kaara_maen_laiphata_daekara_lauutaa-sixteen_nine

संपादकीय { गहरी खोज }: फगवाड़ा के दो युवकों की 1993 में पुलिस मुठभेड़ के दौरान दिखाई मौत को लेकर सीबीआई में चल रहे मुकदमे में आए फैसले में मुठभेड़ को फर्जी पाया गया है। सीबीआई की अदालत ने कपूरथला के रावलपिंडी के पूर्व एसएचओ और एएसआई को दो युवकों की हत्या के मामले में तीन से आठ वर्ष की कैद की सजा सुनाई है। साथ में 50-50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
सीबीआई द्वारा दायर आरोपपत्र के अनुसार, कपूरथला के रावलपिंडी थाने की पुलिस पार्टी ने 27 मार्च, 1993 को रावलपिंडी गांव में पलविंदर सिंह उर्फ पप्पू को उसके घर से उठाया था। उसी दिन, फगवाड़ा के धाड़े गांव के बलबीर सिंह को मंजीत सिंह ने उठा लिया था।
कुछ दिन तक अवैध रूप से हिरासत में रखने के बाद फगवाड़ा थाने ने उनकी गिरफ्तारी दर्ज की। पुलिस ने आरोप लगाया कि उन्हें चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था और उनके पास से एक स्कूटर और सोने की अंगूठी जब्त की गई थी। कुछ घंटों के बाद, पुलिस ने दावा किया कि पलविंदर सिंह और बलबीर सिंह हथियार और गोला बारूद बरामद करने के लिए जाते समय पुलिस हिरासत से फरार हो गए थे। दो दिन बाद, पुलिस ने दावा किया कि सुल्तानपुर लोधी पुलिस के साथ मुठभेड़ में दोनों मारे गए।
हालांकि उनकी मौत की सूचना उनके परिवारों को नहीं दी गई और उनके शवों का लावारिस के रूप में अंतिम संस्कार कर दिया गया। 1995 में पलविंदर सिंह के पिता दर्शन सिंह ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने 12 सितंबर, 2005 को सीबीआई जांच के आदेश दिए। 11 अक्टूबर, 2005 को सीबीआई ने चंडीगढ़ में अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 120 बी, 342, 365,364 और 302 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया। सीबीआई के लोक अभियोजक अनमोल नारंग ने बताया कि 3 जनवरी, 2012 को करमजीत सिंह, मंजीत सिंह, गुरमेज सिंह, कश्मीर सिंह और हरजीत सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया। सुल्तानपुर लोधी थाने के तत्कालीन एसएचओ मोहन सिंह और एएसआई इकबाल सिंह की जांच के दौरान मौत हो गई। मुठभेड़ में शामिल बताए गए पुलिस अधिकारियों हरदयाल सिंह, निर्मल सिंह और दलजीत सिंह ने अदालत के समक्ष गवाही दी कि ऐसी
कोई घटना नहीं हुई थी। इसी तरह आरोपी कश्मीर सिंह और हरजीत सिंह ने कहा कि उन्होंने मृतक के कथित इकबालिया बयान सहित किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए थे कि उन्होंने हथियार और गोला बारूद छिपाए थे।
उपरोक्त मामले को समझने की बात यह है कि मुठभेड़ दिखाने का प्रयास अगर पुलिस कर्मचारियों ने किया लेकिन मामला फर्जी है यह बात भी पुलिस कर्मियों के ब्यानों से ही साबित हुई है। वर्दी का कमजोर और मजबूत पक्ष दोनों जगजाहिर है। फर्जी मुठभेड़ कानून की दृष्टि से तो गलत है ही साथ में अमानवीय भी है। जिन परिवारों के युवा लड़कों की फर्जी मुठभेड़ दिखाकर हत्या कर दी उन परिवारों को इस निर्णय से राहत तो मिलेगी लेकिन फर्जी मुठभेड़ भविष्य में न हो इसके लिए पुलिस व प्रशासन को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *