लोगों से जुड़ना भी है,लोगों को जोड़ना भी है

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सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:
कोई भी त्यौहार हो, वह उल्लास,उमंग से भरा होता है।सब लोग खुशी खुशी मनाते हैं, सब एक दूसरे से जुड़ते हैं और एक दूसरे को जोड़ते भी हैं। जब सब एक दूसरे से जुड़ते हैं तो लोगों में एक अपनापन का भाव पैदा होता है,लोगों को लगता है कि यह हममें से एक है, यह हमसे अलग नहीं है।ऐसे समय में कोई भेदभाव नहींं करता है, सब दूसरे के लिए मंगलकामना करते हैं। सब चाहते है कि सब आने वाले समय में सुखी रहे, खुशहाल रहे। सब चाहते हैं तो आने वाला समय सभी के लिए वैसा ही होता है जैसा हम चाहते हैं। इसलिए हमारे पर्व एक दूसरे के लिए मंगलकामना करने वाले होते हैं।

छत्तीसगढ़ का हरेली त्यौहार किसानों का त्यौहार होने के साथ ही पर्यावरण के प्रति सचेत रहने का संदेश देता है। बारिश के मौसम में हरेली का पर्व मनाया जाता है, यानी तब मनाया जाता है जब चारों तरफ हरियाली होती है और हरियाली चारों तरफ हो तो किसकाे खुशी नहीं होती है। छत्तीसगढ़ में तो सबसे पहला त्यौहार हरेली होता है, हरेली के बाद ही सारे त्यौहार मनाये जाते हैं। पहला त्यौहार होता है, इसलिए थोड़ी ज्यादा खुशी गांव-गांव में दिखती है।ऐसा लगता है कि गांव हरेली में खुश हैं।सीएम, नेताओं सहित किसान कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं, भगवान की पूजा करते हैं, तरह तरह व्यंजन बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है।हरेली में गेड़ी चढ़ने की परंपरा है इसलिए बच्चे,युवा गेड़ी चढ़़ते है, कई तरह की प्रतियोगिताएं होती हैं।

राज्य में परंपरा हो गई है कि जो भी सीएम बनता है, वह सीएम निवास में छत्तीसगढ़ के पर्व मनाता है और इस दिन सीएम हाउस के दरवाजे सबके लिए खुले होते हैं। भूपेश बघेल जब सीएम थे तो सीएम निवास में जो धूम रहती थी, आज सीएम साय हैं तो भी सीएम हाउस में हरेली की धूम तो रही है, भाजपा के कई नेताओं के यहां भी हरेली का पर्व सोल्लास मनाया गया। हर पर्व की तरह यह पर्व भी लोगों को खुद से जोड़ने से और उनसे जुड़ने को होता है तो नेताओं के लिए तो लोगों से जुड़ना और लोगों को जोडना सबसे ज्यादा जरूरी होता है, लोगों के जुड़ने एक कारण यह भी होता है कि हमारा नेता हमारे जैसा छत्तीसगढिया है, हमारे जैसे त्यौहार मनाता है।

अब भूपेश बघेल ने यह परंपरा शुरू की है तो उनके लिए तो अपने निवास मे हरेली का त्यौहार मनाना और भी जरूरी था। उन्होंने मनाया भी, सीएम नहीं रहने के बाद भी खुद को छत्तीसगढिया नेता बताने के लिए पहले जो कुछ करते थे, सब किया। हाथ पर लट्टू चलाकर दिखाया,गेड़ी चढ़कर दिखाया। पहले उनकी एक तस्वीर आती थी जिसमें वह एक छोटे बच्चे को हाथ में खड़े कर देते थे। इस बार अखबार में ऐसी तस्वीर नहीं दिखी। यह सब करना उनके लिए ठीक था लेकिन उऩका यह कहना राज्य के बहुत लोगों को अच्छा नहीं लगा कि पुत्रमोह में उन्होंने सरकार का बुरा चाहा। कहा मेरे परिवार को जिसने भी जेल भेजा उसकी सरकार चली जाती है। हरेली तिहार एक दूसरे के प्रति शुभकामना करने का होता है, एक दूसरे का भला चाहने का होता है। यह वक्त गुस्सा व नफरत का नहीं होता है।इतने बड़े नेता होकर भूपेश बघेल कैसे यह भूल गए। वह भाजपा की आलोचना तो करते हैं कि भाजपा नफरत की राजनीति करती है लेकिन लोगों ने आज देखा कि वह भी तो वही कर रहे थे।

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