स्कंद षष्ठी कल, भगवान कार्तिकेय की इस विधि से करें पूजा, दूर होंगे सभी कष्ट!

धर्म { गहरी खोज } : हिंदू धर्म में स्कंद षष्ठी का महत्व बहुत अधिक होता है। खासकर उन भक्तों के लिए जो भगवान शिव और माता पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र, भगवान कार्तिकेय की पूजा करते हैं। स्कंद षष्ठी का व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है जिन्हें संतान प्राप्ति में बाधा आ रही हो। जिनके बच्चे हैं, वे उनकी लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य के लिए यह व्रत रखते हैं। मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय बच्चों की रक्षा करते हैं। भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति और रोगों का नाश करने वाला माना जाता है। इस व्रत को करने से शारीरिक कष्ट और बीमारियां दूर होती हैं। तथा व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति होती है। यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं से परेशान है, मुकदमों में फंसा है, या किसी प्रतिस्पर्धा में विजय प्राप्त करना चाहता है, तो इस व्रत को करने से उसे विजय प्राप्त होती है। द्रिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 31 मई दिन शनिवार को रात 8 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 1 जून दिन रविवार को रात 7 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत 1 जून दिन रविवार को ही रखा जाएगा।
भगवान कार्तिकेय की ऐसे करें पूजा
- स्कंद षष्ठी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- ‘मम सकलदुःख-दारिद्रय-विनाशार्थं, पुत्र-पौत्रादि सकल संतान समृद्धर्थं, शत्रुपक्षविजयसिद्धयर्थं स्कंद षष्ठी व्रत करिष्ये’ मंत्र का जाप करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- घर के मंदिर को साफ करें और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि प्रतिमा न हो तो आप भगवान शिव और माता पार्वती के साथ उनकी पूजा कर सकते हैं।
- इस दिन षष्ठी देवी की भी पूजा की जाती है, जो स्कंद माता का ही एक रूप मानी जाती हैं और संतान की रक्षा करती हैं।
- भगवान कार्तिकेय को गंगाजल, दूध, दही, शहद से अभिषेक करें। उन्हें चंदन, रोली, अक्षत, पीले या लाल फूल, माला, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- भगवान कार्तिकेय को मोर पंख, कुक्कुट (मुर्गा) का चित्र (यदि संभव हो), और लाल चंदन विशेष रूप से प्रिय हैं। इन्हें अर्पित करें।
- भगवान कार्तिकेय को फल, मिठाई (विशेषकर मीठी खीर या गुड़-चने का प्रसाद) का भोग लगाएं और भगवान कार्तिकेय के मंत्रों का जाप करें।
“ॐ स्कंदाय नमः”
“ॐ षष्ठी देव्यै नमः”
“ॐ कार्तिकेयाय नमः”
“ॐ शरवण भवाय नमः” (दक्षिण भारत में यह मंत्र बहुत प्रचलित है)
स्कंद षष्ठी पर न करें ये काम
- स्कंद षष्ठी के दिन और व्रत के पारण वाले दिन भी मांस, मदिरा (शराब), प्याज, लहसुन जैसे तामसिक भोजन का सेवन बिल्कुल न करें। इससे व्रत खंडित हो सकता है।
- यदि आप पूर्ण व्रत रख रहे हैं, तो इस दिन अन्न ग्रहण न करें। केवल फलाहार ही लें।
- मन में किसी के प्रति क्रोध, ईर्ष्या या नकारात्मक विचार न लाएं। किसी को भी अपशब्द कहने से बचें।
- व्रत के दौरान झूठ बोलने से बचें और इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन तिल का सेवन नहीं करना चाहिए।
- व्रत की पूजा सूर्योदय के समय ही प्रारंभ कर देनी चाहिए। देर से पूजा शुरू करना उचित नहीं माना जाता है।
कष्टों को दूर करने के उपाय
- ऐसी मान्यता है कि संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति या जिनकी संतान अक्सर बीमार रहती है, उनके लिए इस दिन विशेष रूप से भगवान कार्तिकेय की पूजा करना शुभ होता है। मोर पंख अर्पित करना और मोर पंख को अपने घर में रखना भी शुभ माना जाता है। यदि आप शत्रुओं से परेशान हैं या किसी मुकदमे में फंसे हैं, तो भगवान कार्तिकेय की पूजा से विजय प्राप्त होती है। उन्हें लाल फूल और लाल वस्त्र अर्पित करें।
- स्कंद षष्ठी का व्रत स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति के लिए भी लाभकारी माना जाता है। जिनकी कुंडली में मंगल दोष होता है, उनके लिए भी भगवान कार्तिकेय की पूजा अत्यंत फलदायी होती है, क्योंकि मंगल ग्रह के अधिष्ठाता देव कार्तिकेय ही हैं। स्कंद षष्ठी का व्रत श्रद्धा और भक्ति भाव से करने पर भगवान कार्तिकेय भक्तों पर अपनी असीम कृपा बरसाते हैं और उनके सभी कष्टों को दूर करते हैं।