सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की रिट याचिका खारिज की

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय ने कथित नगदी बरामदगी के आरोपों से घिरे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की रिट याचिका गुरुवार को खारिज कर दी। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने यह फैसला सुनाया।
पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि घटना की जांच के लिए आंतरिक जांच समिति का गठन और उसके द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया गैरकानूनी नहीं थी।
पीठ ने कहा, “हमने माना है कि मुख्य न्यायाधीश और आंतरिक समिति ने तस्वीरें और वीडियो अपलोड (शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर) करने के अलावा पूरी प्रक्रिया का पूरी ईमानदारी से पालन किया था।”
अदालत ने आगे कहा, ‘मुख्य न्यायाधीश द्वारा प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र भेजना (पद से हटाने के बारे में) असंवैधानिक नहीं था। पीठ ने यह भी कहा, “भविष्य में ज़रूरत पड़ने पर आपके (न्यायमूर्ति वर्मा) लिए कार्यवाही शुरू करने का विकल्प खुला है।”
पीठ ने कहा कि आंतरिक प्रक्रिया को कानूनी मान्यता प्राप्त है। यह कोई समानांतर या संविधानेतर व्यवस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि कार्यवाही के दौरान न्यायमूर्ति वर्मा का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता क्योंकि उन्होंने आंतरिक जांच कार्यवाही में भाग लिया था। पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 30 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था।
न्यायमूर्ति वर्मा ने उस आंतरिक जांच रिपोर्ट को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें दोषी ठहराते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की थी।
न्यायमूर्ति वर्मा के दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहने के दौरान राजधानी स्थित उनके सरकारी आवास पर 14 मार्च को कथित तौर पर भारी मात्रा में नगदी बरामद होने के बाद आंतरिक जांच की गई थी। इसके बाद उन्हें उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया था।

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