प्रदोष व्रत के दिन बन रहा मां गौरी और भगवान शिव की उपासना के लिए अद्भुत संयोग, जानें कैसे करनी है पूजा

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धर्म { गहरी खोज } : सावन माह चल रहा है, 22 जुलाई को सावन का पहला प्रदोष व्रत पड़ रहा है। प्रदोष व्रत को भगवान शिव की पूजा के लिए बेहद खास दिन माना जाता है। प्रदोष व्रत के दिन शाम को भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। इसके साथ ही इसी दिन मंगला गौरी व्रत भी है, जो महागौरी के प्रति समर्पित त्योहार माना गया है। ऐसे में इस दिन पूजा-उपासना करने से जातक को भगवान शिव के साथ ही महागौरी का भी आशीर्वाद मिलेगा। इस दिन शाम के समय (प्रदोष काल) और निशीथ काल में भी पूजा की जाती है। चूंकि कई वर्षों बाद मंगला गौरी व्रत और प्रदोष व्रत एक साथ पड़ रहे हैं। ऐसे में यह एक अद्भुत संयोग से कम नहीं हैं। इस दिन पूरे शिव परिवार का पूजन जातक को शुभ फल की प्राप्ति कराता है।

पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रदोष काल की पूजा

प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद का समय होता है। इस समय को अध्यात्मिक दृष्टि से बेहद अहम माना जाता है। इस समय में योग, ध्यान और अध्यात्मिक क्रियाएं की जाती हैं। इसीलिए आदियोगी शिव की पूजा करना बेहद शुभ फलदायक है। प्रदोष काल में चार प्रहर की पूजा की जाती है।

निशीथ काल की पूजा
जानकारी दे दें कि इस दिन निशीथ काल यानी रात के 9 बजे के बाद का समय होता है। इस दौरान शिवजी की पूजा के साथ भगवान शिव की स्तुति और स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं। जैसे- रुद्राष्कम, शिव षडक्षर स्तोत्रम और शिव चालीसा।

कैसे करनी है पूजा?
सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें और फिर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और साफ वस्त्र पहनें। इसके बाद घर के मंदिर की सफाई करें और एक चौकी लें। फिर उस पर मां गौरी और भगवान शिव की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। मां गौरी को लाल रंग का वस्त्र अर्पित करें और भगवान शिव को सफेद वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद प्रतिमा के सामने घी का दीया जलाएं और शिव चालीसा और मां पार्वती की चालीसा करें। इसके बाद आरती करें और क्षमा याचना भी करें।

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