राजनीति में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, पर व्यक्तिगत आक्षेपों के लिए कोई स्थान नहीं:शेखावत

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Gajendra-Singh-Shekhawat

जोधपुर{ गहरी खोज }: केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाल के बयानों पर पलटवार करते हुए कहा है कि राजनीति में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, पर व्यक्तिगत आक्षेपों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
श्री शेखावत शनिवार को यहां सर्किट हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता में शेखावत ने कहा कि श्री गहलोत द्वारा इसी सर्किट हाउस में उनकी दिवंगत माता पर जो गंभीर आरोप लगाए थे, वे पूरी तरह निराधार और निंदनीय हैं। उन्होंने कहा कि अब श्री गहलोत ओछी राजनीति पर उतर आए हैं और मीडिया के जरिए उन्हें संदेश भेज रहे हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह इस मुद्दे को केवल राजनीतिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत सम्मान और परिवार की गरिमा से जुड़ा मामला मानते हैं।
श्री शेखावत ने कहा कि कांग्रेस द्वारा भाजपा सरकार पर संविधान से छेड़छाड़ के आरोप लगाना बिल्कुल भी शोभनीय नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा अल्पसंख्यकों को ‘पहला अधिकार’ देने की बात को कौन भूल सकता है। इसलिए पहले कांग्रेस को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए, उसके बाद भाजपा पर कोई आरोप लगाना चाहिए। श्री गहलोत द्वारा आपातकाल पर माफी मांगने से जुड़े सवाल पर भी श्री शेखावत ने पलटवार करते हुए कहा कि क्या जबरन नसबंदी के शिकार लोग उस अमानवीयता को भूल पाएंगे। क्या उनका कोई कसूर था। यह विषय क्षमा योग्य नहीं है।
उन्होंने दो टूक कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने केवल अपनी सत्ता बचाने के लिए लोकतंत्र का गला घोंटा। उन्होंने कहा कि लंबी गुलामी और लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बाद भारत को आजादी मिली। वैदिक काल से लेकर मध्यकाल तक इतिहास में देश की गौरवशाली परंपराओं के प्रमाण मिलते हैं। हमारा संविधान दुनिया का सबसे सजीव और प्रगतिशील संविधान है जो 1950 में लागू हुआ। इसी के साथ नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी प्राप्त हुई लेकिन देश पर थोपे गए आपातकाल के दौरान हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया। मीडिया पर घोषित और अघोषित प्रतिबंध लगाए गए। पत्रकारों को जेल भेजा गया और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी दबा दिया गया।
श्री शेखावत ने कहा कि आजादी के बाद के शासनकाल में हुए जनांदोलनों को नकारा नहीं जा सकता। वर्ष 1977 में जब जनता ने तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई, तब जाकर लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हुई। आज वही लोग मीडिया की स्वतंत्रता की बात करते हैं, जिन्होंने उस दौर में मीडिया का गला घोंट दिया था। उन्होंने कहा कि भविष्य में संविधान पर कोई हमला नहीं हो, उसको लेकर भाजपा जनजागरण कर रही है।

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