उपराष्ट्रपति ने भारत की बौद्धिक विरासत को वैश्विक संदर्भ में सराहा

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  • भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर जेएनयू में प्रथम वार्षिक सम्मेलन
    नई दिल्ली{ गहरी खोज }: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में आयोजित भारतीय ज्ञान प्रणालियों (आईकेएस) पर प्रथम वार्षिक शैक्षणिक सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्धि और वैश्विक महत्व को रेखांकित करते हुए देश की बौद्धिक विरासत पर गर्व करने का आह्वान किया। सम्मेलन में भारत की प्राचीन बौद्धिक परंपराओं को समकालीन शोध और शिक्षा प्रणाली से जोड़ने पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ।
    इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने प्रसिद्ध जर्मन विद्वान मैक्स मूलर के उद्धरण के माध्यम से भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को रेखांकित किया। उन्होंने इसे शाश्वत सत्य की अभिव्यक्ति बताया। धनखड़ ने कहा कि लंबे समय तक पश्चिमी सिद्धांतों को सार्वभौमिक सत्य के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि भारत की स्वदेशी ज्ञान परंपराओं को नकारात्मक दृष्टि से देखा गया। आज़ादी के बाद भी यह मानसिकता कुछ हद तक जारी रही।
    उन्होंने कहा कि भारत केवल 20वीं सदी के मध्य में बनी राजनीतिक संरचना नहीं है बल्कि सभ्यतागत सातत्य है, जो चेतना, अन्वेषण और ज्ञान की एक बहती नदी के रूप में आज भी विद्यमान है। उपराष्ट्रपति ने तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी और ओदंतपुरी जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये न केवल शिक्षा के केंद्र थे बल्कि वैश्विक ज्ञान समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत भी थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि ज्ञान केवल पांडुलिपियों में नहीं, बल्कि समुदायों की परंपराओं, प्रथाओं और पीढ़ियों के अनुभवों में भी समाहित होता है। उन्होंने भारतीय ज्ञान प्रणाली अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र में लिखित शब्द और जीवंत अनुभव दोनों को समान महत्व देने की आवश्यकता पर बल दिया। धनखड़ ने कहा कि अतीत का ज्ञान नवाचार में बाधा नहीं बल्कि प्रेरणा का स्रोत है। आध्यात्मिकता और भौतिकता के बीच संवाद संभव है। आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और वैज्ञानिक परिशुद्धता सह-अस्तित्व में रह सकती हैं। इस अवसर पर केंद्रीय बंदरगाह और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, जेएनयू की कुलपति प्रो. शांतिश्री पंडित सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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