बोधगया मंदिर कानून को निरस्त करने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करेगा न्यायालय

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को निरस्त करने और उसके स्थान पर बिहार स्थित महाबोधि मंदिर के उचित नियंत्रण, प्रबंधन और प्रशासन के लिए एक केंद्रीय कानून लाये जाने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने पर सोमवार को सहमत हो गया। बिहार के बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और यह भगवान गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र क्षेत्रों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि बोधगया वह स्थान है, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस याचिका के जरिये 1949 के अधिनियम की वैधता को भी चुनौती दी गई है। यह याचिका न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष सुनवायी के लिए आयी। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इसी तरह के अनुरोध वाली एक याचिका शीर्ष अदालत में लंबित है।
पीठ ने केंद्र और अन्य को नोटिस जारी करके याचिका पर जवाब मांगा और इसे लंबित याचिका के साथ सुनवायी के लिए संलग्न कर दिया। याचिका में 1949 के अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है और आरोप लगाया गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 13 के साथ “असंगत” है। याचिका में बोधगया मंदिर परिसर में किए गए अतिक्रमणों को हटाने का संबंधित प्राधिकरणों को निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया है।
तीस जून को, उच्चतम न्यायालय ने 1949 के अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका पर सुनवायी से इनकार कर दिया था और याचिकाकर्ता को संबंधित उच्च न्यायालय में जाने के लिए कहा था। यह अधिनियम मंदिर के बेहतर प्रबंधन से संबंधित है।
महाबोधि मंदिर परिसर में 50 मीटर ऊंचा एक भव्य मंदिर, वज्रासन, पवित्र बोधि वृक्ष और बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति से जुड़े छह अन्य पवित्र स्थल शामिल हैं। ये सभी स्थल असंख्य प्राचीन स्तूपों से घिरे हुए हैं और आंतरिक, मध्य तथा बाहरी तीन परिधीय सीमाओं द्वारा अच्छी तरह संरक्षित हैं।