मिजोरम के लोगों का भारतीय रेल नेटवर्क से जुड़ने का सपना पूरा

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आईजोल{ गहरी खोज }: पूर्वोत्तर के मिजोरम राज्य में रेल संरचना का कार्य पूरा हो गया है और उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जल्द ही इस खंड पर रेल को हरी झंडी दिखाकर आईजोल के नागरिकों का भारतीय रेल नेटवर्क से जुड़ने का सपना पूरा कर देंगे।
मिजोरम अब तक बैरवी तक भारतीय रेल से जुड़ा है लेकिन अब बैरवी से आईजोल तक रेल लाइन पर काम लगभग पूरा हो गया है और इसे हरी ठंडी दिखाने का इंतजार है। अधिकारियों का कहना है कि प्रधानमंत्री ने ही इस लाइन का शिलान्यास किया था और अब उम्मीद है कि वही हरी झंडी दिखाकर इस मार्ग पर रेल संचालन की भी शुरुआत भी करेंगे।
परियोजना के मुख्य इंजीनियर विनोद कुमार का कहना है कि बैरवी-सारंगी रेल लाइन पर निर्माण का काम पूरा हो चुका है। रेलगाड़ी के संचालन के लिए यह खंड अब पूरी तरह से तैयार है। इस खंड के निर्माण पर करीब 11 साल का वक्त लगा है। बैरबी-साइरंग तक की परियोजना के निर्माण में चुनौतियां कई तरह की रहीं लेकिन परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने इन चुनौती की परवाह किये बिना इस काम को सफलतापूर्वके पूरा किया है।
उन्होंने बताया कि 51 किमी लंबे बैरबी-साइरंग खंड पर 153 पुल हैं जिनमें 55 बड़े पुल हैं, जिनमें 6 पुलों की ऊँचाई कुतुबमीनार से भी ज्यादा है। इस खंड पर 10 पुल सड़कों के ऊपर भी बने हैं। मार्ग पर कुल 48 सुरंगे बनाई गई है। उनका कहना था कि आईजोल तक रेल मार्ग बनने से बैरबी आईजोल के बीच की दूरी 8 से 10 घंटे के सड़क मार्ग की महज करीब 3 घंटे में पूरी की जा सकेगी।
श्री कुमार के अनुसार सैइरंग स्टेशन के पास बना पूंक़ 124 मीटर ऊंचा है। राष्ट्रीय राजमार्ग से इसकी खूसरती देखते ही बनती है। इसकी लम्बाई 378 मीटर है।
बैरबी साइरंग रेलमार्ग निर्माण की संस्तुति 2008-9 में मिली थी। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मार्ग के निर्माण की आधारशिला रखी और कई चुनौतियों के बाद इस मार्ग पर अब काम पूरा हो चुका है। निर्माण कार्य से जुड़े इंजीनियरों का कहना है कि कि यहां निर्माण सामग्री के लिए पूरी तरह से बाहरी क्षेत्रों पर निर्भर रहना पड़ता है और गिट्टी कंक्रीट जैसी सामग्री झारखंड असम पश्चिम बंगाल आदि क्षेत्रों से मांगनी पड़ती है। उनका यह भी कहना था यहां पर कुशल और अकुशल दोनों तरह के श्रमिकों की कमी रही है और श्रमिकों की कमी के कारण काम को पूरा करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहा है। बाहर के श्रमिक ज्यादा देर तक टिक नहीं पा रहे थे। इसकी वजह दुर्गम क्षेत्र था जहां मोबाइल नेटवर्क जैसी आवश्यक सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी। रेल मार्ग कई क्षेत्रों में राष्ट्रीय राजमार्ग से 12 किलोमीटर से ज्यादा अंदर घने जंगलों से गुजर रहा है।

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