सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न विरोधी कानून के दायरे में लाने की याचिका खारिज की

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नयी दिल्ली { गहरी खोज }: उच्चतम न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (पोश अधिनियम) के दायरे में राजनीतिक दलों को लाने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह विषय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने अधिवक्ता योगमाया एम जी की इस याचिका पर विचार करने से मना कर दिया।
पीठ ने कहा याचिकाकर्ता से कहा कि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, क्योंकि यह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता को सुझाव दिया कि वे कुछ महिला सांसदों को शामिल कर इस संबंध में एक निजी विधेयक पारित करने की दिशा में प्रयास करें।
इस पर अधिवक्ता गुप्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता कोई अधिनियम नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों को पोश अधिनियम के दायरे में लाने के लिए अदालत की व्याख्या चाहती हैं।
अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पोश अधिनियम के अर्थ में राजनीतिक दल “कार्यस्थल” और “नियोक्ता” माने जाएँगे, इसलिए उन्हें महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं के यौन उत्पीड़न से निपटने के प्रावधानों का पालन करना होगा।
उन्होंने केरल उच्च न्यायालय के 2021 के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि पोश अधिनियम के तहत राजनीतिक दलों को आंतरिक शिकायत समिति का गठन करने की आवश्यकता नहीं है।
याचिकाकर्ता ने मामला वापस लेने का विकल्प चुना।
शीर्ष अदालत ने 09 दिसंबर, 2024 को याचिकाकर्ता द्वारा दायर इसी तरह की एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें उन्हें चुनाव आयोग से संपर्क करने के लिए कहा गया था क्योंकि चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है जो राजनीतिक दलों पर नियंत्रण रखता है और उन्हें नियंत्रित करता है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि राजनीति में महिलाओं की सुरक्षा की जानी चाहिए और पोश अधिनियम को राजनीतिक दलों पर लागू किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने 12 मई, 2023 के अपने एक फैसले में सभी सरकारी और निजी विभागों में आंतरिक शिकायत समितियाँ स्थापित करने और शीबॉक्स पोर्टल बनाने का निर्देश दिया है, जहाँ महिलाएँ शिकायत दर्ज करा सकें।
साथ ही, अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पोश अधिनियम के समान कार्यान्वयन का आह्वान किया है।
इसके बाद अदालत ने उन सार्वजनिक और निजी संस्थानों की पहचान करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था, जिन्होंने अभी तक कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने के लिए आंतरिक शिकायत उक्त समिति का गठन नहीं किया है।

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