भीमा कोरेगांव मामला : सुप्रीम कोर्ट ने हनी बाबू की याचिका पर तत्काल सुनवाई से किया इनकार

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }:उच्चतम न्यायालय ने भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू की याचिका पर सोमवार को तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया, लेकिन ग्रीष्मावकाश (12 जुलाई ) के बाद मामले को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्ति की।
न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन के सिंह की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के ‘विशेष उल्लेख’ के दौरान मामले में शीघ्र सुनवाई के अनुरोध के बाद छुट्टियों के सीमित कार्य दिवसों का जिक्र और उनके आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही पीठ ने निर्देश दिया कि गर्मी की छुट्टियों के बाद अदालत खुलने पर मामले को सूचीबद्ध किया जाए।
छुट्टियों के बाद अदालत में 14 जुलाई से सामान्य रूप से सभी कामकाज होंगे। छुट्टियों (26 मई से 12 जुलाई) के दौरान अंशकालीन कार्य दिवस पीठ तात्कालिक महत्व के मामलों की सुनवाई करती है।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता से यह स्पष्टीकरण मांगा था कि शीर्ष अदालत में अपनी पिछली याचिका वापस लेने के बाद वह जमानत के लिए उच्च न्यायालय जा सकते हैं या नहीं।
मामले में उल्लेख के दौरान याचिकाकर्ता बाबू के वकील ने तर्क दिया कि मामले में कई सह-आरोपियों को शीर्ष अदालत ने या तो योग्यता के आधार पर या लंबे समय तक कारावास के कारण जमानत दी है।
बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा दो मई को की गई टिप्पणी के बाद स्पष्टीकरण की मांग करते हुए यह आवेदन दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि बाबू को अपनी विशेष अनुमति याचिका वापस लेने के बाद जमानत के लिए उच्च न्यायालय जाने की अपनी स्वतंत्रता के बारे में उच्चतम न्यायालय से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने मामले में आवेदन करने में हुई देरी पर सवाल उठाते हुए पूछा, “आदेश दो मई को पारित किया गया था। अदालत (उच्चतम न्यायालय) 23 मई तक पूरी तरह से काम कर रही थी। आवेदन पहले क्यों नहीं पेश किया गया?”
इस पर वकील ने कहा कि अदालत के आदेशों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने में समय लगता है।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने हालांकि टिप्पणी की, “यहां तक कि तत्काल मामलों में भी हमने प्रमाणित प्रतियों के बिना मामले दर्ज किए और सूचीबद्ध किए हैं।”
बाबू को जुलाई 2020 में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनाईए) ने भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में कथित माओवादी संबंधों के लिए गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया था। सितंबर 2022 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। मई 2024 में, उन्होंने परिस्थितियों में बदलाव का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली और नए सिरे से उच्च न्यायालय जाने का इरादा किया।
उच्च न्यायालय ने हालांकि कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश ने उन्हें निचली अदालत में फिर से जाने की स्पष्ट रूप से स्वतंत्रता नहीं दी, जिससे स्पष्टीकरण के लिए वर्तमान आवेदन किया गया।