PM धनधान्य कृषि योजना

संपादकीय { गहरी खोज }: भारत एक कृषि प्रधान देश है। करीब 65 से 70 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में ही बसती है। आर्थिक दृष्टि से देखें तो कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी ही है। रीढ़ की हड्डी की मजबूती पर ही इंसान का जीवन निर्भर होता है। ठीक उसी तरह भारत की मजबूती भी कृषि तथा गांव की मजबूती पर निर्भर है। इस बात को समझते हुए केंद्रीय सरकार ने धनधान्य कृषि योजना को मंजूरी दे दी है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि योजना का बुनियादी मकसद कृषि उत्पादकता बढ़ाना, विविधता भरी फसलें उगाने का चलन बढ़ाना, फसल की कटाई के बाद पंचायत तथा ब्लॉक स्तर पर भंडारण बढ़ाना और लंबी तथा छोटी अवधि के लिए कर्ज आसानी से उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा कि 100 जिलों का चयन तीन प्रमुख मानदंडों पर किया जाएगा फसल में कम उत्पादकता, फसल का कम घनत्व और कर्ज की औसत से कम उपलब्धता। मंत्री ने कहा कि चुने गए हरेक जिले के लिए कृषि एवं उससे जुड़ी अन्य गतिविधियों की अलग योजना तैयार की जाएगी। यह काम जिलाधिकारी के अधीन एक समिति करेगी। समिति व्यापक परामर्श भी करेगी और कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुसार फसल पैटर्न तथा उससे जुड़ी गतिविधियों को समझेगी। योजना की नियमित निगरानी के लिए राज्य स्तर पर समितियों और राष्ट्रीय स्तर पर एक निगरानी समिति भी गठित की जाएगी। यह योजना नीति आयोग के मार्गदर्शन में होगी और वही इसे चलाने का काम भी करेगा। केंद्रीय और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों को हर राज्य में ज्ञान भागीदार का जिम्मा सौंपा जाएगा। नीति आयोग इस योजना के तहत चुने गए जिलों को उनके प्रदर्शन के आधार पर वैसे ही रैंकिंग देगा जैसी आकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत दी जाती है। जिलों में कृषि बेहतर करने के मकसद से शुरू की जा रही इस योजना पर सालाना 24,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे और कुल 100 जिले इसके दायरे में आएंगे। पहले से चल रही 36 योजनाओं को इस योजना के अंतर्गत लाया जा रहा है। इस योजना में हर राज्य से कम से कम एक जिले को शामिल किया जाएगा। इस योजना का मकसद उन जिलों की फसलों से होने वाली उपज को, कर्ज की उपलब्धता को और दूसरे पैमानों को राष्ट्रीय स्तर के बराबर लाना है। धन-धान्य योजना के लिए अलग से कोई धनराशि नहीं आवंटित की जाएगी और 11 मंत्रालयों के तहत पहले से चल रही 36 योजनाओं के लिए आवंटित होने वाला धन ही इसमें इस्तेमाल होगा। इसमें कृषि, खाद्य, पशुपालन व डेयरी, मत्स्य पालन, वित्त, ग्रामीण विकास, सहकारिता, सिंचाई व अन्य विभागों की योजनाएं शामिल होंगी। यह योजना नीति आयोग के आकांक्षी जिला कार्यक्रम की तर्ज पर बनाई गई है, जिसकी घोषणा 2025-26 के बजट में की गई थी। धन-धान्य योजना चालू वित्त वर्ष में शुरू होकर 6 साल तक चलेगी और इससे करीब 1.7 करोड़ किसानों को मदद मिलने का अनुमान लगाया गया है।
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान अनुसार जुलाई माह के अंत तक 100 जिलों की पहचान कर ली जाएगी और अक्तूबर से यह कार्यक्रम औपचारिक रूप से शुरू हो जाएगा। कृषि मंत्री चौहान अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर इस योजना की निगरानी के लिए मंत्रियों की एक समिति होगी, जबकि कार्यक्रम की समीक्षा के लिए विभिन्न विभागों से सचिवों का एक पैनल होगा।
भारत अगर 2047 तक एक विकसित देश बनने का लक्ष्य हासिल करना चाहता है तो उसे देश के किसान तथा गांव दोनों को विकसित करना होगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कृषि क्षेत्र में मिल रही चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए आवश्यक है कि हमारा कृषि क्षेत्र मजबूत हो। ‘प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना’ किसान और गांव को मजबूत करने की दिशा में उठा एक बड़ा कदम ही माना जाएगा।