प्रधानमंत्री ने गंगईकोंडा चोलपुरम में आदि तिरुवथिरई महोत्सव में भाग लिया

नई दिल्ली{ गहरी खोज }: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली स्थित गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में आदि तिरुवथिरई महोत्सव के दौरान महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम के जयंती उत्सव में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने सम्राट के सम्मान में एक स्मारक सिक्का जारी किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने आज गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस दौरान वे एक ‘कलश’ (धातु का बर्तन) लेकर आए, जिसमें गंगा का जल भरा हुआ था। यह जल धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है। उनके आगमन पर मंदिर के पुजारी ने पारंपरिक सम्मान के साथ उनका स्वागत किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि भारत देश की विविधता और संस्कृति हमारे साम्राज्य और धरोहर का प्रतीक है। चोल साम्राज्य की विरासत हमें यह सिखाती है कि एकता में कितनी शक्ति होती है। इस ऐतिहासिक मंदिर में पूजा करना उनके लिए अत्यंत सम्मान की बात है। उन्होंने कहा, “यहां, मैं केवल अपनी व्यक्तिगत प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ, बल्कि मैंने देश के 140 करोड़ लोगों के कल्याण के लिए प्रार्थना की है। मैं भगवान शिव से आशीर्वाद मांगता हूं कि वे सभी को आशीर्वाद प्रदान करें।”
चोल साम्राज्य के इतिहास का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि राजेंद्र चोल प्रथम ने न केवल दक्षिण भारत में बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया में भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उनकी विजयी सेनाएँ श्रीलंका, मालदीव और अन्य देशों तक पहुंचीं। यह संयोग है कि वे कल ही मालदीव से लौटे हैं और आज इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का हिस्सा बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि चोल राजाओं ने हमेशा सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देने का कार्य किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने चोल साम्राज्य के योगदान को याद करते हुए कहा कि राजेंद्र चोल ने गंगा जल को उत्तर से दक्षिण में लाकर पूजन किया। आज उसे पोन्नेरी झील के रूप में जाना जाता है। यह जल हमारी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि आज केन्द्र सरकार उसी चोला युग की विचारधारा को आगे बढ़ा रही है। काशी-तमिल संगमम् और सौराष्ट्र-तमिल संगमम् जैसे आयोजनों के माध्यम से हम एकता के पुराने सूत्रों को मजबूत कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर की भव्यता और इसका ऐतिहासिक महत्व हमें यह याद दिलाता है कि हम किस प्रकार की सांस्कृतिक धरोहर के वारिस हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस धरोहर को संरक्षित रखें और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं।
उल्लेखनीय है कि राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 ई.) भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और दूरदर्शी शासकों में से एक थे। उनके नेतृत्व में चोल साम्राज्य ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाया। गंगईकोंडा चोलपुरम को उनकी शाही राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था और यह मंदिर आज भी शैव भक्ति, स्मारकीय वास्तुकला और प्रशासनिक कौशल का प्रतीक बना हुआ है।
आदि तिरुवथिरई महोत्सव तमिल शैव भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण उत्सव है। चोलों ने इसे उत्साहपूर्वक समर्थन दिया और इसके 63 संत-कवियों – नयनमारों – ने इसे अमर कर दिया। इस वर्ष का उत्सव विशेष महत्व रखता है क्योंकि राजेंद्र चोल का जन्म नक्षत्र तिरुवथिरई (आर्द्रा) में हुआ था, जो 23 जुलाई से शुरू होता है।