कजरी तीज का व्रत कैसे रखते हैं? इसके नियम और विधि क्या है।
कजरी तीज का व्रत कब से कब तक रखा जाता है?
कजरी तीज के दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रहती हैं। रात में चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही ये व्रत खोला जाता है।
गर्भवती महिलाएं ये व्रत कैसे रहें?
गर्भवती महिलाओं को कजरी तीज का व्रत निर्जला नहीं रखना चाहिए। आपको फल, जूस और व्रत में खाई जाने वाली अन्य चीजों का सेवन करते रहना चाहिए जिससे आपको स्वास्थ्य समस्याएं न आएं।
कजरी तीज की पूजा कैसे करें
कजरी तीज की मुख्य पूजा शाम के समय की जाती है। इसलिए शाम की पूजा से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और सोलह श्रृंगार करके पूजा में बैठें। विधि विधान पूजा करने के साथ ही कजरी तीज की कथा सुननी चाहिए और भगवान से अपने पति की समृद्धि और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
कजरी तीज पर झूला झूलने की है परंपरा
कजरी तीज के दिन कई महिलाएं झूला झूलती हैं। इस दौरान कजरी तीज के गीत गाती हैं और मिल-जुलकर ये पर्व मनाती हैं।
इस दिन होती है देवी नीमड़ी की पूजा
कजरी तीज पर नीमड़ी पूजन का भी विशेष महत्व माना जाता है जिसमें महिलाएं नीम की डाली को देवी का स्वरूप मानकर उसकी विधि विधान पूजा करती हैं। मान्यताओं अनुसार नीम में देवी दुर्गा का वास होता है ऐसे में इस दिन नीम का पूजन करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।
तीज का मुख्य प्रसाद
कजरी तीज के दिन जौ, गेहूं, चावल और चने को घी के साथ मिलाकर विशेष सत्तू तैयार किया जाता है जिसे चंद्रोदय के बाद व्रत खोलने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
चंद्रमा को अर्घ्य देकर खोला जाता है व्रत
कजरी तीज का व्रत रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर खोला जाता है। चंद्रमा को देखने के बाद व्रत समाप्त हो जाता है, जिसके बाद पारंपरिक रूप से तैयार व्यंजन जिसमें सत्तू से बना भोजन भी शामिल होता है और इसका सेवन करके अपना व्रत खोला जाता है।