पुलिस है पर उसका कोई डर नहीं है

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सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:
राज्य की जनता की सुरक्षा के लिए पुलिस है,यह सच है लेकिन कई बार आए दिन ऐसी ऐसी घटनाएं होती हैं कि राज्य के लोगों को लगता है कि राज्य में पुलिस है ही नहीं, पुलिस का गुंडा, बदमाशों, माफिया में कोई डर ही नहीं है। कहीं पर रेत माफिया लोगों को डराने के लिए गोली चलाता है तो पता चलता है कि उसको बचाने का काम पुलिस कर रही है।माफिया को बचाने का काम पुलिस करेगी तो माफिया पुलिस से डरेगा क्या। पुलिस उसके पीछे बचाने के लिए खड़ी रहेगी तो वह गोली बेखौफ क्याें नहीं चलाएगा। कहीं पर माफिया किसी युवक को फिल्मी स्टाइल में खंबे से बांधकर पीटता रहता है और पुलिस को कोई फोन तक करने की हिम्मत नहीं करता है।राजधानी के रेलवे स्टेशन पार्किंग में बदमाश पार्किग मैनेजर को चाकू से हमला करके, पैसे लूटकर भाग जाते हैं।यह सारी घटनाए लोगों को डराने वाली हैं कि बदमाश किसी के साथ भी कुछ भी कर सकते हैं।
पुलिस का काम ऐसी ही घटनाओं को रोकना होना चाहिए, पुलिस ऐसी घटनाओं को रोक नहीं पाती है। इससे पुलिस पर से जनता का भरोसा कम होता जाता है।राजधानी में चाकूबाजी रोकने के लिए पुलिस पिछले कई साल से क्या कुछ नहीं कर चुकी है लेकिन चाकूबाजी राजधानी में ही आए दिन होती रहती है।पुलिस के आलाअफसर ऐसे में थानेदारों पर नाराजगी जाहिर करके चुप हो जाते हैं।राजधानी के कबीरनगर, रेलवे स्टेशन,विधानसभा इलाके में हिस्ट्रीशीटर व बदमाशों द्वारा सरेआम चाकूबाजी करने पर आईजी अमरेश मिश्रा,एसएसपी लालउमेद सिंह ने नाराजगी जताई है और टीआई,सीएसपी को पुलिसिंग में कसावट लाने को कहा है। वे भी कभी टीआई.,सीएसपी थे इसलिए उनको मालूम है कि चाकूबाजी जैसी घटनाएं तब ही होती है जब थाना प्रभारियों की इलाके में पकड़ नहीं होती है।गुंडे बदमाशों की कोई मानिटरिंग नहीं होती है।अफसर डांट सकते है सो दोनो आलाअफसरों ने साफ कह दिया है कि अब ठीक से काम करने वाला टीआई,एसआई,हवलदार और सिपाही हटाए जाएंगे।ठीक से सुपरविजन करने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
आईजी व एसएसपी ने सच कहा है कि शहर में अगर बेसिक पुलिसिंग ठीक से होगी तो शहर में अपराध कम होंगे। यही पैमाना मान लिया जाए तो कोई भी कह सकता है कि शहर मे बेसिक पुलिसिंग ठीक से नहीं हो रही है इसलिए अपराध बढ़ रहे है, अपराधियों में पुलिस को कोई डर नहीं है, इसलिए अपराधी कहीं पर गोली चलाकर डरा रहे हैं तो कहीं किसी युवक को मुखबिरी के शक में खंबे से बांधकर पीटते हैं।इस तरह की घटना पर तो पुलिस को तुरंत मौके पर पहुंचना चाहिए और खुले आम कानून तोडऩे वालों को बताना चाहिए कि शहर में अभी पुलिस है, कोई भी किसी को इस तरह खंबे से बांधकर किसी को पीट नहीं सकता।
जनता कहीं भी अपराध हो तो पुलिस को उसकी जानकारी दे सकती है लेकिन देती नहीं है, इससे भी गुडों बदमाशों का हौसला बढ़ा रहता है। सवाल उठना स्वाभाविक है कि कहीं पर कोई दबंग किसी को खुलेआम पीट रहा है तो किसी भी आदमी ने उसकी सूचना तत्काल पुलिस को क्यों नहीं दी। आजकल तो ज्यादातर लोगों के पास मोबाइल है, कोई भी पुलिस को फोन कर बता सकता है कि फलानी जगह अपराध हो रहा है।पुलिस को लोग सूचना नहीं देते हैं क्योंकि पुलिस भी गुंडा बदमाशों से मिली हुई होती है, वह बता देती है कि सूचना किसने दी है। गुंडा बदमाश सूचना देने वाले की पिटाई करने उसके घर पहुंच जाते हैं। उसके बाद पुलिस अलग गवाही देने के लिए परेशान करती है।
खपरीडीह गांव में जिस युवक को दबंग ने खंबे से बांधकर पीटा,उसको किसी ने बता दिया होगा कि यह युवक खनिज विभाग को उनके गलत काम की सूचना देता है। पुलिस को किसी भी बात की सूचना देने का मतलब जब आ बैल मुझे मार जैसा है तो कौन पुलिस को सूचना देगा।यही वजह है कि पुलिस हमेशा सबकुछ हो जाने के बाद पहुंचती है। वह अपराध रोक नहीं पाती है, वह अपराध होने के बाद सब कुछ करती है।सीधी सी बात है कि पुलिस का सूचना तंत्र मजबूत नहीं है,यही वजह है कि उसे होते अपराध की सूचना मिलती नहीं है। अपराध होने के बाद सूचना मिलती है और इसके लिए खुद पुलिस दोषी है।

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