बैठक में शिकायत बड़े नेता करने लगे तो

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सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:
राजनीति में चुनाव सबसे बड़ी परीक्षा होती है, इस परीक्षा में जो पास होता है, वह सबसे योग्य व सबसे बड़ा माना जाता है। जो परीक्षा में फेल हो जाता है, वह अयोग्य माना जाता है,उसे कोई बड़ा नहीं मानता है। आलाकमान से लेकर सामान्य कार्यकर्ता तक पूछता उसको है,जाता उसके पास है जिसने चुनाव जिताया है, जो चुनाव जीतता है।कई बार ऐसा भी होता है कि एक बार जो चुनाव जिताकर सीएम बन जाता है, राज्य का सबसे बड़ा नेता बन जाता है और दूसरा चुनाव हार जाता है तो भी उसका वहम रहता है कि वही आज भी पार्टी का आज भी सबसे बड़ा नेता हैं। वह चाहता है कि पार्टी के लोग पहले की तरह उनकी इज्जत करें, उनके पास आएं,उनको एहसास दिलाते रहें कि राज्य के सबसे बड़े नेता तो आज भी वही हैं।वह जैसा चाहते हैं वैसा ही पहले की तरह करें।
पूर्व सीएम व वर्तमान पंजाब प्रभारी भूपेश बघेल को वर्तमान में ऐसा लग रहा है कि राज्य में पहले की तरह उनको सबसे बड़ा नेता नहीं माना जा रहा है।वह जैसा चाहते है, कहते हैं वैसा कोई नहीं कर रहा है,ऐसा लग रहा है इसलिए वह पार्टी के छोटे नेताओं की तरह बैठक मेंं प्रदेश प्रभारी सचिन पायलेट से शिकायत करते हैं कि राज्य में पार्टी के नेता उनके खिलाफ कहते हैं और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उनके खिलाफ कार्रवाई करने की जगह उनके घर चाय पीने जाते हैं। हो सकता है कि भूपेश बघेल को ऐसा भी लग रहा हो कि विघानसभा चुनाव हारने के बाद उनको पंजाब का प्रभारी बना दिया गया है तो राज्य में उनकी पूछपरख कम हो गई है, कोी भी उनके खिलाफ कुछ भी बोल रहा है। इसलिए वह प्रदेश प्रभारी के सामने शिकायत कर रहे हैं।
भूपेश बघेल ने प्रदेश प्रभारी के सामने यह भी सवाल उठाया कि प्रदेश के वरिष्ठ व जिम्मेदार नेता सीएम पर हमला क्यों नहीं करते हैं।उन्होंने याद दिलाया कि पहले रमन सिंह के समय भी ऐसा होता था,कोई रमन सिंह के खिलाफ कुछ कहता नहीं था, इसी वजह से १५ साल कांग्रेस की सरकार नहीं बनी। उनको जब प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने रमन सिंह पर हमला शुरू किया।तब जाकर प्रदेश में हमारी सरकार बनी।राज्य में सरकार बनानी है तो बड़े नेताओं को सीधा सीएम पर हमला करना होगा। बताया जाता है कि भूपेश बघेल इस बात से सबसे ज्यादा परेशान हैं कि भाजपा व राज्य सरकार तो उनके समय के मामले उठाती ही है, प्रदेश कांग्रेस के कई नेता विधानसभा तक में उनकी सरकार के खिलाफ सवाल लगा देते हैं।
भूपेश बघेल को बुरा यह भी लगा होगा कि बैठक में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन देकर प्रदेश प्रभारी को प्रभावित कर लिया और प्रदेश प्रभारी ने प्रदेश अध्यक्ष बैज की यह कहकर तारीफ कर दी कि शुरुआती डेढ़ साल में ही किसी भी सरकार के खिलाफ इतने प्रदर्शन इतनी आक्रामकता पार्टी को मजबूत बनाती है।समान्यतः ऐसे आंदोलन तो ऐसी आक्रामकता तो चुनावी साल में होती है, लेकिन अभी से सरकार के खिलाफ माहौल बनाना कांग्रेस नेताओं में जोश भरने के लिए काफी है। यानी प्रदेश प्रभारी ने माना कि प्रदेश अध्यक्ष ने बहुत काम किया है। जबकि भूपेश बघेल ने यह बताने की कोशिश की कि पार्टी में अनुशासनहीनता है, बड़े नेताओं को जैसा करना चाहिए कर नहीं रहे हैं। प्रभारी का तो काम ही शिकायत सुनना रहता है, उन्होंने जैसे छोटे नेताओं की शिकायतें सुन ली, बातें सुन लीं, वैसे ही भूपेश बघेल सहित अन्य बड़े नेताओं की भी शिकायत सुन ली। सबको संतुष्ट कर दिया।
अब तो आलाकमान भी पू्र्व सीेएम भूपेश बघेल की पहले की तरह शायद ही सुने क्योंकि आलाकमान ने भूपेश बघेल को पंजाब प्रभारी बनाकर पंजाब में कांग्रेस को मजबूत करने भेजा था। इतने दिनों में भूपेश बघेल ने कांग्रेेस को मजबूत नहीं कर पाए।नहीं तो क्या वजह है कि पंजाब में हुआ विधानसभा उपचुनाव आप जीत जाती। बताया जाता है कि केजरीवाल एक उपचुनाव जीतने के लिए महीनों से मेहनत कर रहे थे और उनकी मेहनत रंग लाई और भूपेश बघेल की मेहनत का कोई लाभ कांग्रेस को नहीं मिला।यानी आलाकमान ने एक मौका दिया था और भूपेश बघेल फिर चूक गए।

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