जीएसटी के सरलीकरण का इंतजार

संपादकीय { गहरी खोज }: देश में जीएसटी शुरू होने से देश के विकास को गति मिलनी शुरू हुई है। स्वर्गीय अरुण जेटली के प्रयासों के कारण ही देश की टैक्स व्यवस्था में बुनियादी बदलाव लाते हुए जीएसटी शुरू हुआ था। आठ वर्ष पहले हुए जीएसटी में पिछले पांच वर्षों में रिकॉर्ड तोड़ वसूली हुई है। ग्रॉस जी.एस.टी. कलैक्शन 5 साल में दोगुना होकर वित्त वर्ष 2024-25 में 22.08 लाख करोड़ रुपए के लाइफ टाइम हाई पर पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2020-21 में 11.37 लाख करोड़ रुपए था। ग्रॉस जी.एस.टी. कलैक्शन वित्त वर्ष 2024-25 में 22.08 लाख करोड़ रुपए के अपने पीक को छू गया, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 9.4 फीसदी अधिक है। वित्त वर्ष 2024-25 में औसत मासिक कलैक्शन 1.84 लाख करोड़ रुपए रहा, जो 2023-24 में 1.68 लाख करोड़ रुपए और 2021-22 में 1.51 लाख करोड रुपए था। जानकारों की मानें तो आने वाले सालों में ये मासिक औसत कलैक्शन 2 लाख करोड़ रुपए के करीब पहुंच सकता है। जी.एस.टी. के तहत रजिस्टर्ड करदाताओं की संख्या 2017 के 65 लाख से बढ़कर 8 साल में 1.51 करोड़ रुपए से अधिक हो गई है। जी.एस.टी. के आठ वर्षों पर एक सरकारी बयान में कहा गया कि इसके लागू होने के बाद से जी.एस.टी. ने रैवेन्यू कलैक्शन और टैक्स बेस बढ़ाने में मजबूत वृद्धि दिखाई है। इसने भारत की राजकोषीय स्थिति को लगातार मजबूत किया है और अप्रत्यक्ष कराधान को अधिक कुशल और पारदर्शी बनाया है। जी.एस.टी. ने 2024-25 में 22.08 लाख करोड़ रुपए का अपना अब तक का सबसे अधिक सकल संग्रह दर्ज किया, जो सालाना आधार पर 9.4 प्रतिशत की वृद्धि है।
जीएसटी प्रणाली को शुरू हुए आठ वर्ष हो चुके हैं। पिछले आठ वर्षों से ही जीएसटी के स्लैबों का सरलीकरण करने की मांग व्यापारियों और उद्योगपतियों द्वारा की जा रही है। स्लैब की समस्या को समझने के लिए आप सम्मुख कुछ तथ्य रखना चाहूंगा-रोटी और पराठे पर जीएसटी की दर अलग है। बन और बटर पर कोई जीएसटी नहीं, लेकिन बन में बटर लगाकर परोसा गया तो जीएसटी लग जाएगा। 25 किलोग्राम तक के पैक्ड अनाज जैसे कि दाल, चावल व अन्य पर पांच प्रतिशत टैक्स लिया जाता है। परंतु 26 किलोग्राम या 30 किलोग्राम के पैक्ड अनाज पर कोई टैक्स नहीं लगता है। अब 25 किलोग्राम से कम खरीदने वालों का इसमें क्या कसूर है।
सैकड़ों ऐसी वस्तुएं है जिनकी जीएसटी दरों में असमानता के कारण व्यापारी और ग्राहक दोनों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। कारोबारियों के मुताबिक, अगर उनका एक आफिस दिल्ली में है और दूसरा नोएडा में तो उनका जीएसटी आडिट या मूल्यांकन अलग-अलग अधिकारी करेंगे और वह आडिट भी अलग-अलग होगा। इससे व्यावहारिक रूप में परेशानी होती है। जीएसटी पोर्टल में जो पता है और वह बदल गया है तो उस पते पर माल भेजने पर भी धारा 129 के तहत जीएसटी अधिकारी माल को पकड़ लेते हैं। उद्योग जगत की मांग है कि सरकार को जीएसटी रिटर्न के सरलीकरण के साथ-साथ जीएसटी को आराम से अपनाने के लिए छोटे कारोबारियों को तकनीकी मदद देनी चाहिए। वहीं, देश के तीन चार हिस्सों में कारोबार करने वाले कारोबारी का आडिट या मूल्यांकन भी एक ही अफसर से होना चाहिए। चार्टर्ड एकाउंटेंट व जीएसटी विशेषज्ञों अनुसार इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने में भी कारोबारियों को दिक्कतें आ रही हैं। दो व्यापारियों ने आपस में कारोबार किया और किसी एक ने अपना जीएसटी रिटर्न नहीं भरा है तो दूसरे को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा। कई ऐसे छोटे-छोटे कारोबारी हैं जिन्होंने सालों से पोर्टल पर लाग-इन नहीं किया है, लेकिन सरकार को तरफ से उन्हें टैक्स की डिमांड आई हुई है। कारोबारियों को दूसरे माध्यम से भी डिमांड की सूचना दी जाना चाहिए।
जीएसटी प्रणाली लागू करते समय तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने व्यापार जगत को आश्वासन दिया था कि जल्द ही देश में दो स्लैब कर दिए जाएंगे, अभी 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत का स्लैब है और सोने के लिए 3 प्रतिशत का स्लैब है। विकसित देशों में दो ही स्लैब है। जब देश विकसित देशों की सूची में आने का प्रयास कर रहा हैं तो सरकार को अपनी नीति में भी विकसित देशों वाली सोच को ही अपनाना चाहिए, तभी हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे।