क्या होती है DASH डाइट, बीपी कंट्रोल में है बेस्ट

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लाइफस्टाइल डेस्क { गहरी खोज }: DASH यानी Dietary Approaches to Stop Hypertension डाइट कोई नया ट्रेंड नहीं, बल्कि यह दशकों से डॉक्टरों और हार्ट एक्सपर्ट्स की पहली पसंद रही है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी जैसी संस्थाएं भी इस डाइट को हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल के लिए सबसे सुरक्षित और असरदार मान चुकी हैं। खास बात यह है कि यह डाइट केवल बीपी ही नहीं, बल्कि दिल की बीमारियों, स्ट्रोक, टाइप 2 डायबिटीज, किडनी फेलियर और यहां तक कि मेमोरी लॉस जैसे खतरे को भी कम करती है।

तनाव, प्रोसेस्ड फूड्स और बढ़ता नमक का सेवन… ये सभी आदतें आज हाई ब्लड प्रेशर यानी हाइपरटेंशन को आम बना रही हैं। लेकिन अगर आप DASH लेते हैं तो ये आपकी इस समस्या को कम करने में मदद करेगी। इस डाइट की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें किसी एक चीज को पूरी तरह बंद नहीं किया जाता, बल्कि उन्हें बैलेंस किया जाता है। तो चलिए जानते हैं कि इस डाइट में क्या और कितना खाना चाहिए और इसे कैसे शुरू करें ?

क्या है DASH डाइट?
DASH डाइट को अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी जैसे संस्थानों ने सबसे असरदार माना है। इसमें ऐसी चीजें शामिल होती हैं, जो शरीर में नमक (सोडियम), सैचुरेटेड फैट और शुगर की मात्रा को कंट्रोल रखती हैं।

DASH डाइट में क्या-क्या खाना चाहिए?

  1. साबुत अनाज (6 से 8 बार रोज)- आपकी थाली में रोजाना 6 से 8 बार साबुत अनाज शामिल होना चाहिए। इसमें गेहूं की ब्रेड, ब्राउन राइस, ओट्स या दलिया जैसे ऑप्शन आते हैं। ये अनाज फाइबर से भरपूर होते हैं और लंबे समय तक पेट भरा रखते हैं।
  2. फल और सब्ज़ियां (4 से 5 बार) – हर दिन अलग-अलग रंगों के ताजे फल और हरी पत्तेदार सब्जियां खानी चाहिए। ये शरीर को जरूरी विटामिन और मिनरल्स देते हैं और बीपी कंट्रोल में मदद करते हैं।
  3. लो-फैट दूध और दही (2 से 3 बार)- दूध और दही से कैल्शियम मिलता है, जो हड्डियों और दिल के लिए फायदेमंद होता है। लेकिन ध्यान रखें कि ये लो-फैट या टोंड हो, ताकि फैट की मात्रा ज्यादा न हो।
  4. हेल्दी फैट (2 से 3 बार)- तेल पूरी तरह न हटाएं, लेकिन इसकी क्वांटिटी कम कर दें। जैसे हर दिन करीब 2 से 3 चम्मच हेल्दी तेल जैसे सरसों, मूंगफली या जैतून का तेल इस्तेमाल करें।
  5. नट्स और बीज (हफ्ते में 4 से 5 बार)- बादाम, अखरोट, अलसी, सूरजमुखी के बीज जैसे ऑप्शन हफ्ते में कुछ दिन जरूर लें। ये गुड फैट्स और ओमेगा-3 से भरपूर होते हैं।
  6. मीठा बहुत कम (हफ्ते में 5 बार से कम)- चीनी, मिठाई, केक, पेस्ट्री या शरबत जैसी चीज़ें हफ्ते में 4-5 बार से ज्यादा न खाएं। ये बीपी और मोटापे को बढ़ा सकते हैं।

क्या कहती है रिचर्स?
रिसर्च के मुताबिक, 24 से भी ज्यादा क्लीनिकल ट्रायल्स में यह साबित हो चुका है कि DASH डाइट ब्लड प्रेशर को कम करने में बेहद प्रभावी है। रिसर्च यह भी बताती है कि वेजिटेरियन डाइट, लो-कार्बोहाइड्रेट डाइट और मेडिटेरेनियन डाइट भी बीपी को घटाने में मदद कर सकती हैं, लेकिन इनमें से सबसे मजबूत और भरोसेमंद वैज्ञानिक सबूत DASH डाइट को लेकर ही मिले हैं। यही वजह है कि अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी ने भी अपनी गाइडलाइंस में DASH डाइट को खासतौर पर रिकमेंड किया है।

कौन है ज्यादा बेहतर ऑप्शन?
सोया चाप प्लांट-बेस्ड प्रोटीन है, जिसमें फैट कम होता है। ये खासकर वेगन और हार्ट पेशेंट्स के लिए सुटेबल है। हालांकि अगर इसमें क्रीम, मेयो या मसालेदार ग्रेवी डाली जाए तो हेल्थ पर नेगेटिव असर पड़ सकता है। वहीं, पनीर टिक्का में प्रोटीन ज्यादा होता है लेकिन फैट और कैलोरी भी काफी होती है। ये उन लोगों के लिए ठीक है जिन्हें ज्यादा एनर्जी चाहिए, लेकिन हार्ट पेशेंट्स को सावधानी बरतनी चाहिए। अगर आप लो फैट, वेगन और हेल्दी हार्ट ऑप्शन चाहते हैं तो सोया चाप बेहतर है। अगर आपको ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है तो पनीर टिक्का भी ठीक है। लेकिन दोनों ही स्नैक्स ग्रिल या तंदूर में बनें होने चाहिए, डीप फ्राई या मलाई में डूबे न हों।

DASH डाइट से मिलते हैं ये फायदे
हेल्थलाइन के मुताबिक, DASH डाइट यानी Dietary Approaches to Stop Hypertension को आमतौर पर हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए जाना जाता है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा इसके स्वास्थ्य लाभ हैं। रिसर्च के मुताबिक ये डाइट न केवल बीपी कम करने में कारगर है, बल्कि वजन घटाने से लेकर दिल की बीमारियों तक को रोकने में सहायक मानी जाती है। इसके अलावा ये कैंसर के खतरे को कम करने में कारगर है। इसके साथ ही ये मेटाबॉलिक सिंड्रोम, जिसमें ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, ब्लड शुगर और मोटापा जैसे कई फैक्टर शामिल होते हैं, उसके जोखिम को DASH डाइट लगभग 50% तक घटा सकती है। इसके अलावा यह इंसुलिन रेजिस्टेंस को भी बेहतर कर सकती है, जिससे टाइप 2 डायबिटीज का खतरा कम होता है।

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