किडनी के लिए खतरनाक है हाई ब्लड प्रेशर, फिल्टर वाले हिस्से को करता है डैमेज, दिखाई देते हैं ये लक्षण

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लाइफस्टाइल डेस्क { गहरी खोज }: हाई ब्लड प्रेशर को साइलेंट किलर कहा जाता है क्योंकि ये धीरे-धीरे शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाता है। हाई ब्लड प्रेशर हार्ट और किडनी के लिए खतरनाक है। हाई ब्लड प्रेशर होने पर ब्लड वेसेल्स पर दवाब बढ़ जाता है। जिससे लंबे समय में किडनी यानि गुर्दे की ओर जाने वाली धमनियों का रास्ता संकरा, सख्त या कठोर हो जाता है। इस कंडीशन को मेडिकल भाषा में रीनल आर्टरी स्टेनोसिस कहा जाता है। ऐसी कंडीशन में किडनी तक ब्लड और ऑक्सीजन सही मात्रा में नहीं पहुंच पाता है।

किडनी को होने वाले नुकसान से गुर्दे ठीक से काम नहीं करते और शरीर में जमा होने वाले विषाक्त पदार्थों को ठीक से छानने की क्षमता कम हो जाती है। जिससे किडनी की बॉडी में फ्ल्यूड और ब्लड प्रेशर दोनों को कंट्रोल करने की क्षमता कम होने लगती है। यह एक हानिकारक चक्र बना जाता है जो किडनी को डैमेज कर सकता है।

किडनी के फिल्टर को करता है डैमेज
किडनी के अंदर छोटी फ़िल्टरिंग यूनिट होती है जिसे नेफ़्रॉन कहा जाता है। नेफ़्रॉन का काम खून में जमा अपशिष्ट, अतिरिक्त तरल पदार्थ और विषाक्त पदार्थों को निकालने और साफ करने का होता है। लेकिन हाई ब्लड प्रेशर नेफ़्रॉन के अंदर की नाज़ुक ब्लड वेसेल्स को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे खून ठीक तरीके से फिल्टर नहीं हो पाता और फिल्टरिंग की क्षमता कम हो जाती है।

हो सकती है क्रोनिक किडनी डिजीज
इससे शरीर में अपशिष्ट और तरल पदार्थ जमा हो जाते हैं, जिससे बॉडी में सूजन और कई दूसरी समस्याएं आने लगती हैं। यह डैमेज ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट (GFR) को कम करता है, जो किडनी का एक जरूर फंक्शन है। कम GFR का मतलब है कि किडनी खून को ठीक तरीके से फिल्टर नहीं कर पा रही है। जिससे क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) हो सकता है।

टॉयलेट में प्रोटीन लीक
हेल्दी किडनी फिल्टर के वक्त खून में जरूरी प्रोटीन को बनाए रखती है। लेकिन हाई ब्लड प्रेशर होने पर जरूरी प्रोटीन टॉयलेट में लीक हो सकता है। जिसे प्रोटीनुरिया के रूप में जाना जाता है। इस कंडीशन को किडनी के लिए खतरनाक माना जाता है। इसलिए तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

हाई ब्लड प्रेशर को बिना ट्रीट किए रहने से किडनी पर बुरा असर पड़ता है। इससे क्रॉनिक किडनी डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। जिससे लंबे समय में किडनी अपने फंक्शन को कम कर देती है। इससे शरीर के दूसरे अंगों पर भी असर होता है।

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