सदन के बाहर राजनेताओं के आपसी संबंध आज के समान कटु नहीं बल्कि मधुर होते थे:सुमित्रा

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जयपुर { गहरी खोज }: राजस्थान विधानसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा सिंह ने विधानसभा में सदन के बाहर राजनेताओं के आपसी संबंध आज के समान कटु नहीं बल्कि मधुर बताते हुए कहा है कि विपक्ष के नेता अनुभवी मुख्यमंत्रियों को भी विधानसभा में कठघरे में खड़ा कर देते थे लेकिन सदन के बाहर सभी राजनेताओं में मधुर संबंध रहे हैं।
श्रीमती सुमित्रा सिंह रविवार को यहां पूर्व मंत्री सुरेन्द्र व्यास की पुस्तक “एक विफल राजनीतिक यात्रा” का विमोचन करने के बाद आयोजित कार्यक्रम में यह बात कही। उन्होंने कहा कि विधानसभा में सदन के बाहर राजनेताओं के आपसी संबंध आज के समान कटु नहीं बल्कि मधुर होते थे और दिग्गज नेता भैरोंसिंह शेखावत विपक्ष में रहते सुखाड़िया जैसे अनुभवी मुख्यमंत्रियों को भी विधानसभा में कठघरे में खड़ा कर देते थे लेकिन सदन के बाहर उनके सभी राजनेताओं से मधुर संबंध रहे।
उन्होंने कहा कि श्री व्यास ने नौवीं विधानसभा के कार्यकाल में भैरों सिंह शेखावत के दामाद के मामले में उनके लिए संकट की स्थिति पैदा कर दी लेकिन जब व्यास विशेषाधिकार हनन के एक मामले में सत्ता पक्ष के सदस्यों द्वारा महाभारत के अभिमन्यू की तरह चारों ओर से घिर गये तो भी अपने सिद्धांतों से समौता नहीं किया और माफी नही मांगी, ऐसी स्थिति में भी श्री शेखावत ने श्री व्यास की सदस्यता रद्द नहीं होने दी।
इस अवसर पर श्री व्यास ने कहा कि राजस्थान में मुख्यमंत्री एवं विपक्ष के बीच आपसी सहयोग के अनकहे समझौते की परंपरा रही है और उन्होंने इस पुस्तक में ज्वलंत उदाहरण देकर ऐसे समझौतों को सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने इस ओर संकेत किया कि गत दिनों पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से वर्तमान मुख्यमंत्री को बदलने की सुगबुगाहट का जो समाचार छपा है वह इसी परंपरा की और इशारा करता है।
उन्होंने कहा कि पुस्तक में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गांधी और राजीव गाधी की कार्यशैली को अनेक उदाहरणों के साथ विस्तार से वर्णित किया गया है। उन्होंने पुस्तक में लिखा है कि प्रशासनिक तंत्र में नियमों को परे रखकर किस प्रकार मुख्यमंत्री का अहम हावी होता है और इसको न्यायसंगत नहीं मानने वाले की क्या गति होती है।
श्रीमती सुमित्रा सिंह ने कहा कि चार बार उनके साथ विधायक रहे श्री व्यास ने विधानसभा में ज्वलंत मुद्दों को बड़ी शिद्दत के साथ उठाया और उन्हें परिणाम तक पहुंचाने के लिए खूब मेहनत की। कुछ मामलों को तो वे उच्चत्तम न्यायालय तक ले गये लेकिन विडम्बना यह रही कि उन मामलों ने सुर्खियां तो खूब बटोरी लेकिन ये वांछित परिणाम तक नहीं पहुंच पाये। पुस्तक का शीर्षक ‘एक विफल राजनीतिक यात्रा’ श्री व्यास की इसी निराशा का परिणाम है जिसे इन्होंने भी स्वीकार किया है।
उन्होंने कहा कि श्री व्यास सदन में बडी बेबाकी और तर्को के साथ अपनी बात कहते थे जिसे बड़ी गंभीरता से सुना जाता था उन्होंने श्री व्यास को पुस्तक के लिए बधाई देत हुए आशा व्यक्त की कि वह ऐसी पुस्तके और लिखे जिनसे नये राजनीतिज्ञों को सीखने का मौका मिले।

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