राष्ट्रपति के शीर्ष अदालत से राय मांगने के मामले में केंद्र, सभी राज्य सरकारों को नोटिस

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज }:उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इस सवाल पर अपना पक्ष रखने को कहा है कि “क्या अदालतें राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय-सीमा और प्रक्रियाएँ निर्धारित कर सकती हैं?”
इस संबंध में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 13 मई को शीर्ष अदालत से राय देेने को कहा था और इसमें 14 प्रश्न उठाये थे।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय से राय मांगने के मामले में सुनवाई की और विचार करने पर सहमति व्यक्त की।
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी करने के साथ ही अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी से भी इस मामले में न्यायालय की सहायता करने को कहा। पीठ ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 29 जुलाई तारीख तय की है। पीठ ने यह भी कहा कि अगस्त के मध्य से संबंधित पक्षों की दलीलें सुनी जाएंगी।
गौरतलब है कि उच्चत्तम न्यायालय ने 8 अप्रैल को अपने एक फैसले में सभी राज्यपालों को विधानसभा से पारित विधेयक को मंजूरी देने की समयसीमा तय कर दी थी। फैसले में कहा गया था कि राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक के संबंध में कोई विवेकाधिकार प्राप्त नहीं हैं और वे मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं। ऐसे में उन्हें मंत्रीपरिषद की सलाह का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा। न्यायालय ने फैसले में कहा था कि यदि राष्ट्रपति, राज्यपाल द्वारा भेजे गए किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति नहीं देते हैं, तो राज्य सरकारें सीधे उच्चतम न्यायालय में अपना मामला रख सकती हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए उच्चतम न्यायालय से संदर्भ के माध्यम से राय मांगी है। संविधान का अनुच्छेद 143(1) राष्ट्रपति के सर्वोच्च् न्यायालय से राय लेने से संबंधित है।

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