एकजुट नहीं इसलिए कहा एकजुट रहो

सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }: कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एम.खरगे किसान,जवान व संविधान सभा में जुटी भीड़ से जितने खुश होकर गए हैं, कांग्रेन नेताओं के एकजुट न होने से उतने ही नाखुश होकर गए हैं और नसीहत देकर गए हैं कि साय सरकार के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करो।एकजुट होते तो राष्ट्रीय अध्यक्ष को नसीहत देने की जरूरत नहीं पड़ती। नसीहत इस बात का प्रमाण है कि खरगे को दिल्ली तक खबर पहुंच गई होगी कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेता एकजुट नहीं है, एकजुट होकर साय सरकार के खिलाफ संघर्ष नही कर रहे है।यहां आकर उन्होंने देखा भी होगा कि कांग्रेस नेता कैसे एक दूसरे से होड़ कर रहे थे खुद का सामने लाकर दूसरे को सामने न आने देने की, उन्होंने यह भी देखा होगा कि कैसे एक नेता के बोलते वक्त कार्यकर्ता चुप रहते हैं और कैसे एक नेता के बोलते वक्त कार्यकर्ता हल्ला करते हैं। सबको मालूम है कि सभा मे यह हल्ला गुल्ला किसके इशारे पर किया जा रहा था।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यक्रम में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी जिनको दी गई थी,सबने अपना काम जिम्मेदारी से किया, वह जानते थे कि यह काम नहीं करने का परिणाम क्या होता। प्रदेश अध्यक्ष ने भी सभा में भीड़ को देखकर राहत की सांस ली होगी क्योंकि सभा में भीड़ कम होती तो सारा ठीकरा अध्यक्ष होने के नाते उनके सिर पर ही फोड़ा जाता।भीड़ जुटाकर प्रदेश अध्यक्ष ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का ख्याल रखा तो वह उम्मीद कर सकते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष उनको योग्य मानेंगे और उनका ख्याल रखेंगे।कांग्रेस में तो योग्य वही माना जाता है जो पद पर रहता है और जो पद से हटा दिया जाता है,वह योग्य नहीं माना जाता है।कांग्रेस में कुछ लोग तो चाहते हैं कि दीपक बैज को पद से हटा दिया जाए लेकिन दीपक बैज पद पर है और वह उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में भी राहुल गांधी व एम खरगे ने चाहा तो वह पद पर बने रहेंगे।
जहां तक कांग्रेस के बड़े नेताओं के एकजुट न होने का सवाल है तो वह प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के बस की बात नहीं है क्योंकि वह तो दीपक बैज की बात मानने से रहे। बड़े नेताओं के कारण ही छोटे नेता व कार्यकर्ता भी बड़े नेताओं के साथ बंटे रहते हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे के लिए कह देना आसान है कि बड़े नेता एकजुट होकर काम करें। बड़े नेताओं का एकजुट होना आसान नहीं है क्योंकि वह खुद ही एक दूसरे के खिलाफ होते हैंं। एक दूसरे की मौका मिलने पर शिकायत करते हैं। खुद को बड़ा नेता व दूसरे को छोटा नेता साबित करने का प्रयास करते रहते हैं। सब जानते हैं कि प्रदेश प्रभारी से किसने शिकायत की थी कि कुछ बड़े नेता साय सरकार के खिलाफ तीखा हमला नहीं करते हैं। मैं जैसा कहता हूं, वैसा नहीं कहते हैं, मैं जैसा करता हूं वैसा नहीं करते हैं।यह भी सब जानते हैं कि शिकायत पर किसने कहा था कि अब की बार सब विधानसभा डंडा लेकर जाएंगे।
जहां मोदी सरकार का सवाल है तो इसके बनने से राहुल गांधी को सबसे ज्यादा दुख हुआ था, उनको उससे ज्यादा दुख तो इस बात का होता है कि जिस मोदी सरकार को उन्होने कमजोर सरकार कहा था वह आज भी मजबूती से चल रही है। जब राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे कहते हैं कि मोदी तो चंद्रबाबू व नीतीश कुमार के पैर से चल रहे हैं, कोई भी टांग हिली तो मोदी गिर जाएंगे तो वह भी राहुल गांधी की तरह ही एक तरह से दुख व्यक्त करते हैं कि कमजोर सरकार गिर नहीं रही है। हम तो चाहते हैं कि गिर जाए लेकिन नहीं गिर रही है, हम तो हर चुनाव में चाहते हैं कि मोदी सरकार न बने लेकिन जनता है कि फिर से मोदी सरकार बना देती है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे व दूसरे कांग्रेस नेता जब साय सरकार की आलोचना करते हुए भूपेश सरकार के समय १७ जनकल्याणकारी कामों की याद दिलाते हैं तो कई लोगों को हंसी आती होगी और याद आता होगा भूपेश सरकार के समय जनकल्याणकारी कामों से ज्यादा ध्यान तो पार्टीकल्याणकारी काम पर दिया जाता था।राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे की सभा ७ जुलाई को थी तो चार जुलाई से रोज अखबारों में खबर छप रही थी या छापी जा रही थी कि भूपेश सरकार के समय पार्टीकल्याणकारी काम कैसे किया जा रहा था। कौन कौन कर रहा था। वह खुद का कितना क्ल्याण कर रहा था और पार्टी का कितना कल्याण कर रहा था।
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी चाहते हैं कि कांग्रेस नेता एक बार फिर से २०१८ की तरह एकजुट होकर सरकार के खिलाफ संघर्ष करें और फिर एक बार कांग्रेस की सरकार बनाएं।प्रदेश प्रभारी को शायद मालूम नहीं है कि तब कांग्रेस १५ साल सत्ता से दूर थी, सत्ता की भूख बहुत तेज थी,अभी तो सत्ता से दूर हुए एक साल हुआ है। अभी तो कई नेताओं का पेट भरा हुआ है। वह जानते हैं कि सत्ता के लिए वह एकजुट होंगे तो फिर सीएम तो उसे ही बना दिया जाएगा जिसे वह अब नही चाहते हैं। जय वीरू की जोडी़ भी अब पहले जैसी नहीं रह गई है, न जय जय रहा न वीरू वीरू रहा। इसके लिए कौन दोषी है कांग्रेस में सब जानते हैं।