पंजाब सरकार की लैंड पूलिंग नीति

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संपादकीय { गहरी खोज }: मान सरकार ने किसान संगठनों व विपक्षी दलों के विरोध को देखते हुए अपनी लैंड पूलिंग नीति 2025 में संशोधन किए हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में किए गए संशोधनों के अनुसार एक एकड़ से कम जमीन वाले किसान भी आवासीय और व्यावसायिक भूखंडों के लिए पात्र होंगे, बशर्ते वे स्वेच्छा से लैंड पूलिंग में भाग लें। एक कनाल जमीन के बदले किसानों को 125 वर्ग गज का एक आवासीय प्लॉट और 25 वर्ग गज का बूथ मिलेगा। दो कनाल जमीन के लिए 250 वर्ग गज का आवासीय प्लॉट और 50 वर्ग गज की शॉप साइट मिलेगी। तीन कनाल जमीन के लिए दो आवासीय भूखंड (250 और 125 वर्ग गज) और 75 वर्ग गज का एक व्यावसायिक स्थल मिलेगा। इसी प्रकार, सात कनाल तक जमीन के योगदान पर आनुपातिक रूप से बड़े प्लॉट मिलेंगे। मुख्यमंत्री भगवंत मान की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में लैंड पूलिंग नीति में संशोधन का निर्णय लिया गया। किसानों को 50,000 रुपये प्रति एकड़ के बढ़े हुए मुआवजे को भी मंजूरी दी गई। यह भी निर्णय किया गया है कि जो किसान व्यावसायिक भूखंड नहीं लेना चाहते, उन्हें मानक आकार से तीन गुना बड़े आवासीय प्लॉट मिल सकते हैं। अकाली-भाजपा या कांग्रेस सरकारों द्वारा लाई गई ऐसी पिछली नीतियों में, जमीन मालिकों को एक कनाल जमीन के बदले केवल 150 वर्ग गज का आवासीय प्लॉट दिया जाता था। तीन कनाल तक के अधिग्रहण पर व्यावसायिक जमीन देने का कोई प्रावधान नहीं था। सीएम मान ने विपक्ष के आरोपों को झूठा करार देते हुए कहा कि किसानों को आवंटित की जाने वाली व्यवसायिक भूमि उनकी आय बढ़ाने में मदद करेगी। उन्होंने कहा, मैं ग्रामीणों को विस्थापित करने की नीति क्यों लाऊंगा? ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि जमीन का विकास छोटे-छोटे क्षेत्रों में किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने दोहराया कि भागीदारी स्वैच्छिक रहेगी और कोई जबरन अधिग्रहण नहीं होगा। उन्होंने कहा, विकास शुरू होने तक किसान अपनी जमीन पर खेती जारी रख सकते हैं और तब तक उन्हें बढ़ा हुआ मुआवजा मिलेगा। आवंटित प्लॉटों के लिए आशय पत्र 21 दिनों के भीतर जारी किया जाएगा, जिससे किसान भविष्य में जमीन पर ऋण ले सकेंगे।

पंजाब सरकार की लैंड पूलिंग नीति का विरोध कर रहे किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल और हरिंदर सिंह लखोवाल ने जो आपत्तियां जताई हैं वह इस प्रकार हैं- प्लॉट मिलने तक सरकार ने एक लाख रुपए देने की घोषणा की है। लेकिन जब सरकार ने कब्जा ले लिया, फिर खेती कैसे होगी। किसान का पूरा परिवार खेती पर निर्भर है। हम खेती से ही परिवार का पालन पोषण, बच्चों की शिक्षा, शादी और अन्य जरूरतें पूरी करते हैं। जमीन नहीं रहेगी, पूरा परिवार सड़कों पर आ जाएगा। जो जमीन एक्वायर हो रही है, शहरों के पास है। वहां तो मार्केट रेट पहले ही ज्यादा है। सरकारी रेट तो काफी कम है। खेत से किसान 3 से 4 फसलें ले रहे हैं। उनको जमीन बेचने की क्या जरूरत। जमीन पर किसान कर्ज ले लेता है, लेकिन जब यह चली गई तो किस पर कर्ज लेगा। इसके अलावा जब जमीन के घेरे में दीवार कर दी गई तो बीच में खेती करने कैसे आ जा सकेगा। इस नीति के जरिए पंजाब विकसित करने की बात ड्रामा है। क्योंकि 3 साल में न कृषि नीति आई, न कोई विकास हुआ है। पंजाब में पहले ही नेशनल हाईवे ने खेती योग्य जमीन को कई हिस्सों में बांट दिया है। अगर सरकार को शहरों को विकसित करना ही है तो वह बंजर और खराब जमीनों पर करे। सवाल यह भी है कि इतनी जमीन पर यह बसाना किसे चाहते हैं। पंजाब के अधिकतर युवा तो विदेश और अन्य राज्यों में हैं।

सरकार की लैंड पूलिंग नीति का विरोध करने वाले अपनी जगह ठीक हो सकते हैं। किसान का अपनी जमीन को लेकर जो लगाव या मोह होता है उसको लेकर सदियों से कई किस्से और कहानियां लिखी जा चुकी हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि जब किसान निजी निर्माताओं को अपनी जमीन समय-समय पर बेचते रहे हैं और आज भी बेच रहे हैं तो फिर सरकार की लैंड पूलिंग नीति का विरोध क्यों? एक योजनाबद्ध तरीके से पंजाब के विकास तथा उज्ज्वल भविष्य के लिए लैंड पूलिंग नीति आवश्यक है। शहरों में कमजोर पड़ती बुनियादी सुविधाओं का मुख्य कारण गैर योजनाबद्ध निर्माण ही है। किसानों की आर्थिक तंगी का लाभ भी कई बार निजी निर्माता उठाते हैं। लैंड पूलिंग नीति को लेकर अगर कोई बुनियादी समस्या है तो उसको लेकर पंजाब सरकार से संवाद कर हल ढूंढना चाहिए। मुख्यमंत्री ने एक बार नहीं अनेक बार कहा है कि संवाद के लिए सरकार के दरवाजे खुले हैं। मात्र विरोध के लिए विरोध पंजाब हित में नहीं।

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