बाेधघाट परियोजना और अरविंद नेताम

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सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }:
यह संयोग है तो अजब संयोग है कि एक तरफ अरविंद नेताम आरएसएस के कार्यक्रम में बुलाए जाने और आरएसएस की तारीफ करने के कारण राज्य के राजनीतिक गलियारों में चर्चित है तो सीएम साय के पीएम मोदी से बाेधघाट परियोजना व महानंदी इंद्रावती इंटर लिंकिंग परियोजना पर चर्चा करना भी चर्चा का विषय बना हुआ है। वैसे बोधघाट परियोजना व आदिवासी नेता अरविंद नेताम का गहरा संबंध रहा है। जब भी बोधघाट परियाेजना का नाम लिया जाता है तो कांग्रेस नेता अरविंद नेताम को जरूर कोसते हैं कि यह परियोजना भूपेश बघेल के समय पूरी हो सकती थी यदि अरविंद नेताम ने इसका विरोध न किया होता।
वैसे बोधघाट परियोजना का शिलान्यास १९७९ में हो गया था, यह बस्तर के विकास के लिए वरदान साबित हो सकता था लेकिन कई कारणों से यह परियोजना अटकी रही। हर सरकार के समय इस परियोजना को लेकर चर्चा तो होती थी लेकिन किसी सरकार के समय इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। इसके पूरा नहीं होने का कारण नक्सलवाद भी माना जाता है। बस्तर में नक्सलवाद होने के कारण ही यह परियोजना आज तक पूरी नहीं हो सकी है। नक्सली बस्तर का विकास नहीं चाहते इसलिए उनके रहते इस परियाेजना का काम पूरा होना बहुत ही मुश्किल था। फिर भी भूपेश बघेल सरकार ने इस परियोजना को लेकर दिखाने की कोशिश की वह बस्तर का विकास चाहती है, इसलिए वह इस परियोजना का पूरा करना चाहती है लेकिन वह पूरा नहीं कर सकी यह उसकी बडी़ असफलता है.
इस बात की नाराजगी भूपेश बघेल को होना स्वाभाविक है यही वजह है कि जब इन दिनों अरविंद नेताम संघ के कार्यक्रम में शामिल होकर आए हैं और आरएसएस की तारीफ कर रहे हैं तो भूपेश बघेल को बुरा लगना स्वाभाविक है क्योंकि अरविंद नेताम भी बरसों कांग्रेसी रहे हैं।वह १९७१ में पहली बार सांसद बने और इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री रहे। १९९३ में नरसिम्हा सरकार में मंत्री रहे। वह बस्तर में कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता माने जाते रहे हैं।१९९७ से २०२३ के बीच वह चार बार कांग्रेस छोड़कर गए और वापस आए।वह जिस तरह का सम्मान चाहते थे, वैसा सम्मान उनको बाद में नहीं मिला, अब जब वह बुजुर्ग हो गए हैं और कांग्रेस उनका सम्मान नहीं करती और आरएसएस बुलाकर सम्मान करता है तो उनका गदगद होना स्वाभाविक है, उनकी भाषा का बदलना कांग्रेसियों के लिए हैरानी के साथ दुख की बात भी है कि एक कांग्रेसी नेता कैसे आरएसएस की तारीफ कर सकता है।
अरविंद नेताम जब कांग्रेस नेता थे तो वह सर्व आदिवासी समाज के साथ आरएसएस के सारे संगठन जो आदिवासी क्षेत्र में आदिवासियों के हित में काम करते हैं उनका विरोध करते थे और आज कहते हैं कि आरएसएस तो विशुध्द रूप से सामाजिक व सांस्कृितिक संगठन है और आदिवासियों के हित में काम कर रहा है।अरविंद नेताम के संघ के पाले में चले जाने व सीएम साय के बोधघाट परियाेजना का काम शुरू कराने की घोषणा से कांग्रेस की चिंतित होना स्वाभाविक है।क्योंकि पिछले चुनाव में बस्तर सरगुजा में कांग्रेस का सुपड़ा साफ हो गया था, वहां के एक आदिवासी नेता शराब कवासी लखमा शराब घोटाले में जेेल में है, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज आदिवासी नेता हैं लेकिन पिछले चुनाव में यह साफ हो चुका है कि वह कांग्रेस को बस्तर में चुनाव नहीं जिता सकते।
बस्तर में कांग्रेस के पास कोई मजबूत आदिवासी नेता नहीं है, इधर सीएम साय ऐसे आदिवासी नेता के रूप में स्थापित हो गए हैं जो ईमानदार है, भ्रष्टाचार विरोधी है, बस्तर को जल्द नक्सलवाद से मुक्त कराने वाला है और बस्तर काे विकास की राह पर ले जाने वाला है। ऐसे में यदि मोदी सरकार बोधघाट परियाेजना व इंद्रावती महानदी इंटर लिंकिंग परियोजना का काम शुरू भी करा देती है, अरविंद नेताम भी उसका समर्थन करते हैं तो बस्तर में तो यही माना जाएगा कि जो काम कांग्रेस व भूपेश बघेल नहीं करा सके वह काम आदिवासी सीएम साय ने कर दिखाया है।यह भी समझा जाएगा कि सीएम साय आदिवासी है, इसलिए उन्होंने बस्तर को नक्सलवाद से मुक्त करने का प्रयास किया और बस्तर के विकास के लिए जरूरी बोधघाट परियोजना के महत्व काे समझकर उसे शुरू करने का प्रयास भी कर रहे हैं।छत्तीसगढ़ की राजनीति में किसान, महिला के बाद आदिवासियों के वोट को भी बड़ा महत्व है। साय तीनों को अपने काम से खुश कर लेते हैं तो उनकी फिर से शानदार वापसी से इंकार नहीं किया जा सकता।

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