गीता श्लोक और गीता स्थली

संपादकीय { गहरी खोज }: हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने हरियाणा के सभी सरकारी स्कूलों में गीता के चौथे अध्याय के 34वें श्लोक को प्रार्थना सभा में उच्चारण करना अनिवार्य कर दिया है। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड का निर्णय स्वागतयोग्य और सराहनीय है। इससे पहले उपरोक्त श्लोक को उत्तराखंड सरकार ने भी सरकारी स्कूलों में उच्चारण करना अनिवार्य किया हुआ है।
यह श्लोक इस तरह है:
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः ॥
उस ज्ञान को तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भली भाँति दण्डवत् प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मतत्त्व को भली भाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्व ज्ञान का उपदेश करेंगे ॥ 34 ॥
गीता के बारे में श्री अरविन्द ने इस प्रकार लिखा है ‘गीता है जगत की श्रेष्ठ धर्मपुस्तक। गीता में जिस ज्ञान की व्याख्या संक्षेप में की गयी है वह ज्ञान है चरम और गहन। गीता में जिस धर्मनीति का वर्णन है, सब धर्मनीतियां हैं उसी नीति के अन्तर्गत, उसी पर प्रतिष्ठित। गीता में जो कर्ममार्ग प्रदर्शित किया गया है वही कर्म मार्ग है उन्नतिशील जगत् का सनातन मार्ग। गीता है अनगिनत रत्नों को उत्पन्न करने वाला अथाह समुद्र। जीवन भर इस समुद्र की थाह लेते रहने पर भी इसकी गहराई का अनुमान नहीं लगता, इसकी थाह नहीं मिलती। सैकड़ों वर्षों तक ढूंढते रहने पर भी इस अनंत रत्न-भंडार का सहस्रांश भी आहरण करना है दुष्कर। तथापि इससे दो-एक रत्न ही निकाल लेने से दरिद्र धनी हो जाता है, गंभीर व चिंतनशील व्यक्ति ज्ञानी तथा भगवदविद्वेषी प्रेमिक बन जाता है। महापराक्रमी, शक्तिमान्, कर्मवीर अपने जीवन की उद्देश्य सिद्धि के लिए पूर्ण सुसज्जित और सन्नद्ध हो कर्मक्षेत्र में लौट आता है। गीता है मणियों की अक्षय खान। यदि युग-युगांत तक इस खान से मणियां निकलती रहें तो भी भावी वंशधर इससे सर्वदा नये-नये अमूल्य मणि-माणिक्य प्राप्त कर प्रसन्न और विस्मित होते रहेंगे। ऐसी गंभीर और गूढ़ ज्ञानपूर्ण पुस्तक, फिर भी भाषा अतिशय प्राञ्जल, रचना सरल और बाह्य अर्थ सहज बोधगम्य। गीता-समुद्र की छोटी तरंगों के ऊपर-ही-ऊपर सैर करते रहने पर भी, डुबकी न लगाने पर भी शक्ति और आनन्द की थोड़ी-बहुत वृद्धि हो ही जाती है। गीता रूपी खान की रत्नोद्भासित गंभीर गुहा में प्रवेश न कर, केवल चारों ओर घूमते रहने पर भी घास-पात पर गिरी उज्ज्वल मणि मिल जाती हैं, उससे ही हम जीवन भर के लिये धनी बन सकते हैं।’
मुस्लिम और ईसाई समाज जिस तरह कुरान व बाईबल की जानकारी रखता है हिन्दू समाज गीता की नहीं रखता। युवा पीढ़ी को गीता से जोड़ने का जो प्रयास हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा किया गया है वह समय की मांग है। आज जिस तरह भौतिक सुख-सुविधा को ही जीवन का लक्ष्य मान जा रहा है, गीता के साथ जुड़ने से विद्यार्थी को जीवन के लक्ष्य का पता चलेगा साथ ही गीता के माध्यम से सनातन संस्कृति से भी जुड़ेगा। भारत, भारत ही रहे इसके लिए गीता का अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है। गीता का एक श्लोक एक चाबी की तरह काम करते हुए युवाओं के दिमाग को खोलने का कार्य करेगा।
इसी के साथ-साथ हरियाणा सरकार का गीता स्थली ज्योतिसर को विश्व का भव्य यादगार और ऐतिहासिक स्थल बनाने के लिए 250 करोड़ रुपए खर्च करने का एक ऐतिहासिक निर्णय है। कुरुक्षेत्र को एक सांस्कृतिक, ऐतिहासिक दृष्टि से विकसित करना समय की मांग है। कुरुक्षेत्र की इस पावन स्थली पर हुए महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण ने जो ज्ञान अर्जुन के माध्यम से संसार को दिया वह आज पहले से कहीं अधिक सार्थक है। यह ज्ञान किसी जाति, सम्प्रदाय या धर्म विशेष के लिए नहीं बल्कि विश्व के लिए है। गीता संदेश को जो मानव अपने आचरण में ले आता है वह ‘मैं’ और ‘मेरे’ को छोड़ सबमें उस परमात्मा को देखता है और उसी की शरण हो अपना कर्म करते हुए इस मायारूपी भवसागर को पार कर जाता है।