तकलीफ बढ़ाने के लिए नहीं करती सरकार

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सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:
सरकार बदलती रहती है, लेकिन जो जिस पद पर होता है, वह उस पद का फायदा उठाने से नहीं चूकता है। वह समझता है कि वह इस पद पर है तो वह जो कुछ कर रहा है, वह तो उसका अधिकार है। वह तो सोचता है कि पद पर रहते हुए गरीबों का भला हो जाए तो क्या बुरा है। सरकार भी तो कहती है कि सरकार व प्रशासन का काम गरीबों का भला करना है। गरीबों के भले करने को कोई बुरी बात नहीं मानता है। इससे गरीब भी खुश होता है कि साहब ने उसका भला कर दिया। वह साहब का जिंदगी भर गुण गाता रहता है कि कितने भले साहेब थे। थोड़े से पैसे लिए और गरीब को बहुत बड़ा भला कर दिया।

कई बार सरकार कोई फैसला करती है तो लगता है कि उसको ऐसा नहीं करना था। इससे तो परेशानी बढ़ेगी, सरकारी नौकरी जो अब तक आसानी से मिल जाती थी अब आसानी से नहीं मिलेगी। हुआ यह है कि राज्य शासन ने अब चपरासी से तृतीय श्रेणी लिपिकीय वर्ग में पदोन्नति के लिए मान्यता प्राप्त संस्था से कंप्यूटर की डिग्री अनिवार्य कर दी है। इससे पहले चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की तृतीय श्रेणी में पदोन्नति के लिए हायर सेकंडरी परीक्षा उत्तीर्ण व पांच साल की सेवा पूर्ण होने का नियम था।अब इसे सामान्य प्रशासन विभाग ने बदल दिया है। यानी पहले जितना आसान था चतुर्थ से तृतीय श्रेणी कर्मचारी बनना अब थोड़ा मुश्किल हो गया है।

पूर्व में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को विभाग में स्वीकृत तृतीय श्रेणी पदों में से १० प्रतिशत पदों पर हायर सेकंडरी परीक्षा उत्तीर्ण होने व पांच साल की सेवा पूर्ण करने का नियम था। पुराने निर्देशों में मुद्रलेखन या कंप्यूटर पास होने संबंधी नियम नहीं था।यह जरूर अच्छा कहा किया गया है कि १० प्रतिशत को बढ़ाकर २५ प्रतिशत कर दिया गया था। पुरानी स्थिति में में विभागीय पदोन्नति समिति पदाेन्नति का फैसला करती थी। करेगी अब भी वही लेकिन उसके लिए भी पहले की तरह अपने लोगों का बेड़ा पार करना आसान नहीं होगा। क्योंकि जो नए नियम उनका सख्ती से पालन किया जाएगा। उसके बिना पदोन्नति तो होनी ही नहीं है, भळे ही साहब चाहे या समिति चाहे।

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ प्रदेश अध्यक्ष ने इस मामले में मुख्यमंत्री से मांग की है कि तत्काल इस राजपत्र की अधिसूचना काे वापस लिया जाए। तथा उनके कार्य अनुभव के आधार पर पहले की तरह यथावत पदोन्नति दी जाए।ऐसा नहीं किया गया तो कर्मचारी संघ आंदोलन के लिए बाध्य होगा। यह तो तय था कि संघ इसका विरोध करेगा क्योंकि चपरासी की नौकरी भी आजकल आसानी से नहीं मिलती है, मिल जाए पदोन्नति आसानी से नहीं मिलती है, पदोन्नत वही होता है जो कुछ लोग चाहते हैं। यह लोग कौन होते है, सब जानते हैंं।

भूपेश सरकार काे तो इस तरह के भ्रष्टाचार से कोई मतलब ही नहीं था लेकिन साय सरकार किसी भी स्तर पर किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को रोकने प्रतिबध्द है इसलिए उसने यह फैसला लिया है।कुछ लोगों को लगता होगा कि यह तो चपरासियों की पदोन्नति में बाधा डालने वाला काम है हकीकत में यह चपरारियों को और ज्यादा कार्यकुशल बनाने का प्रयास है। कई बार ऐसा होता था कि चपरासी की पदोन्नति हो जाती है और उसे नए पद का काम नहीं आता, खास कर आजकल तो हर काम के लिए कंप्यूटर में काम आना एक तरह जरूरी हो गया है। पहले क्लर्क के जाब के लिए जैसे टाइपिंग आना जरूरी होता है, उसी तरह अब क्लर्क नहीं और भी कई कामों के लिए कंप्यूटर आना जरूरी हो गया है।

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