भारत का आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए वैश्विक स्तर का संगठन बनाने पर बल

नयी दिल्ली{ गहरी खोज }: भारत ने विश्व समुदाय से आपदा जोखिम न्यूनीकरण वित्तपोषण (डीआरआर) के लिए एक ऐसे वैश्विक प्रतिष्ठान की स्थापना का आह्वान किया है जो इस इस क्षेत्र में कर्ज और वित्तीय सहायता को उत्प्रेरित करने की भूमिका निभा सके।
देश ने डीआरआर वित्तपोषण वव्यवस्था को इस दिशा में सहज प्रगति की आधारशिला बताया है। भारत ने इस क्षेत्र में अपनी राष्ट्रीय वित्तपोषण प्रणाली को दुनिया में राष्ट्रीय स्तर की ऐसी एक प्रमुख प्रणाली बताया है तथा वैश्विक स्तर पर डीआरआर वित्तपोषण के काम के लिए अलग सुविधा के अभाव को रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी. के. मिश्रा ने जिनेवा में डीआरआर वित्तपोषण पर मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन में यह प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि में ठोस, समयबद्ध परिणामों और प्रौद्योगिकी सहायता तथा ज्ञान विनिमय के साथ उत्प्रेरक वित्त पोषण के लिए एक वैश्विक प्रतिष्ठान का गठन किया जाना चाहिए।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों द्वारा समर्थित एक वैश्विक सुविधा के निर्माण का आह्वान किया, ताकि उत्प्रेरक धन, तकनीकी सहायता और ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए एक मंच प्रदान किया जा सके।
प्रधामंत्री कार्यालय की शुक्रवार को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार डॉ. मिश्रा ने बुधवार को सम्मेलन को संबोधित करते हुए महत्वपूर्ण चर्चा के आयोजन के लिए संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (यूएनडीआरआर) और उसके सहयोगियों की सराहना की। भारत ने अपनी जी-20 की अध्यक्षता के माध्यम से वैश्विक संवाद जारी रखने में ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के योगदान की भी चर्चा की है।
डॉ. मिश्रा ने कहा कि आपदा जोखिम में कमी लाने के लिए वित्त व्यवस्था कोई छोटा मुद्दा नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रणालियों के प्रभावी कामकाज और बढ़ती जलवायु तथा आपदा जोखिमों को देखते हुए इसका बड़ा महत्व है। उन्होंने कहा कि भारत इस मामले में मजबूत और उत्तरदायी डीआरआर वित्तपोषण वव्यवस्था को इस दिशा में प्रगति की सुगमता की आधारशिला मानता है।
डॉ. मिश्रा ने डीआरआर वित्तपोषण में भारत की व्यवस्था के विकास पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत में पहले के वित्त आयोगों की ओर से इस मद के लिए आवंटन मात्र छह करोड़ रुपये (लगभग सात लाख डॉलर) था पर आज, 15 वें वित्त आयोग के अंतर्गत संचयी परिव्यय 2.32 लाख करोड़ रुपये (लगभग 28 अरब डॉलर) से अधिक हो गया है।
उन्होंने भारत में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 द्वारा समर्थित राष्ट्रीय से राज्य और जिला स्तरों पर प्रवाहित पूर्व-निर्धारित, नियम-आधारित आवंटन के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि इस परिवर्तन ने सुनिश्चित किया कि आपदा वित्तपोषण प्रतिक्रियात्मक के बजाय संरचित और अनुमानित है।
उन्होंने कहा कि भारत में डीआरआर वित्तपोषण चार सिद्धांतों पर आधारित है। इसके तहत पहली व्यवस्था आपदाओं को ध्यान में रख कर पहले से तैयारी, शमन, राहत और उबरने के काम के लिए धन के उपाय किए जाते हैं। इसके बाद वित्त पोषण में प्रभावित लोगों और कमजोर समुदायों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाती है। तीसरा व्यवस्था केंद्रीय, राज्य और स्थानीय पर वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराना और इसमें चौथे सिद्धांत के तहत व्यय में उत्तरदायित्व, पारदर्शिता और उनके परिणामों को मापने की व्यवस्था शामिल हैं।
डॉ. मिश्रा ने कहा कि आपदा जोखिम वित्तपोषण राष्ट्रीय स्वामित्व और संचालित होना चाहिए, जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग द्वारा पूरक हो। जबकि प्रत्येक देश को अपनी प्रणाली को अपने शासन ढांचे, राजकोषीय संदर्भ और जोखिम के स्वरूप के अनुरूप बनाना चाहिए।
सार्वजनिक वित्त से परे विविध वित्तीय साधनों की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, उन्होंने कहा कि जोखिम पूलिंग, बीमा और अभिनव वित्तीय साधनों जैसी प्रणालियों को स्थानीय सामर्थ्य और राजकोषीय स्थिरता के साथ मेलजोल में विकसित किया जाना चाहिए।
उन्होंने सम्मेलन से आग्रह किया कि शामिल देश इस मामले में इच्छा-अभिलाषा व्यक्त करने वाले बयान से आगे बढ़कर ठोस और समयबद्ध परिणामों की ओर कदम बढ़ाएं।