योजना में बदलाव सोचसमझ करना चाहिए

सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }: सरकार या सरकारी संस्था कोई योजना बनाती है तो उसे सोचसमझ कर बनाना चाहिए।आम लोगों से चर्चा कर,सुझाव लेकर बनाना चाहिए। खासकर ऐसी याेजनाएं जिसमें बच्चों,युवाओं को प्राेत्साहन राशि देने की बात होती है। योजना के लिए शर्तें या नियम भी एक बार बना देना चाहिए। नियम एक बार बन जाने के बाद उसे बदलना नहीं चाहिए। क्योंकि शुरू में नियम कुछ हो और बाद में नियम बदल दिया जाए तो योजना का लाभ पहले जितने लोगों को मिलता था,बाद में नहीं मिलता है। इससे बच्चों, युवाओं को लोगों को लगता है कि सरकार या कोई संस्था ज्यादा बच्चों,युवाओं को योजना का लाभ नहीं देना चाहती है। सरकारी या किसी संस्था की योजना का लाभ तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिलना चाहिए। लेकिन कई बार सरकारी के नियमों व शर्तों से ऐसा लगता है कि सरकार योजना का लाभ ज्यादा लोगों को नहींं देना चाहती है। इसलिए उसने नियम बदले हैं।
जनता सरकार की ऐसी योजनाओं से नाराज होती है जिसमें उसकी कोशिश यह होती है कि कम से कम लोगों को फायदा दिया जाए। हर सरकार के समय ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं।राजनीतिक दल चुनाव के वक्त तो कहते है, प्रचार करते है कि हमारी पार्टी की सरकार बनी तो सभी युवाओं को हर माह २५०० रुपए बेराेजगारी भत्ता दिया जाएगा। राजनीतिक दल के वादे पर यकीन युवा उसे वोट देते हैं जिता देते हैं, उनकी सरकार बन जाती है तो वह योजना का लाभ देने के लिए नियम बनाते हैं तो युवाओं को पता चलता है कि सरकार अब सभी युवाओं को बेरोजगारी भत्ता नहीं देना चाहती है। वह ऐसे नियम बनाती है कि कम युवाओं को लाभ मिले और उसे कम पैसा खर्च करना पड़े।सरकार किसानों का कर्जा माफ करने का वादा करती है और सरकार बनने पर सिर्फ सरकारी कर्ज माफ करती है। किसानों को सरकारें इस तरह अलग अलग राज्यों में ठग चुकी हैं। युवाओं को ठग चुकी हैं।इससे राजनीतिक दलों पर युवाओं का भरोसा कम हो रहा है।वह समझ गए हैं कि राजनीतिक दलों के सारे वादे चुनाव जीतने के लिए होते हैं।
ऐसा नहीं है तो क्या वजह है कि बच्चों के लिए बनाई गई शिक्षा प्रोत्साहन योजना का नियम ऐसा बना दिया जाता कि ज्यादा बच्चों को लाभ ही न मिले।राज्य में तेंदूपत्ता संग्राहकों के बच्चों के लिए शिक्षा प्रोत्साहन योजना बनाई गई कि यदि वह १० वीं १२वीं में ७५ प्रतिशत अंक लाते हैं तो उनको १५ हजार व २५ हजार रुपए दिए जाएंगे इससे वह आगे की पढ़ाई अच्छे से कर सकेंगे। इस योजना का लाभ १०वीं व १२ वीं के ढाई हजार बच्चों को मिल रहा था। यह तो बताया नहीं गया है कि इस योजना का लाभ २४-२५ में लेने के लिए ९० प्रतिशत अंक क्यों किया गया है।लेकिन इससे आदिवासी क्षेत्र के बच्चों को बड़ी निराशा हुई है। क्योंकि आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा के वैसे सुविधा साधन नहीं होते हैं कि वह अच्छे से पढ़कर ९० प्रतिशत से ज्यादा अंक ला सकें।
ऐसे में आदिवासी क्षेत्र के ऐसे बच्चे जिनको ७५ प्रतिशत अंक लाने पर प्रोत्साहन राशि मिलती थी अब नहीं मिलेगी। अब ९० प्रतिशत लाने वालों को यह प्रोत्साहन राशि मिलेगी और इनकी संख्या निश्चित रूप से कम होगी।राज्य के मुख्यमंत्री आदिवासी है और आदिवासी क्षेत्र के बच्चों के लिए ही ऐसी योजनाएं बनाई जा रहीं कि ज्यादा से ज्यादा आदिवासी बच्चों का उसका लाभ ही न मिले।ऐसे में आदिवासी परिवारों को लगेगा ही कि राज्य में उन्होने आदिवासी सीएम बनाया और उसका लाभ आदिवासी बच्चो को न मिले तो आदिवासी सीएम बनाने का क्या फायदा हुआ। सीएम साय तो जानते होंगे कि आदिवासी बच्चे ७५ प्रतिशत अंक भी कितनी मुश्किल लाते हैं, उनके लिए नियम तो शिक्षा प्रोत्साहन राशि पाने के लिए जो नियम बदल कर ९० प्रतिशत किया गया है, उसे वापस ७५ प्रतिशत करना चाहिए।