ट्रंप की दादागिरी ज्यादा दिन नहींं चलने वाली है

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सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कोई ठिकाना नहीं है कि वह कब क्या कहेंगे और कब यू टर्न ले लेंगे। अमरीका जैसे देश के राष्ट्रपति को तो ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन यह अमरीका का दुर्भाग्य है कि ट्रंप अमरीका के चुने हुए राष्ट्रपति हैं और क्या सही क्या गलत वह सोचते नहीं है, उनको किसी से अपनी बात मनवानी है तो उनके पास एक ही हथियार टैरिफ का. वह इस हथियार का उपयोग कई देशों के खिलाफ कर चुके हैं। उनके इस तरह के व्यवहार से कई देश परेशान हैं, कई देश पहले जो उनके खिलाफ बोलने से बचते थे अब खुलकर बोलने लगे हैं।बगावत की चिंगारी उठ रही है, कब वह भीषण आग का रूप लेगी यह तो अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन ट्रंप के खिलाफ कई देशोंं के नेताओं में नाराजगी है और इस बात को लेकर नाराजगी है कि वह किसी का सम्मान नहीं करते हैं,फैसले देशों पर थोप देते हैंं।

जब उनको कुछ पाना रहता है तो वह जिससे मदद चाहते हैं, वह मदद नहीं करता है तो वह दोस्त हो तो भी दुश्मनी पर उतर आते हैं।उनका दोस्ती का सीधा मतलब है कि मैं जो चाहता हूं, उसमें तुम दोस्त हो तो मदद करो, मदद नहीं करते हो तुम दुश्मन हो। ट्रंप का चुनाव जीतने के बाद सबसे बड़ा सपना था उनको युध्द बंद कराने के लिए शांति को नोबल पुरस्कार दिया जाए। चुनाव जीतने पर उन्होंने कहा था उनका पहला काम रूस यूक्रेन युध्द रुकवाना होगा। हमास-इजराइल युध्द रुकवाना होगा। उन्होंने इसके लिए इजरायल के साथ ही यूक्रेन व रूस से भी बात की कि वह कह रहे हैं तो उनको युध्द रोक देना चाहिए। हमास इजराइल युध्द चल ही रहा है, रूस यूक्रेन युध्द चल ही रहा है। कोई उनकी बात मान नहीं रहा है। न रूस मान रहा है, न इजराइल मान रहा है। उनका शांति का नोबल पुरस्कार का सपना पूरा नहीं हो रहा है। यह युध्द चल ही रहे थे कि इजराइल व ईरान का युध्द शुरू हो गया। इस युध्द को एक ही मकसद था कि ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करना। यह काम इजराइल नहीं कर पाया तो अंत में अमरीका ने अपना बड़ा बम गिराकर परमाणु ठिकानों को नष्ट करने का दावा किया गया। इस य़ुध्द में अमरीका ने खुद ही ईरान पर हमला करना पड़ा था, इससे उनकी शांति के मसीहा की छबि पर सवालिया निशान लग गया।

ट्रंप भी विश्व में अपनी तरह के गजब के नेता हैं वह शांति का मसीहा बनना चाहते है, यह सपना पूरा होगा शांति का नोबल पुरस्कार मिलने से। दो युध्द समाप्त हुए हैं।दो तो चल ही रहे हैं।ऐसे में सिफारिश पाकिस्तान करे या कोई देश करे उनको शांति का नोबल तो मिलने से रहा। उऩकी बड़ी इच्छा थी कि भारत कम से कम यह स्वीकार कर ले कि भारत पाक युध्द ट्रंप ने बंद करवाया है। दोनों देशों के बीच परमाणु युध्द होता ट्रंप के कारण नहीं हुआ। इससे उनका दो देशों के बीच शांति कराने का दावा मजबूत होता लेकिन इससे राहुल गांधी को घरेलू राजनीति में मोदी पर हमला करने का मौका मिल जाता कि देखो हम कह रहे थे कि ट्रंप के आगे नरेंदर ने सरेंडर कर दिया है। इससे मोदी की मजबूत नेता का छबि नष्ट हो जाती है।

पीेएम मोदी ने वही किया जो देश हित में था, सरकार के हित में था। ट्रंप ने ३० बार कहा लेकिन मोदी ने नहीं माना कि ट्रंप सच कह रहे हैं। पहले पुतिन ने यूक्रेन युध्द रोकने में उनकी कोई मदद नहीं की। उसके बाद भारत ने उनकी कोई मदद नहीं की। इसस चिढ़कर ट्रंप जो कर सकते थे, वही किया पहले कहा कि भारत पर २५ प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे साथ रूस से तेल खऱीदने पर अलग से पेनाल्टी भी लगाएंगे। इसका भारत पर कोई असर नहीं पड़ा भारत ने ट्रंप के सामने झुकने के बजाय यह कहा कि वह अपने देशहित में जो होगा वह करेगा यानी ट्रंप जो चाह रहे हैं, वह देशहित में नहीं है। यही नहीं भारत ने ट्रंप की पोल यह कहकर भी खोल दी कि रूस से तेल खऱीदने पर तो भारत पर टैरिफ लगाया जा रहा है, चीन तो भारत से ज्यादा तेल रूस से खरीदता है, उस पर अमरीका ने कोई कार्रवाई नहीं की है। भारत ने यह भी खुलासा कर दिया कि अमरीका व यूयू दोनों खुद रूस से बहुत सारे वस्तुएंं खरीदते हैं, यह तो दोहरा मापदंड नहीं चलेगा। इस पर ट्रंप को सवाल का जवाब देते नहीं बना तो उन्होंने कहा कि उनको पता नहीं है कि रूस अमरीका क्या खरीद रहा है,वह इसकी जांच कराएंगे।

कुल मिलाकर ट्ंप की आदत तो किसी देश से उनको कुछ चाहिए तो उस पर कई तरह से दवाब डालते हैं यही वह चीन के साथ करने के बाद अब भारत के साथ कर रहे हैं जैसे वह चीन पर दवाब नहीं बना सके वैसे वह भारत पर भी दवाब नहीं बना पाएंगे क्योंकि उनको अमरीका काे फिर से महान बनाने के लिए भारत के बाजार की जरूरत है यही वजह है वह एक तरफ धमकी देते रहते हैं, दूसरी तरफ अमरीकी दल भी भारत भेजते हैं। ट्रंप तो कभी भी यू टर्न ले लेंगे क्योंकि उनको अपने देश के हित में फैसला करना है। उनके साथ खड़े भारत के कुछ नेताओं की तब बड़ी फजीहत होगी जब ट्रंप भारत के साथ डील करने को राजी हो जाएंगे।

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