लोक परंपराओं में समाज को दिशा देने की शक्ति : मोदी

नयी दिल्ली { गहरी खोज }: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि हमारी लोक परंपराएँ कोई बीते युग की बातें नहीं है, इनमें आज भी समाज को दिशा देने की शक्ति है।
श्री मोदी ने अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात ’में आज कहा “भारत की विविधता की सबसे खूबसूरत झलक हमारे लोकगीतों और परंपराओं में मिलती है और इसी का हिस्सा होता हैं, हमारे भजन और हमारे कीर्तन। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि कीर्तन के ज़रिए जंगल की आग के प्रति लोगों को जागरूक किया जाए ? शायद आपको विश्वास न हो, लेकिन ओडिशा के क्योंझर जिले में एक अद्भुत कार्य हो रहा है। यहाँ, राधाकृष्ण संकीर्तन मंडली नाम की एक टोली है। भक्ति के साथ-साथ, ये टोली, आज, पर्यावरण संरक्षण का भी मंत्र जप रही है। इस पहल की प्रेरणा प्रमिला प्रधान हैं। जंगल और पर्यावरण की रक्षा के लिए उन्होंने पारंपरिक गीतों में नए बोल जोड़े, नए संदेश जोड़े। उनकी टोली गांव-गांव गई। गीतों के माध्यम से लोगों को समझाया कि जंगल में लगने वाली आग से कितना नुकसान होता है। ये उदाहरण हमें याद दिलाता है कि हमारी लोक परंपराएँ कोई बीते युग की बातें नहीं है, इनमें आज भी समाज को दिशा देने की शक्ति है।”
उन्होंने कहा “भारत की संस्कृति का बहुत बड़ा आधार हमारे त्योहार और परम्पराएं है, लेकिन हमारी संस्कृति की जीवंतता का एक और पक्ष है। ये पक्ष है अपने वर्तमान और अपने इतिहास को दस्तावेजीकरण(डाॅक्यूेंट) करते रहना। हमारी असली ताकत वो ज्ञान है, जिसे सदियों से पांडुलिपियां के रूप में सहेजा गया है। इन पांडुलिपियों में विज्ञान है, चिकित्सा की पद्धतियाँ हैं, संगीत है, दर्शन है, और सबसे बड़ी बात वो सोच है, जो, मानवता के भविष्य को उज्ज्वल बना सकती है।”
प्रधानमंत्री ने कहा “ऐसे असाधारण ज्ञान को, इस विरासत को सहेजना हम सबकी जिम्मेदारी है। हमारे देश में हर कालखंड में कुछ ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने इसे अपनी साधना बना लिया। ऐसे ही एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं – मणि मारन जी, जो तमिलनाडु के तंजावुर से हैं। उन्हें लगा कि अगर आज की पीढ़ी तमिल पांडुलिपियाँ पढ़ना नहीं सीखेगी, तो आने वाले समय में ये अनमोल धरोहर खो जाएगी। इसलिए उन्होंने शाम को कक्षाएँ शुरू की। जहां छात्र, नौकरीपेशा युवा, शोधकर्ता, सब यहाँ आकर सीखने लगे। मणि मारण जी ने लोगों को सिखाया कि पत्ते पर लिखी पांडुलिपियों को पढ़ने और समझने की विधि क्या होती है। आज अनेकों प्रयासों से कई छात्र इस विधा में पारंगत हो चुके हैं। कुछ छात्रों ने तो इन पांडुलिपियों के आधार पर पारंपरिक चिकित्सा पद्धति पर शोध भी शुरू कर दिया है। अगर ऐसा प्रयास देशभर में हो तो हमारा पुरातन ज्ञान केवल दीवारों में बंद नहीं रहेगा, वो, नयी पीढ़ी की चेतना का हिस्सा बन जाएगा। इसी सोच से प्रेरित होकर, भारत सरकार ने इस वर्ष के बजट में एक ऐतिहासिक पहल की घोषणा की है ‘ज्ञान भारतम् मिशन’। इस मिशन के तहत प्राचीन पांडुलिपियों को डिजिटल किया जाएगा।”
उन्होंने कहा कि मेरा भी आप सबसे आग्रह है, अगर आप किसी ऐसे प्रयास से जुड़े हैं, या जुड़ना चाहते हैं, तो माईगोव या संस्कृति मंत्रालय से जरूर संपर्क कीजिएगा, क्योंकि, यह केवल पांडुलिपियाँ नहीं है, यह भारत की आत्मा के वो अध्याय हैं, जिन्हें हमें आने वाली पीढ़ियों को पढ़ाना है।