भारत में गर्मी का प्रकोप बदतर हो रहा है, लेकिन कोई नहीं जानता कि कितने लोग मर रहे हैं

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नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: पिछले साल मई की तपती दोपहर में दिल्ली के गाजीपुर इलाके में एक कूड़ा बीनने वाला व्यक्ति गर्मी के कारण बेहोश होकर गिर पड़ा। पेशे से सफाई कर्मचारी मजीदा बेगम ने उसे इस हालत में देखा और बताया कि ‘‘परिवार उसे अस्पताल ले गया। लेकिन उसे मृत घोषित कर दिया गया। उनके पास इस बात का कोई सबूत नहीं था कि वह गर्मी के कारण मरा है, इसलिए उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला।’’ उसकी मौत को कभी आधिकारिक तौर पर गर्मी से मौत के रूप में नहीं गिना गया। यह भारत में अत्यधिक गर्मी के कारण मरने वाले अनगिनत लोगों में से एक मामला है, जो कभी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किए गए और न ही उन्हें कभी मुआवजा दिया गया। ‘पीटीआई-भाषा’ द्वारा की गई पड़ताल से पता चलता है कि असंगत, पुरानी रिपोर्टिंग प्रणाली के कारण वास्तविक मौत के आंकड़े दब जाते हैं जिससे जन जागरूकता और नीतिगत कार्रवाई दोनों कमजोर हो रही है। गर्मी से संबंधित मौत पर सटीक डाटा यह पहचानने में मदद करता है कि सबसे अधिक जोखिम किसको है क्योंकि इसके बिना, सरकार प्रभावी ढंग से योजना नहीं बना सकती, लक्षित नीतियां नहीं बना सकती या जीवन बचाने के लिए समय पर कार्रवाई नहीं कर सकती।
लेकिन कई गरीब और ऐसे लोग इसमें शामिल होते हैं जिनके बारे में रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाती। वर्तमान में कम से कम तीन अलग-अलग आंकड़ों में लू या गर्मी से संबंधित मौत के मामलों की निगरानी करने का प्रयास किया जाता है। मीडिया में सबसे अधिक स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) और गृह मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े उद्धृत किए जाते हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) भी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में लू या ‘‘गर्म हवाओं’’ के कारण होने वाली मौत के आंकड़े रखता है, जो मुख्य रूप से मीडिया में आई खबरों से प्राप्त आंकड़े होते हैं।
हालांकि, ये तीनों स्रोत व्यापक रूप से भिन्न संख्याएं बताते हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य मंत्रालय से आरटीआई (सूचना का अधिकार) के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि एनसीडीसी द्वारा प्रबंधित एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) के तहत 2015 से 2022 के बीच गर्मी से संबंधित मौत के 3,812 मामले दर्ज किए गए। इसके विपरीत, एनसीआरबी के आंकड़े उसी अवधि के दौरान ‘‘लू/गर्मी’’ से मौत के 8,171 मामले बताते हैं। इसका उल्लेख केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में कई बार किया है। आईएमडी की वार्षिक रिपोर्ट में 2015 से 2022 के बीच ‘‘लू’’ के कारण मौत के 3,436 मामले दर्ज किए गए हैं। एनसीडीसी और आईएमडी ने 2023 और 2024 के आंकड़े पहले ही जारी कर दिए हैं, लेकिन एनसीआरबी ने इन वर्षों के आंकड़े अब तक प्रकाशित नहीं किए हैं। इन आंकड़ों के बीच बड़ी विसंगतियों को समझने के लिए ‘पीटीआई-भाषा’ ने सरकारी अधिकारियों और स्वास्थ्य सेवा-नीति विशेषज्ञों से बात की।
दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एनसीआरबी के आंकड़े काफी हद तक सार्वजनिक स्थानों, घरों और अन्य जगहों पर पुलिस द्वारा मृत पाए गए लावारिस व्यक्तियों की संख्या को दर्शाते हैं। एनसीआरबी के अनुसार, 2022 में ‘‘लू/गर्मी’’ से 730 लोगों की मौत हुई, 2021 में 374 और 2020 में 530 लोगों की मौत हुई। इसके विपरीत, एनसीडीसी के आंकड़ों के अनुसार 2022 में गर्मी से संबंधित मौत की संख्या केवल 33 है, 2021 में गर्मी से किसी की मौत नहीं हुई और 2020 में गर्मी के कारण चार लोगों की मौत हुई, क्योंकि कई राज्यों ने अपने आंकड़े नहीं बताए। इन राज्यों में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु शामिल हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा कि एनसीआरबी और एनसीडीसी के आंकड़े ‘‘सीधे तौर पर तुलना योग्य नहीं हैं’’ क्योंकि वे अलग-अलग स्रोतों से आते हैं। उन्होंने भारत में गर्मी से होने वाली मौत पर कई आंकड़ों के अस्तित्व को स्वीकार किया और कहा कि ‘‘उनमें से कोई भी अकेले पूरी तस्वीर नहीं देते हैं’’।
दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा संचालित एक अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर ने नाम नहीं उजागर होने की शर्त पर कहा कि अधिकतर अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी है, जिससे उचित डाटा संग्रह और समय पर रिपोर्टिंग में बाधा आती है। डॉक्टर ने यह भी आरोप लगाया कि अधिकारी मुआवजा देनदारियों से बचने के लिए मृत्यु के आंकड़ों को दबा सकते हैं। मई में ‘इंडिया हीट समिट 2025’ में स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार सौम्या स्वामीनाथन ने देश की मृत्यु-रिपोर्टिंग प्रणालियों की कमियों को उजागर किया था। एनआरडीसी इंडिया में जलवायु अनुकूलता एवं स्वास्थ्य प्रमुख अभियंत तिवारी ने कहा कि गर्मी के कारण होने वाली मौत न केवल भारत में बल्कि वैश्विक चुनौती बनी हुई हैं। ग्रीनपीस दक्षिण एशिया के उप कार्यक्रम निदेशक अविनाश चंचल ने गर्मी से संबंधित मौत के मामलों को दर्ज करने के तरीके में तत्काल सुधार की मांग की है।

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