नेता की बात का कोई बुरा नहीं मानता

सुनील दास
संपादकीय { गहरी खोज }: किसी भी परिवार की पार्टी मे एक नेता सबसे बड़ा नेता होता है।वह सबसे बड़ा होता है, इसलिए वह जो कहता है वह सही होता है,वह जो करता है वह तारीफ का विषय होता है।उसकी भाषा की कोई मर्यादा है तो तारीफ की बात है, उसकी भाषा की कोई मर्यादा नहीं है तो भी तारीफ होती है कि कितना साहसी है, खरा-खरा बोल देता है, सबके सामने बोल देता है।उसकी बात का कोई बुरा नहीं मानता है,पार्टी के लोग कहते हैं कि यह तो उनका प्यार है इसलिए ऐसा कह रहे हैं, यह तो उनका अपनापन है कि वह ऐसा कह रहे हैं। वह कुछ भी कह दे, लोग उसमें कोई गूढ़ अर्थ तलाश लेते हैं और नहीं समझने वाले को कहते हैं कि आप इस समझ ही नहीं सकते।
राहुल गांधी भी अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं।सब उनको प्यार करते हैं और वह सबको प्यार करते हैं। वह गुजरात गए थे तो वहां पर उन्होंने प्यार से कांग्रेस नेताओं को समझाने के लिए कहा था कि गुजरात कांग्रेस की हालत क्यों खराब हो गई। उन्होंने घोड़े का उदाहरण देते हुए समझाया था कि जैसे रेस के घो़ड़े का उपयोग बारात के घोड़े के रूप में नहीं किया जाना चाहिए, वैसे ही बारात के घोड़े का उपयोग रेस में नहीं किया जाना चाहिए। गुजरात में ऐसा किया गया इसलिए गुजरात कांग्रेस बरसों से चुनाव नहींं जीत पा रही है।साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस में बहुत सारे नेता भाजपा की मदद करने वाले है, इन भाजपा की मदद करने वाले नेताओं के कारण भी कांग्रेस चुनाव हार जाती है। जल्द ही ऐसे नेताओं की पहचान की जाएगी और उनको पार्टी से निकाला जाएगा।
इसके बाद राहुल गांधी और भी कई प्रदेशों का दौरा कर चुके हैं लेकिन कहीं भी उन्होंने वह नहीं कहा जो उन्होंने गुजरात में कहा था।वह कई बार बिहार जा चुके हैं। लेकिन वहां उन्होंने घोड़े की बात नहीं की।उनको लगता है कि बिहार में कांग्रेस मजबूत है।यहां तो सब रेस के घोड़े हैं, रेस के घोड़े हैं, इसलिए चुनाव में तो वह जीतेंगे ही। जीतने वाले को बारात का घोड़ा नहीं कहा जाता है। लंगड़ा घोड़ा नहीं कहा जाता है। जो भी चुनाव जीतता है, वह तो रेस का घोड़ा होता है। जब तक चुनाव नहीं हो जाता है राजनीतिक दल अपने नेताओं को रेस का घो़ड़ा ही समझते हैं। वह चुनाव के बाद पता चलता है कि जिसको पार्टी रेस का घोड़ा समझ रही थी वह तो बारात का घोड़ा निकला।
राहुल गांधी मप्र के दौरे पर आए तो उनको गुजरात की तरह यहां भी कांग्रेस नेताओं को समझाना पड़ा कि यहां कांग्रेस इसलिए चुनाव नहीं जीत रही है कि बारात के घोड़ो को रेस के घोड़ो की उपयोग किया जाता है। बारात के घोड़े कैसे रेस जीत सकते हैं।चुनाव की रेस मप्र में कांग्रेस बुरी तरह हारती रही है। वह जिसे चुनाव में रेस का घोड़ा समझती है, वह चुनाव के बाद बारात का घोड़ा निकलता है।यहां राहुल गांधी ने हार का एक कारण लंगड़ा घोड़ा बताया है। लंगड़ा घोड़ा यानी जो पार्टी की किसी काम का नहीं है लेकिन पार्टी में है।उन्होंने कहा है कि आने वाले दिनों में पार्टी से लंगड़े घोड़े निकाले जाएंगे यानी पार्टी में वही रहेंगे जो काम के होंगे।
राहुल गांधी ने कह दिया है तो यह काम तो देर से होगा लेकिन होगा जरूर। कई कांग्रेस नेता यह सोच रहे होंगे कि कौन रेस का घोड़ा है,कौन बारात को घोड़ा है और कौन लंगड़ा घोड़ा है। इसकी पहचान कैसे होगी। राहुल गांधी और उनके आसपास के पांच दस भरोसे लोगों के लिए यह कौन सा मुश्किल काम है।राहुल गांधी और उनकी टीम प्रदेश में जिन नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए टिकट देगी, वह रेस के घोड़े होंगे।जिनको संगठन में काम करने का काम सौंपा जाएगा वह बारात के घोड़े होंगे.जिनको संगठन में भी कोई काम नहींं दिया जाएगा,वह लंगड़े घोड़े होंगे,उनको जब भी पार्टी से निकाला जाएगा वह लंगड़े माने जाएंगे यानी लंगड़े घोड़े थे इसलिए पार्टी ने उनको पार्टी से निकाला है।