सेना प्रमुख की चेतावनी

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संपादकीय { गहरी खोज }: गत दिनों एक ‘थिंक टैंक’ को संबोधित करते हुए भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल (सीडीएस) अनिल चौहान ने चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की बढ़ती नजदीकियों को लेकर एक चेतावनी भरे अंदाज में कहा कि इन देशों का अपने हितों को लेकर एक-दूसरे के प्रति झुकाव से भारत की स्थिरता और सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है। भारत और पाकिस्तान के बीच पहलगाम आतंकी हमले के बाद 7 से 10 मई के बीच हुए सैन्य संघर्ष का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा कि शायद यह पहली बार हुआ है जब दो परमाणु हथियार से संपन्न देश सीधे तौर पर संघर्ष में शामिल हुए हैं। उन्होंने पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ और भारत के प्रति समान हित का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने बीते 5 साल में अपने 70 से 80 फीसद हथियार और उपकरणों को चीन से ही हासिल किया है। चीन की सैन्य कंपनियों की पाकिस्तान से वाणिज्यिक देनदारियां भी हैं।

गौरतलब है कि पिछले दिनों देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी वर्तमान शांति के माहौल को एक ‘भ्रम’ ही बताया था। धरातल का सत्य यही है कि ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ के दौरान जिस तरह चीन पाकिस्तान की सहायता में सार्वजनिक रूप से सामने आया था वह भारत के लिए एक आने वाले संकट का संकेत ही था। पाकिस्तान व बांग्लादेश की नजदीकियों का ही परिणाम है कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले बढ़ रहे हैं। हिन्दुओं की जान-माल खतरे में है। हिन्दू मंदिर कट्टरपंथियों के निशाने पर है।

उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए ही भारत सरकार ने अपना रक्षा बजट भी बढ़ाया था और घातक हथियार लेने की योजना को भी पारित किया था। रक्षा मंत्रालय ने 1.05 लाख करोड़ रुपए की सैन्य साजो-सामान व उपकरण से लेकर हथियारों की खरीद को मंजूरी दी थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की बैठक में तीनों सेनाओं के लिए कई हथियार खरीदने के प्रस्तावों को हरी झंडी दी थी। इनमें मिसाइलें, इलेक्ट्रानिक वारफेयर सिस्टम, बख्तरबंद वाहन व अन्य रक्षा उपकरण शामिल हैं। यह खरीद स्वदेशी होगी, जिसका फायदा देश के रक्षा उद्योग को भी होगा। इससे भारतीय सेना घातक हथियारों से लैस होगी। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि स्वदेशी स्रोतों से लगभग 1.05 लाख करोड़ के 10 पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों के लिए आवश्यकता की स्वीकृति (एओएन) प्रदान की गई है। इसमें बख्तरबंद रिकवरी वाहनों, इलेक्ट्रानिक वारफेयर सिस्टम, एकीकृत कामन इन्वेंट्री मैनेजमेंट सिस्टम और मिसाइलों की खरीद शामिल हैं। आपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के हमले स्वदेशी आकाश तथा रूस से मिले एस-400 एयर डिफेंस ने नाकाम किए थे। ब्रह्मोस मिसाइलों ने पाकिस्तानी वायुसेना के ठिकानों पर व्यापक तबाही मचाई थी। डीएससी बैठक में मूर्ड माइंस, माइन काउंटर मेजर वेसल्स, सुपर रैपिड गन माउंट और सबमर्सिबल आटोनामस वेसल्स की खरीद के प्रस्तावों को भी स्वीकृति प्रदान की गई है। 12 माइन काउंटर मेजर वेसल्स (एससीएमवी) या माइन स्वीपर वेसल्स की खरीद पर 44 हजार करोड़ खर्च होंगे। 15 वर्षों में तीन बार इसकी खरीद असफल रही है। सात वर्ष पहले इन्हें खरीदने के लिए दक्षिण कोरिया से बातचीत विफल हो गई थी। भारतीय नौसेना के पास अभी कोई एमसीएमवी नहीं है। पानी के नीचे बारूदी सुरंगों का पता लगाने, ट्रैक करने व नष्ट करने के लिए नौसेना विशेष युद्धपोत खरीदने का प्रयास कर रही है। दुश्मन पानी में बारूदी सुरंग समुद्री व्यापार बाधित करने व बंदरगाह अवरुद्ध करने के लिए लगाते हैं। प्रस्ताव के अनुसार, एमसीएमवी का निर्माण भारत में किया जाएगा।

हमारे पूर्वजों ने भक्ति के साथ शक्ति के सिद्धांत को मान्यता दी थी। शास्त्र और शस्त्र के तालमेल से ही शांति स्थापित की जा सकती है। भारत जिस तरह विश्व की राजनीति में अपना दखल व कद बढ़ा रहा है उसको देखते हुए भी हमें अपनी सेना व उसके साजो-सामान को समय अनुसार तकनीकी रूप से मजबूत करते रहना चाहिए। पाकिस्तान, बांग्लादेश जो कभी भारत का हिस्सा होते थे आज मुस्लिम राष्ट्र के रूप में भारत के विरोधी देशों के रूप में उभर रहे हैं और इनके पीछे चीन और तुर्की खड़े हैं। इसलिए भारतीय सेना प्रमुख चौहान की चेतावनी को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

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