निशाने पर हैं परमाणु वैज्ञानिक

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संपादकीय { गहरी खोज }: ईरान के परमाणु कार्यक्रम और सैन्य क्षमताओं को खत्म या कमज़ोर करने के लिए 13 जून से इजराइल द्वारा शुरू किया गया ‘ऑपरेशन राईजिंग लॉयन’ अमेरिका द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर किये गये हमले के कारण एक नये मोड़ पर पहुंच गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान पर हमले के 3 घंटे बाद बाद देश को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि ईरान की अहम न्यूक्लियर साइट्स ‘ऑब्लिटरेट’ यानी कि पूरी तरह से तबाह कर दी गई। फोडर्डों पर बमों की एक पूरी खेप गिरा दी गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने ईरान को धमकी देते हुए कहा कि अब उसे शांति कायम करनी चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो उस पर और बड़े हमले किए जाएंगे। अमेरिका के हमले के जवाब में ईरान ने इजराइल पर मिसाइलें दागी हैं। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्ड्स (आईआरजीसी) ने कहा कि उन्होंने इजराइल पर सबसे बड़ा अटैक किया है। इसके तहत इजराइल के 14 अहम ठिकानों को निशाना बनाया गया है। टाइम्स ऑफ इजराइल के मुताबिक हाइफा और तेल अवीव के मिलिट्री और ईरान के परमाणु कार्यक्रम और सैन्य क्षमताओं को खत्म या कमजोर करने के लिए 13 जून से इजराइल द्वारा शुरू रिहायशी ठिकानों पर ईरानी मिसाइलें गिरी हैं। इजराइल में अब तक 86 लोगों के घायल होने की जानकारी मिली है। इजराइली मीडिया ने दावा किया कि 20 जून को तेहरान में एक इमारत पर हुए हमले में एक ईरानी परमाणु वैज्ञानिक की मौत हुई। इजराइल के हमलों में अब तक 14 परमाणु वैज्ञानिकों की मौत होने की आशंका है। इनमें से अधिकतर की सोते समय या काम पर जाने के समय में मौत हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार परमाणु वैज्ञानिकों को परमाणु युग की शुरुआत से ही निशाना बनाया जा रहा है। 1944 से 2025 तक वैज्ञानिकों को निशाना बनाने के लगभग 100 मामलों का डेटा एकत्र किया गया है। इजराइल के हालिया हमले में कई परमाणु विशेषज्ञों को निशाना बनाया गया। ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों, वायु रक्षा प्रणालियों और ऊर्जा अवसंरचना को नष्ट करने के लिए सैन्य बल के साथ ऐसा किया गया। इसके अलावा, पिछले गुप्त अभियानों के विपरीत, इजराइल ने तुरंत ही हत्याओं की जिम्मेदारी ली है। लेकिन शोध संकेत देता है कि वैज्ञानिकों को निशाना बनाने का कोई फायदा नहीं होता। किसी वैज्ञानिक को खत्म करने से परमाणु कार्यक्रम में देरी तो हो सकती है, लेकिन कोई कार्यक्रम पूरी तरह से खत्म होने की संभावना नहीं होती। डेटा में निशाना बनाए जाने को ऐसे मामलों के रूप में वर्गीकृत किया है, जिनमें वैज्ञानिकों को पकड़ लिया गया, धमकाया गया, घायल किया गया या मार दिया गया। निशाना बनाने वालों ने विरोधियों को सामूहिक विनाश के हथियार हासिल करने से रोकने की कोशिश के तहत ऐसा किया। अलग-अलग समय पर, कम से कम चार देशों ने राष्ट्रीय परमाणु कार्यक्रमों पर काम कर रहे नौ वैज्ञानिकों को निशाना बनाया है। परमाणु वैज्ञानिकों पर सबसे ज्यादा हमले कथित तौर पर अमेरिका और इजराइल ने किए हैं। लेकिन ऐसे हमलों के पीछे ब्रिटेन और सोवियत संघ का भी हाथ रहा है। इस बीच, मिस्र, ईरान और इराकी परमाणु कार्यक्रमों के लिए काम करने वाले वैज्ञानिक 1950 के बाद से सबसे अधिक बार निशाना बने हैं। वर्तमान इजराइली अभियान से पहले, ईरानी परमाणु कार्यक्रम में शामिल 14 वैज्ञानिकों के हमलों में मारे जाने की आशंका है।
परमाणु वैज्ञानिक हों या सेना के उच्च अधिकारी निशाने पर हों, समस्या का समाधान युद्ध नहीं संवाद से हो होगा। जी-7 की बैठक में शामिल हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यह समय युद्ध का नहीं है। युद्ध मानव के विकास में बाधा डालता है। अब अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों को नष्ट करने का दावा किया है। समय की मांग है कि अमेरिका, इजराइल और ईरान तीनों पर विश्व के देश दबाव बनाकर इस युद्ध को रोकें। अगर युद्ध रुकता नहीं और आगे बढ़ता है तो धीरे-धीरे इसका असर पूरे विश्व पर दिखाई देना शुरू हो जाएगा।
ईरान परमाणु बम बनाने की जिद्द अगर छोड़ दे तो यह युद्ध तत्काल रूप से रुक सकता है। परमाणु बम मानवता के लिए खतरा है। इनको कम करने की आवश्यकता है। नये बनाने के बजाये जिनके पास है उनको कम करने के लिए विश्व को दबाव बनाना होगा। परमाणु बम बनाने की होड़ को रोकना ही विश्व के हित में है। यह बात सभी को समझने की आवश्यकता है। परमाणु वैज्ञानिक या सैन्य अधिकारियों को मारना समस्या का समाधान नहीं है।

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